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संस्मरण (Reminiscence)

अभी कुछ दिनो पहले

बचपन के बीत जाने के बाद 
एक खेल खेला करते थे...
नाम छुपा कर अधरों पर
एक फूल संभाले हाथों   मे
बडी उम्मीद के साथ 
पंखुरियाँ तोड़ते हुए कहना,
'He loves me, he loves me not'
हारना  तो एक फूल और,
जीतते तो अनजाने ही 
रंग गुलनार!
तब कब समझा और कब जाना
के हर एक हासिल पर यूं  ही
सौ- सौ कुर्बानियाँ होंगी
बिखरे लम्हों को 
चुनते हुए आज,
उन सूखी पँखुरियों  की याद आई है.

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2011 at 9:21pm

//हारना  तो एक फूल और,

जीतते तो अनजाने ही 
रंग गुलनार!
तब कब समझा और कब जाना
के हर एक हासिल पर यूं  ही
सौ- सौ कुर्बानियाँ होंगी
बिखरे लम्हों को 
चुनते हुए आज,
उन सूखी पँखुरियों  की याद आई है.//
आदरणीया आराधना जी !  .......बचपन के मासूम रंगों से सराबोर इस सशक्त कविता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें .....आप पर माँ सरस्वती की कृपा है,....:-)
Comment by Er. Pawan Kumar Shukla on September 10, 2011 at 12:22pm

heart touching

Comment by Aradhana on July 28, 2011 at 6:37pm

संगीता जी, हमे कई बार लगता है के जैसे बचपन के बाद एक बच्चा हुमारे अंदर कहीं छुपा रहता है वैसे ही किशोरावस्था भी कहीं ना कहीं तो रह जाती है...और कभी कुछ जाना पहचाना सा दिख जाए तो हल्के से मुस्कुरा देती है और शायद कभी फिर 'गुलनार' भी हो जाती है. आपने वक़्त निकल कर हुमारी  कविता पढ़ी, बहुत धन्यवाद.

Comment by Aradhana on July 28, 2011 at 6:28pm

अल्पना, ये वक़्त हम दोनो के लिए एक साथ आया था सो तुम सबसेअच्छा समझोगी. बहुत अच्छा लगा जान कर कि तुम्हे कविता पसंद आई.

Comment by sangeeta swarup on July 28, 2011 at 3:40pm

किशोरावस्था का खेल ..जीत पर लाली का छाना ..और उसको सच मान लेना ... आज वक्त के साथ यथार्थ को भोगते हुए यह सब याद आना ... बहुत खूबसूरती से संजो दिया है आपने अपनी रचना में ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति 

Comment by alpana bhattacharya on July 27, 2011 at 2:25pm

 haar jane pe... pure yakin se ,  phir ....phir se ek phool leker .......he love me... aane tak kosish kerte jana..... ye din aate to bahuton ki zindagi me honge.... per itni khubsurti se express ker pana........ bahut khub Aradhdna.

Comment by Aradhana on July 27, 2011 at 8:36am

सतीश जी, आपकी सराहना के हम आभारी हैं, बहुत धन्यवाद

Comment by satish mapatpuri on July 27, 2011 at 12:56am
पंखुरियाँ तोड़ते हुए कहना,
'He loves me, he loves me not'
हारना  तो एक फूल और,
जीतते तो अनजाने ही
रंग गुलनार!

अभिनव अभिव्यक्ति

Comment by Aradhana on July 26, 2011 at 11:02am
Sanjay ji, our past is the strongest foundation of our today. If we miss to connect the two in our journey of life we remain incomplete and keep searching for ourselves for the rest of our lives. I'm so glad you liked it. Thanks..
Comment by Aradhana on July 26, 2011 at 10:57am

सौरभ जी, जीवन के बीते हुए पलों से हुमारा आज कभी अलग नही होता, कहीं ना कहीं उनकी छाप हमारे वर्तमान पर अंकित है. और कई बार हमें बहुत कुछ सीखा भी जाती हैं. आपकी सराहना के हम अभारी है.

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