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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (496)

पिता - दोहे

दोहे -पिता

*****

पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस

वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।

*

जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव

सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।

*

जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह

अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।

*

डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात

सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।

*

नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह

हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।

*

पत्थर से व्यवहार…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो

अब रक्त डूबी  इस  में  न कोई कहानी हो।।

*

होता अगर  हो  प्यार  का  आबाद हर नगर

हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।

*

भटको न आस पास  के  रंगीं नजारे देख

पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।

*

हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर

कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।

*

किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे

मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो

*

दिल है जवाँ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments

संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं-(गजल)

आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा

अब एक दूसरे  को  चिढ़ाया न जाएगा।।

*

यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है

वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।

*

मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं

आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।

*

बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा

सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।

*

संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं

कोई भी भेद-भाव  हो  गाया न जाएगा।।

*

होगी समान न्याय की जब रीत देश में

तब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2022 at 6:18pm — 2 Comments

गुण्डे समूची फौज ले थाने पे आ गये -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

बाबर से यार  जो  भी बुलाने पे आ गये

इतिहास लिख के झूठ छुपाने पे आ गये।१।

*

अनबन से घर की गैर जो न्योते गये कभी

अपनों के बाद खुद भी निशाने पे आ गये।२।

*

पुरखों को अपने भूल के अपनाते गैर को

ये  कौन  लोग  देश  जलाने  पे  आ  गये।३।

*

कानून कैसे आज भी पहले सा है विवश

गुण्डे समूची  फौज  ले  थाने  पे आ गये।४।

*

गुजरा वो दौर बम से जो दहले था देश पर

पत्थर से  आज  शान्ति  उड़ाने  पे जा गये।५।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2022 at 9:30pm — 4 Comments

दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

जो व्यक्ति जग में जन्म से अपना इमाम हो

बोलो किसी भी और का क्योंकर ग़ुलाम हो।।

*

इतनी न आपने देश में फैले अशान्ति फिर

घर में सभी के आज भी पौदा जो राम हो।।

*

चाहे किसी भी कौम से नाता हो फर्क क्या

जाफर न  घर  में  आप के, पैदा कलाम हो।।

*

दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में

अब्दुल गणेश जोन या करतार नाम हो।।

*

छोड़ो ये खानदान ये मजहब ये जातियाँ

सबकी वतन में देखिए पहचान काम हो।।

*

नफरत लिए न भोर के बैठी हो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2022 at 9:58am — 2 Comments

बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं

मीनारें नफरतों  की  ये ढहती नहीं कहीं।।

*

जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा

इतिहास खोद  बस्तियाँ  मिलती नहीं कहीं।।

*

होली में कब वो  रंग  में डूबा था पूछ मत

अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।

*

मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह

आये हैं ऐसी  राह  जो  खुलती नहीं कहीं।।

*

मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें

बातें जो  वामियान  की  थमती नहीं कहीं।।

*

बाबर ढहाया तोड़ के…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2022 at 12:55pm — 2 Comments

खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

*

कैसे कैसे  सर  बचाने  में  लगे  हैं  लोग  सब

क्या समझ खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।

*

एक हम हैं जो शिखर पर जान देने पर तुले

नींव के  पत्थर  बचाने  में  लगे हैं लोग सब।।

*

लहलहाते  खेत  मेटे  सेज  के  विस्तार को

आजकल बन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।

*

जिसको देखो आग ही की बात करता है यहाँ

कैसे कह दें  घर  बचाने  में  लगे  हैं लोग सब।।

*

हैं सुरक्षित सोचकर वो भीड़ में शामिल मगर

अपने भीतर डर  बचाने  में  लगे हैं…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2022 at 12:58pm — No Comments

