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Baban pandey's Blog (78)

संग्राहलयो में बंद कागज़ के टुकड़े

वो ताड़ के पत्ते
वो भोज -पत्र
वो कपडे और कागज के टुकड़े
कितने खुशनसीब है ...
जिन्होंने अपने ऊपर
गुदवाया भारत का इतिहास ॥

वो साहिल के पंखों की कलम
वो दावात
और वो स्याही
आप कितने धन्य है ....
कितने ही क्रांतिवीरों ने
स्पर्श किया आपको ॥

छूना चाहता हू , मैं भी आपको
ताकि .....
क्रांतिवीरों का थोडा सा ओज
उनके क्रांतिकारी विचार
स्थानांतरित हो सके हममे
आप सहेज कर रखे गए है
शीशे के अन्दर संग्राहलयो में ॥

Added by baban pandey on August 20, 2010 at 10:57pm — 3 Comments

अकाल

अकाल ....

एक दिन में नहीं

कह कर आता है ...धीरे -धीरे ॥



बादल रुठ जाते है

जमीन दरारें दिखाती है

कमल कुम्भला जाते है

चिड़ियों को नहीं मिलता अन्न

बगुले को नहीं मिलते कीटें

धान के खेतों में ॥





सरकार कहती है

कोई नहीं रहेगा भूखा

विदेशों से मंगा लिया जाएगा

चावल -गेहू -दाल ॥



क्या सरकार मिटा देगी

रामू काका के चेहरे पर उगी झुरीयां

जो मुनिया की शादी

टल जाने से हो गई है गहरी ॥



क्या सरकार देख पा… Continue

Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:47pm — 2 Comments

६३ साल का जवान सांप

मेरे घर के उत्तर- पश्चिम कोने पर

रहता है एक सांप

हमारे घर जितना पुराना ही

६३ साल का ॥



तीन बार हमें डंस चूका है

१९६५, १९७२, और कारगिल में

यद्दिपी कि तीनों बार

वह भाग खड़ा हुआ

मगर विष -वृक्ष बो गया है ॥



उसने कश्मीर में अपने

छोटे -छोटे बच्चो को जन्म दिया है

फुफकारते है उसके बच्चे कश्मीर में ॥

कश्मीर के लोगो का जीना

उसने तबाह किया हुआ है ॥





अब मेरे पुरे घर में ....

उसके विषैले बच्चे फ़ैल रहे है… Continue

Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:30pm — 1 Comment

मन को बांधना आसान नहीं

शब्दों की तरह

चाहता हू बांधना मन को भी

मगर मन ...

कौंधती है बिजली की तरह

बढती है लहरों की तरह

मन बाहर दौड़ने लगता है

ध्यान के दौरान

गंदे विचार कुलबुलाते रहते है ॥





बड़े ही द्वन्द में जीता है मन

आत्मा -परमात्मा के चक्कर में

गृहस्थ -वैराग्य के रास्तों पर

अपने -पराये की दहलीज पर

ठिठक जाता है मन ॥



खोये प्रेमी /खोया धन

पाने के लिए तपड़ता है मन ॥

सोचा था ...

बुढ़ापे के साथ

तन और मन ठंढा हो जाएगा… Continue

Added by baban pandey on August 8, 2010 at 7:31am — 4 Comments

कारगिल युद्ध के एक सैनिक का अंतिम क्षण

लेह से कारगिल तक का राजमार्ग

फिजाओं में घुला था बारूदी महक

हो भी क्यों ना

यह युध्ध तीर -कमानों से नहीं

बोफोर्स्र तोपों का था ॥



अँधेरी रातों में

घावों से रिस रहा था मवाद

शरीर निढाल था

और पैर मानो

लोहे का बना था ....

