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Shashi purwar's Blog – July 2013 Archive (5)

क्यूँ तुम खामोश रहे .. माहिया

1

क्यूँ तुम खामोश रहे
पहले कौन कहे
दोनों ही तड़प सहे .


आसान नहीं राहे
पग पग में धोखा
थामी तेरी बाहें .


यह जीवन सतरंगी
राही चलता जा
है मन तो मनरंगी .


साचे ही करम करो
छल तो काला है
जीवन में रंग भरो .


- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shashi purwar on July 22, 2013 at 1:00pm — 9 Comments

कहाँ उड़ गयी नींदे .... माहिया

रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण, लेखिका से वार्ता के पश्चात हटा दी गई है । 

एडमिन

Added by shashi purwar on July 14, 2013 at 5:30pm — 14 Comments

प्रकृति ने दिया अपना जबाब ......

प्रकृति की

नैसर्गिक चित्रकारी पर

मानव ने खींच दी है

विनाशकारी लकीरे

सूखने लगे है

जलप्रताप, नदियाँ

फिर

एक सा जलजला आया 

समुद्र  की गहराईयों में

और  प्रलय का नाग

निगलने लगा

मानवनिर्मित कृतियों को,

धीरे  धीरे

चित्त्कार उठी धरती

फटने  लगे बादल

बदल गए मौसम

बिगड़ गया  संतुलन

हम

किसे दोष दे ?

प्रकृति  को ?

या मानव को ?

जिसने अपनी

महत्वकांशाओ…

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Added by shashi purwar on July 12, 2013 at 12:30am — 18 Comments

सूखे गुल की दास्ताँ.!

अश्क आँखों में औ

तबस्सुम होठो पे है



सूखे गुल  की दास्ताँ

अब बंद किताबो में है



बीते वक़्त का वो लम्हा

कैद मन की यादों में है



दिल  में दबी है चिंगारी

जलती शमा रातो में है



चुभन है यह विरह की  

दर्द कहाँ अल्फाजों में है



नश्वर होती  है  रूह

प्रेम समर्पण भाव में है



अविरल चलती ये साँसे

रहती जिन्दा तन में है



खेल है यह तकदीर का

डोर…

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Added by shashi purwar on July 3, 2013 at 10:30pm — 8 Comments

गजल -- कुछ और करिश्मे गजल के देखते है

मित्रो इस बार नेट व्यवधान के कारन यह मुशायरा अंक में प्रस्तुत नहीं कर सकी थी , एक छोटा सा प्रयास किया था ...आपके समक्ष -- समीक्षा की   अपेक्षा है;



चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है

लोग कितने अजब है चल के देखते है



गली गली में यहाँ आज पाप कितना फैला

खुदा के नाम पे ईमान छल के देखते है



ये लोग कितने गिरे है जो आबरू से खेले

झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है



ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे  

बनावटी ये जहाँ से निकल के…

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Added by shashi purwar on July 1, 2013 at 3:00pm — 14 Comments

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
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"आदरणीय प्रेम जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले ग़ौर…"
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Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ ,बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले…"
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"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए और बेहतर सुझाव के लिए सुधार करती हूँ सादर"
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"आदरणीय चेतन जी बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका मक़्त के में सुधार की कोशिश करती हूं सादर"
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Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी बेहतर इस्लाह ऑयर हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका सुधार करती हूँ सादर"
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"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी और अमीर जी के सुझाव क़ाबिले…"
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Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
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Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
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DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय मुसाफिर जी नमस्कार । भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु बधाई। इस्लाह भी गुणीजनों की ख़ूब हुई है। "
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DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा यादव जी नमस्कार । ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
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