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

मजहब की नफरतों का ये मन्जर नया नहीं

टोपी तिलक के बीच का अन्तर नया नहीं।१।

*

कितनों को कोसें और कहें जा निकल अभी

जाफर विभीषणों से भरा घर नया नहीं।२।

*

कितना बचेंगे साध के चुप्पी भला यहाँ

अपनों की आस्तीन का खन्जर नया नहीं।३।

*

उन की जुबाँ पे आज भी बँटवारा बैठा है

अपनों से पायी पीर का सागर नया नहीं।४।

*

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने

देना तो देश दुनिया को उत्तर नया नहीं।५।

*

उलझे हुओं की सोच में तारण उसी से…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2022 at 9:39pm — 2 Comments

जब है मंदिर और मस्जिद में वही - लक्ष्मण धामी " मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए

दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।

*

देशहित में क्या भला है आप भी

कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।

*

जब है मंदिर और मस्जिद में वही

आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।

*

सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया

क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।

*

धर्म  माटी  को  समझकर  देश  की

आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।

*

चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का

आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।

*

फिर उठाना दूसरे की आप सौं

पहले पूरा इक वचन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2022 at 10:45pm — 2 Comments

मातृ दिवस पर गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी

मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।

*

चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के

समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।

*

माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर

नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।

*

गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ

मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।

*

पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक

लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।

*

चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2022 at 12:31pm — 10 Comments

तन-मन के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

तन-मन के दोहे

-------------------

चतुर लालची मन हुआ, भोली देह गँवार

जब तब जैसा मन कहे, होती वह तैयार।१।

*

सहज देह की भूख है, निदिया, रोटी, नीर

जग में पर बदनाम है, मन से अधिक शरीर।२।

*

तन को थोड़ा चाहिए, मन की माग अनंत

कहते मन बस में रखो, इस कारण ही सन्त।३।

*

बढ़े भावना काम की, करें नैन व्यभिचार

केवल साधन देह तो, मन साधक की मार।४।

*

तन से बढ़कर मन रहे, नित्य विषय में लीन

जिस की बातें मानकर, कर्म करे तन हीन।५।

*

विषय मुक्त जो मन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2022 at 1:59pm — 8 Comments

रक्त से भीगा है आगन आज तक भी -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

2122-2122-2122

झूठ का  सन्सार  करना  चाहता है

सत्य पर नित वार करना चाहता है।१।

*

जो न रखता वास्ता अपनो से कोई

अन्य का  आभार  करना चाहता है।२।

*

देह को पतवार करके आदमी अब

हर नदी को  पार  करना चाहता है।३।

*

भाव गुणना आज भी आया नहीं पर

शब्द  का  व्यापार  करना  चाहता है।४।

*

भीड़ से लगने  लगा  अब डर बहुत

डर को भी हथियार करना चाहता है।५।

*

तोड़ देता था कभी दिखते ही उसको

अब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2022 at 11:00am — 9 Comments

कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ

गजल

221/2121/1221/212

*

लेखन का खूब गुण जो सिखाता है ओबीओ

कारण यही है सब  को  लुभाता  है ओबीओ।।

*

जुड़कर  हुआ  हूँ  धन्य  निखर  लेखनी गयी

परिवार  जैसा   धर्म   निभाता   है  ओबीओ।।

*

कमियों बता के दूर करें कैसे यह सिखा

लेखक सुगढ़ हमें यूँ बनाता है ओबीओ।।

*

अच्छा स्वयं तो लिखना है औरों को भी सिखा

चाहत ये सब के  मन  में  जगाता  है ओबीओ।।

*

वर्धन हमारा  हौसला  करने  को साथ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2022 at 8:20am — 17 Comments

आभार - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (दोहे)

मात -पिता ने जन्म दे, पाला, किया दुलार।

प्रथम करें हम इसलिए, उनका ही आभार।।

*

गुरुओं ने जो  ज्ञान दे, जीवन दिया सँवार।

चाहे जितना भी करें, कम पड़ता आभार।।

*

सखा, सहेली, मीत जो, सुख दुख में तैयार।

उनका भी तो हम करें, नित थोड़ा आभार।।

**

आस - पड़ौसी जो करें, प्रेम भरा व्यवहार।

हक से उनका भी करें, चलो आज आभार।।

*

सदा चिकित्सक दे दवा, करते हैं उपचार।

जीवन रक्षण के लिए, उनका भी आभार।।

*

अन्य सभी जो  भी  हुए, जीवन  में…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2022 at 10:00pm — 4 Comments