मिलों तक थकान नहीं था

मगर कान जगे थे

और जब कान जागता हो

तो नींद कैसे आएगी ॥





धुल के गुब्बार

आखों में धुल नहीं झोक पाए

वह नेस्नाबुद करना चाहता था

चाँद -तारे उगे हरे झंडे

और फतह… Continue

Added by baban pandey on August 6, 2010 at 12:12pm — 2 Comments

जब हवा पागल बनती है

पागल किसे कहते है

मैं नहीं जानता

मगर इतना जानता हू कि

अगर आप पर

पागलपन सवार है

तो हिमालय लांघना

कौन सी बड़ी बात है ॥





दोस्तों ,....

हवा जब पागल बनती है

उसे तूफ़ान कहते है

और ....

तूफ़ान घंटे भर में

वह कर देता है जो

हवा वर्षों से नहीं कर सकती ॥





मेरे युवा दोस्तों ....

आइये हमलोग भी तूफ़ान बने

छतविहीन घरों को छत देने के लिए

वृक्षों को नई जड़ देने के लिए

आईये ....

तूफ़ान बन फसलों के साथ… Continue

Added by baban pandey on July 29, 2010 at 9:15pm — 2 Comments

तैरता मन अब डूबने लगा है ....

अब सर से पानी निकलने लगा है
तैरता मन भी अब डूबने लगा है ॥

सूनी माँ की आंखों में , बेटे का इंतज़ार है
अब ,सिर्फ उनका ताबूत घर आने लगा है ॥

आशा लगाईं थी कुदाल ने , लाल कोठी पर
कपास के खेतों में भी अब दरार आने लगा है ॥

अब खाव्बो की मलिका , मरने लगी है
इच्छाओ का घर भी अब ,जलने लगा है ॥


मैं कुछ कर न सका दोस्तों, देश के लिए
इसका मलाल अब मुझे , आने लगा है॥

लाल कोठी-संसद

Added by baban pandey on July 22, 2010 at 4:18pm — 4 Comments

कभी -कभी उसे लगता है ....

कभी - कभी उसे लगता है

नेत्र हीन हो जाए

ताकि वह देख न सके ....

शरीर दिखाती औरतें

किसानों की आत्महत्याए

निठारी में नाले से निकले

छोटे -छोटे बच्चों के नर कंकाल

और

सैनिक बेटे को खोने के बाद

एक मूर्छित माँ का चेहरा ॥





कभी -कभी उसे लगता है

बहरा हो जाए

ताकि वह सुन न सके

नेताओं के झूठे आश्वाशन

नक्सलियों के बंदूकों से

गोलियों की तडतड़ाहट

लोक संगीत की जगह फ्यूजन -मयूजिक

और

हमलों में शहीद हुए जवानों… Continue

Added by baban pandey on July 21, 2010 at 8:45pm — 2 Comments

आशा एक चिड़िया है

आशा .....
एक बीज है
जो रोपा जाता है
मन -मस्तिष्क की उर्वर भूमि में
और यह बीज
अंकुर कर वृक्ष बनता है
जब इसे मिलती है गर्माहट
समाज और स्वं के रिश्ते की ॥
आओ !!!
हम सब इस बीज को
मेहनत की नीर से सींचे ॥


आशा .......
एक चिड़िया है
जो उड़ती है
व्यक्ति के मन -मस्तिष्क के आकाश में ॥
आओ !!!
आशा नाम की इस चिड़िया को
मेहनत का मजबूत पंख लगायें ॥

Added by baban pandey on July 19, 2010 at 6:37am — 1 Comment

एक मजदूर की भूख

उसके भी

दो आँख /दो कान /एक नाक है

थोड़े अलग है तो उसके हाथ ॥

मेरा हाथ उठाता है कलम

मगर

उसके हाथ उठाते है कुदाल

और इसी कुदाल से

लिख लेता है वह

अनजाने में ही

देश प्रेम की गाथा ॥



मेरी माँ कहती है

भूख लगे तो खा लो

नहीं तो भूख मर जाती है ॥





जब भारत बंद/ बिहार बंद होता है

उसकी भूख मर जाती है

कई बार /बार -बार ॥



ओ ...बंद कराने वाले नेताओ

आर्थिक नाकेबंदी करने वाले नक्सलवादियों

क्या आपकी भी… Continue

Added by baban pandey on July 18, 2010 at 6:18pm — 5 Comments

हम नहीं सुधरेगे

वर्षा में नाले जाम है

नगर निगम वाले आते ही होंगें

दोषी , और मैं

क्या कह रहे है आप ?



