For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर

टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
 छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||

Views: 584

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2013 at 9:46am

आदरणीय मंजरी पांडेय जी रचना पर आपकी सराहना हेतु हार्दिक आभार 

Comment by mrs manjari pandey on February 28, 2013 at 11:32pm

  आदरणीया राजेश  कुमारी जी बधाई। " आवरण " में आपने दिल का अनावरण किया है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 28, 2013 at 1:48pm

आदरणीय पवन अम्बा जी आपको रचना पसंद आई हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 28, 2013 at 1:45pm

प्रिय सीमा जी रचना पर आपकी  उपस्थिति और सराहना पाकर मन गद-गद हो गया दिल से शुक्रिया आपका|

Comment by pawan amba on February 27, 2013 at 4:31pm

जब थक जाती हूँ 
फिर बूंदों के संग 
लुढ़कती हुई 
चली आती हूँ धरा पर 
वापस 
अपने आवरण में||..bahut hi khub rachnaa...Rajesh Kumari ji...

Comment by seema agrawal on February 27, 2013 at 12:06pm

जब थक जाती हूँ 
फिर बूंदों के संग 
लुढ़कती हुई 
चली आती हूँ धरा पर 
वापस 
अपने आवरण में||...आहा हा  राजेश जी इन पंक्तियों ने तो मन मगन कर दिया ...इतना खूबसूरत और दार्शनिक समापन हुआ रचना का कि पठन  सार्थक हो गया ...ढेरों बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2013 at 12:02pm

राजेश कुमार झा जी इस उत्साह वर्धनीय  सराहना हेतु हार्दिक आभार 

Comment by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 11:15am

एक सार्वभौम संवेदना को आपने जिस सुंदरता से शब्‍द दिए हैं वह निश्चित रूप से अनुकरणीय है, बहुत बधाई इस रचना पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2013 at 10:36pm

विंध्येश्वरि प्रसाद  जी आपको रचना पसंद आई मेरी कल्पना की उड़ान को दिल से महसूस किया  हार्दिक आभार आपका सच में परिंदों को देख् कर बहुत बार कल्पना करती हूँ की काश हमे भी पंख मिलते और हम भी उच्च गगन में उड़ आते 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2013 at 10:33pm

राम शिरोमणि पाठक जी   आपको रचना पसंद आई  हार्दिक आभार आपका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" पर्यावरण की इस प्रकट विभीषिका के रूप और मनुष्यों की स्वार्थ परक नजरंदाजी पर बहुत महीन अशआर…"
13 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
18 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
27 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
28 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे प्रयास को मान देने के लिए। सादर"
30 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।"
32 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"छंद प्रवाह के लिए बहुत बढ़िया सुझाव।"
34 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"मानव के अत्यधिक उपभोगवादी रवैये के चलते संसाधनों के बेहिसाब दोहन ने जलवायु असंतुलन की भीषण स्थिति…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" जलवायु असंतुलन के दोषी हम सभी हैं... बढ़ते सीओटू लेवल, ओजोन परत में छेद, जंगलों का कटान,…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service