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कैसे यह सरकार चलेगी कैसे तुम चल पाओगे
घूंट लहू की पीती जनता कैसे तुम बच पाओगे
दिल में थे अरमान बहुत औ लाखों सपने देखे थे
पर तुम उन सपनों को पूरा कैसे अब कर पाओगो
कैसे यह सरकार चलेगी कैसे तुम चल पाओगे

सोंचा था महफूज रहेंगे हंसी खुशी का मंजर होगा
हर लव पर खुशियां चहकेंगी सुखी यहां का जन-जन होगा
लेकिन उल्टा दांव पड़ रहा, गली गली में हरण हो रहा
चौक और चौराहों पर गुंडागर्दी का वरण हो रहा
यूपी की तसवीर यही क्या तुमने मन में ठानी थी
तुमने घर-घर जाकर जो बोली थी वह यह बानी थी
कैसे यह सरकार चलेगी ................................

घर से गुड़िया पढ़ने निकली शाम तलक वह लौटेगी
अब्बा गए बैंक को थे वह कब तक अम्मी आएंगे
मेरी पेंसिल, मेरा बिस्किट और खिलौना लाएंगे
तनिक देर होती तो हर लफ्जों में यही सवाल उठें
कहीं अगर घटना होती है मन में लाख बवाल उठें
कब तक यह तस्वीर जेहन से बोलो यहां मिटाओगो
कैसे यह सरकार चलेगी कैसे तुम चल पाओगे
घूंट लहू की पीती जनता .........................

कही धमाका कहीं गोलियां कहीं छुरे बाजी होती है
कहीं लुटेरे धावा बोलें कहीं जिंदगानी रोती है
यह सब तो चुनाव के वादों में तेरे तो नहीं लिखा था
यूपी लहूलुहान रहेगा, घोषणा पत्र में नहीं दिखा था।
फिर यह क्यों सौगात दे रहे कब तक तुम बच पाओगो
कैसे यह सरकार चलेगी कैसे तुम चल पाओगे
अतुल अवस्थी*अतुल*
बहराइच
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 5, 2013 at 3:07pm

सुन्दर रचना के लिए बधाई श्री अतुल भाई | सरकार तो ऐसे ही चलेगी, संवेदनशील रचनाकार लिखते रहेंगे 

सरकार पर जूँ भी नहीं रेंगेंगी, हम सब ६५ वर्षो से देख रहे है, रचनाकार का कर्म और धर्म है, जन जन को 

सन्देश देना और सत्ता को चेताना, आगे हरि इच्छा |

Comment by ram shiromani pathak on March 5, 2013 at 2:24pm

क्या मार्मिक चित्रण किया है आपने .आदरणीय............बहोत बधाई ....

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