मैंने क्या किया भाई

बस

घर के थोड़े से कचड़े

पोलीथिन में बाँध कर

नाले में इसलिए डाल दी

क्योकि ......

कचड़े का कंटेनर

मेरे घर से मात्र २०० फिट दूर है ॥



मैं अफसर हो कर

२०० फिट दूर क्यों जाऊ

नाक कट जायेगी मेरी

महल्ले वाले क्या कहेगे ॥





उधर , राजघाट पर

एक विदेशी सज्जन ने

लाइटर से सिगरेट जलाई

और राख एक… Continue

Added by baban pandey on July 17, 2010 at 10:00pm — 4 Comments

नज़रिया

एक कवि ने
अपनी कवितायें
पत्रिका में
प्रकाशित करने को भेजी ॥

संपादक महोदय ने
कचड़ा कह लौटा दिया ॥
पुनः दूसरी पत्रिका में भेजी
सहर्ष स्वीकृत की गयी
और प्रकाशित हुई ॥


इधर रिश्ते बनाने के क्रम में
माँ ने
लड़की को नापसंद कर दी ॥
पुनः उसी लड़की को
दुसरे लड़के की माँ ने देखा
फूलों की मलिका की संज्ञा से नवाजा ॥

सच
हर चीज में दो चेहरा नहीं होता
बल्कि हम
अपने -अपने तरीके से देखते है ॥

Added by baban pandey on July 17, 2010 at 7:26am — 3 Comments

वाह , क्या कहने !!!

बैंक अधिकारी है मेरे मित्र
कृषि ऋण देने में कहते है
बैंक का फायदा कम हो जाएगा ॥
मगर ...
किसानों से पूछते है
भिन्डी २५ रूपये किलो क्यों ?


महिला आयोग की सदस्यों ने
मंच पर
दहेज़ प्रथा के खिलाफ खूब बोली ॥
पर जब
रिश्तों की बात चली
भरपूर मांग कर दीं ॥
याद दिलाने पर कहा
मंच की बात मंच पर ही ॥

Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:11pm — 3 Comments

क्या बिच्छु डंक मारना छोड़ सकता है ??

मुंबई पर
आतंकवादी हमलों (२६/११) के बाद
रेलवे स्टेशनों पर
लगाए गए थे
मेटल डिटेक्टर ॥
अब
हटा दिए गए ॥
पूछने पर अधिकारी ने बताया
पकिस्तान से
हमारे रिश्ते सुधर गए है ॥



मैं सोच रहा था
क्या सचमुच
एक बिच्छू
डंक मारना छोड़ सकता है ?

Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:09pm — 3 Comments

दिनचर्या

मैं नदियो पर बाँध बनाकर

और नहरें खोदकर ,

पानी किसानों के खेतों तक पहुचाता हू ॥

मैं सिंचाई विभाग में काम करता हू ॥





किसान कहते है

सर , जब फसलों में बालियां आती है

मेरे चेहरे में खुशियाली आती है ॥



पत्नी कहती है

जब किचन में लौकी काट देते हो

तुम अच्छे और सच्चे लगने लगते हो ॥







जब एक खिलाडी कम होता है

बच्चे कहते है ...

अंकल , बोल्लिंग कर दो न

कर देता हू ...

