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आचार्य संदीप कुमार त्यागी's Blog – April 2011 Archive (2)

कालचक्र

कालचक्र : आचार्य संदीप कुमार त्यागी

 

ओस कण भी दोस्तों अँगार हो गये ।

घास के तिनके सभी तलवार हो गये॥

 

रौंदते ही जो रहे फूलों को उम्र भर।

देखलो उनके सभी गुलखार हो गये॥

 

था यकीं जिनपर उन्हें सौ फीसदी कभी।

सब फरेबी देखलो मक्कार हो गये ॥

 

टाँकते थे जो हमारे आसमां पर चिंदियाँ।

चीथड़ों में आज वो सरकार हो गये॥

 

कीजियेगा क्या उन्हें देकर सलाम ।

आजकल वो दुश्मनों के यार हो…

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Added by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on April 24, 2011 at 9:30pm — 1 Comment

"देशवासियों तन्द्रा तोड़ो"

देशवासियों तन्द्रा तोड़ो।

आखें खोलो आलस छोड़ो।

उठो जगो बढ़ चढ़ो दुश्मनों

के रुण्डो मुण्डों को फोड़ो।

 

खुली चुनौती मिली मुम्बई

की कर लो स्वीकार ।

बचना पाये तुमसे कोई 

घुसपैठी गद्दार

अगर हिफ़ाजत करे दुश्मनों

की कोई सरकार।

जड़ से उसे उखाड़ फेंकना

और करना ये हुँकार-

भारतमाता की जय।

 

आस्तीन में छिपे भुजंगों

के फण त्वरित मरोड़ो

जहर भरा है जितना भी

सबका सब आज निचोड़ो

छोड़ो…

Continue

Added by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on April 16, 2011 at 2:01am — 1 Comment

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