For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( ज़िंदगी में तेरी हम शामिल नहीं.....)

( 2122 2122 212 )

ज़िंदगी में तेरी हम शामिल नहीं
तूने समझा हमको इस क़ाबिल नहीं

जान मेरी कैसे ले सकता है वो
दोस्त है मेरा कोई क़ातिल नहीं

सारी तैयारी तो मैंने की मगर
जश्न में ख़ुद मैं ही अब शामिल नहींं

हमको जिस पर था किनारे का गुमाँ
वो भंवर था दोस्तो साहिल नहीं

सोच कर हैरत ज़दा हूँ दोस्तो
साँप तो दिखते हैं लेकिन बिल नहीं

देखने में है तो मेरे यार - सा
उसके होटों के किनारे तिल नहीं

तुम यहीं पर बैठ कर ख़ुश हो रहे
मील का पत्थर है ये मंजिल नहीं

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 563

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on June 23, 2020 at 4:48pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए हृदय से आभार. मैं तो आपसे भी इस्लाह की उम्मीद कर रहा था पर आप अभी आये हैं. बहुत शुक्रिया.टंकन त्रुटि ठीक करता हूँ.

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 23, 2020 at 9:46am

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें। उस्ताद जी ने इस्लाह भी ख़ूब की, बहुत कुछ सीखने को मिला। जनाब editing में एक छोटी से ग़लती रह गई है – मतले के सानी में 'समझ' को 'समझा' कर लीजिएगा।

Comment by सालिक गणवीर on June 22, 2020 at 2:06pm

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

बहुमूल्य सुझावों के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ. मैं जानता हूँ ख़राब सेहत की वजह से आपको लिखने में परेशानी होती है, बावजूद इसके आप ओबीओ पर इतने सक्रिय रहते हैं. यह इस विधा के लिए आपके समर्पण का प्रत्यक्ष उदाहरण है. ईश्वर आपको लंबी उम्र दे.सादर.

Comment by Samar kabeer on June 21, 2020 at 2:47pm

//आपके सीने  मेंं  शायद  दिल नहीं

यानी हम भी आपके क़ाबिल नहीं//

मतले के दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका,और दोनों मिसरों में 'आपके' शब्द भी खटकता है,मतला यूँ कर सकते हैं:-

'ज़िन्दगी में तेरी हम शामिल नहीं

तूने समझा हमको इस क़ाबिल नहीं'

'लगता है कि जान ले लेगा मेरी
दोस्त है मेरा कोई क़ातिल नहीं'

इस शैर में रब्त पैदा नहीं हो सका,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'जान मेरी कैसे ले सकता है वो'

'सारी तैयारी तो मैंने की मगर
जश्न में ख़ुद मैं ही अब शामिल नहींं'

ये शैर अब ठीक है ।

'मुझको लगता था किनारे आ लगा
वो भंवर था दोस्तो साहिल नहीं'

इस शैर में अभी रब्त पैदा नहीं हुआ,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'हमको जिस पर था किनारे का गुमाँ'

 भंवर था दोस्तो साहिल नहीं

'वो छुपा कर है इन्हें रखता कहाँँ?
साँप तो दिखते हैं लेकिन बिल नहीं'

इस शैर में भी रब्त नहीं,ऊला में छुपा कर रखने की बात और सानी में दिखते हैं?ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'सोच कर हैरत ज़दा हूँ दोस्तो'

'देखने में है तो मेरे यार - सा
उसके होटों के किनारे तिल नहीं'

ये शैर अब ठीक है ।

'तुम यहीं पर बैठ कर ख़ुश हो रहे
मील का पत्थर है ये मंजिल नहीं'

ये शैर अब ठीक है ।

Comment by सालिक गणवीर on June 21, 2020 at 10:04am

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और मार्गदर्शन के लिए आपका हार्दिक आभार.

आपके इस्लाह के मुताबिक ज़रूरी फेरबदल के साथ ,ग़ज़ल पुनः पोस्ट कर रहा हूँ. मतला यूँ पढ़ा जाए.

आपके सीने  मेंं  शायद  दिल नहीं

यानी हम भी आपके क़ाबिल नहीं

सादर

Comment by Samar kabeer on June 19, 2020 at 4:31pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।

'आपके जैसा किसी का दिल नहीं
याने हम भी आपके क़ाबिल नहीं'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और सानी मिसरे में 'याने' ग़लत है,"यानी" सहीह शब्द है ।

'लगता है कि जान ले लेगा मेरी
है मेरा अहबाब वो क़ातिल नहीं'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,और सानी में "अहबाब" बहुवचन है,देखियेगा ।

'सारी तैयारी तो मैंने की मगर
जश्न में ही आज भी शामिल नहीं'

कौन शामिल नहीं? स्पष्ट नहीं ।

'मुझको लगता था किनारे आ लगा
ये भंवर है दोस्तो साहिल नहीं'

इस शैर का ऊला कमज़ोर है,सानी से रब्त नहीं है ।

भंवर है दोस्तो साहिल नहीं

'या ख़ुदा रक्खें हैं उसने किस जगह
साँप तो हैं याँ कहीं पर बिल नहीं'

इस शैर में आप जो कहना चाहते हैं,कह नहीं पाए ।

'याने अब दरबान गायब है कहीं
उसके होटों के किनारे तिल नहीं'

ये शैर भी क़ाफ़िया पैमाई के सिवा कुछ नहीं ।

'मील कि पत्थर है ये मंजिल नहीं'

इस मिसरे में 'कि' की जगह "का" होना चाहिए,'पत्थर' पुल्लिंग है ।

इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service