फिर कहते है ..थैंक अन्कल ॥



मैं… Continue

Added by baban pandey on July 14, 2010 at 6:37am — 1 Comment

मेरी कविता को लिफ्ट करो

हे ! प्रभु !!

महंगाई की तरह

मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥

सब मेरे प्रशंसक बन जाए

ऐसा कुछ गिफ्ट करो ॥





जब भारतीय नेता न माने

जनता -जनार्दन की बात

डंके की चोट पर

वोटिंग मशीन पर हीट करो ॥

मेरी कविता को लिफ्ट करो





जब न पटे , हमारी - तुम्हारी

और काम न बने न्यारी -न्यारी

मत देखो इधर - उधर

दूसरी पार्टी में शिफ्ट करो ॥

मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥





जब कानून की जड़े हिल जायें

और न्याय व्यवस्था सिल… Continue

Added by baban pandey on July 13, 2010 at 10:50pm — 2 Comments

मेरी कविता जलेबी नहीं है

मित्रो , कविता पढना प्रायः दुरूह कार्य है ...यह तब और कठिन हो जाता है ..जब कविता जलेबी हो हो जाती है , मेरा मतलब है , उसका अर्थ केवल ही कवि महोदय ही

explain कर सकते है ...कई मित्रो ने चाटिंग के दौरान मुझे बताया कि आप सरल रूप में लिखते है और कविता का भाव मन में घुस ... जाती है ।, आज अभी इसी के ऊपर एक कविता ....धन्यवाद



मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है ॥



रहती है गरीबों के घर

किसानों की सुनती है यह

ये कोई हवेली नहीं है

मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है… Continue

Added by baban pandey on July 13, 2010 at 12:52pm — 3 Comments

सत्य आने के बाद

जब सत्य की नदी बहती है
तो, झूठ के पत्थर
अपना वजूद खो देते है ॥

जब सत्य की आंधी आती है
तो, झूठ के बांस -बल्लियों से
बने मकान ढह जाते है ॥

जब सत्य के रामचन्द्र आते है
तो झूठ का रावण
भस्म हो जाता है ॥


और जब सत्य से प्यार हो जाता है
तो , हम शबरी की तरह
जूठे बैर भगवान को भोग लगाते है ॥

Added by baban pandey on July 12, 2010 at 7:39am — 2 Comments

आओ , दोस्ती को पंख लगायें

दोस्ती ... एक कलम

और मित्रों का प्यार .....एक अमित स्याही

दोस्तों से गुजारिश

ये स्याही मुझे देते रहो

इस स्याही से लिखना है मुझे

एक ऐसी कहानी

जिसे पढ़कर ......

कोई कभी ना कहे

"दोस्त , दोस्त ना रहा " ॥





दोस्त .... एक कुदाल

और दोस्ती ....मेहनत

आओ ... साथ मिलकर

मोहब्बत के कुछ ऐसे पेड़ लगायें

जिसके फल

प्रभु के चरणों में रखे जा सकें ॥



दोस्त है.... फूल

और दोस्ती ...उसकी खुशबू

आओ ! मेरे दोस्त

दिल… Continue

Added by baban pandey on July 11, 2010 at 8:45am — 3 Comments

झरना --

श्वेत धवल सी ओ झरना

जीवन मेरा सहज कर देना

कैसे तुम वेगमय हो

इसका राज मुझे बतला देना .... ॥



सब कहते है ऊपर जाओ

पर तुम नीचे क्यों आती हो

क्यों अपने साथ -साथ

पथ्थरो पर कहर बरपाती हो ॥



जीवों के तुम तृप्तिदायक

माना , संगीत तुम्हारा है पायल

पर , अपने थपेड़ों से तुमने

वृक्षों को क्यों कर दिया घायल ॥



भर बरसात उछलती हो तुम

पक्षियो जैसी साल भर नहीं कूकती

गर्मियों में जब हलक हो आतुर

उसी समय तुम क्यों सूखती…
Continue

Added by baban pandey on July 10, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

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