वानिकी के दोहे

सदा कीजिए वानिकी, मिलती इससे छाँव।

नगर प्रदूषण से  रहित, प्यारा  लगता गाँव।।

*

जन जीवन है पेड़ से, नहीं पेड़ को काट।

पेड़ बिना है यह  धरा, बस  रेतीला घाट।।

*

अपने दम पर वानिकी, जीवित रखे पहाड़।

बची नहीं  जो  वानिकी, धरती  बने उजाड़।।

*

इन से ही सुन्दर लगे, इस धरती का रूप।

पेड़ बहुत हैं  काम  के, हरते  तपती धूप।।

*

वन सिखलाते हैं सदा, जीवन की हर रीत।

पुरखों ने सच ही कहा, इनको अपना मीत।।

*

पर्वत पथ तट जो रहे, लम्बी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2022 at 10:00pm — 3 Comments

होली  की  हर रीत (दोह) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अहंकार की हार हो, जीते नित्य विनीत।

इतना ही  संदेश  दे, होली  की  हर रीत।१।

*

दहन होलिका का करो, होली के त्योहार।

तजकर ही होली मने, पाखण्डी व्यवहार।२।

*

रंग अनोखे  थाल  भर, हर  घर गाती फाग।

होली कहती मिल गले, भेद भाव को त्याग।३।

*

कहकर बाँटें रंग ढब, मत रख खाली हाथ।

निखरा लाल पलास तो, सेमल आया साथ।४।

*

होली सब को पर्व हो, चाहे बिलकुल एक।

मन में उठी उमंग  जो, उस के अर्थ अनेक।५।

*

चाहे सूखी खेलना, या फिर पानी डाल।

पर्व…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2022 at 10:27pm — 2 Comments

अनोखे रंग - दोहे

फैला आँचल है बहुत, लेकिन चोली तंग।

धरा  देश  की  देखिए, लिए  अनोखे रंग।।

*

भरें अनोखे रंग नित, जीवन में त्योहार।

तभी सनातन धर्म में, है इनकी भरमार।।

*

बहना, माता, सहचरी, बंधु , तात आधार।

भरे अनोखे रंग नित, मीत रूप में प्यार।।

*

बचपन यौवन वृद्धता, चलते संग कुसंग।

नित  जीवन  देता  रहा, हमें  अनोखे रंग।।

*

बड़े अनोखे  रंग  यूँ, रखती धरती पास।

पानी पानी है कहीं, कहीं सिर्फ है प्यास।।

*

विविध अनोखे रंग की, मौसम मौसम धार।

धरती…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2022 at 11:54pm — 4 Comments

नवयुग की नारी (गीत)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

यह नवयुग की नारी है, सुमन रूप चिंगारी है।।

अबला औ' नादान नहीं अब।

दबी हुई पहचान नहीं अब।।

खुली डायरी का पन्ना है,

बन्द पड़ा दीवान नहीं अब।।

अंतस स्वाभिमान भरा है, लिए नहीं लाचारी है।।

यह नवयुग की नारी है.....

संघर्षों में तप कर निखरी।

पैमानों पर चोखी उतरी।।*

जितना इसको गया दबाया,

उतना बढ़चढ़ यह तो उभरी।।*

हल्के में मत इस को लो, छिपी हुई दोधारी है।।

यह नवयुग की नारी है.....

इसका साहस जब नभ गाता।

करता…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2022 at 8:54pm — 8 Comments

युद्ध के दोहे- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

देगा हल क्या ये भला, स्वयं समस्या युद्ध

दम्भी इस को ओढ़ता, तजता सदा प्रबुद्ध।१।

*

युद्ध न लाता भोर है, यह दे केवल साँझ

इस के हर परिणाम से, होती धरती बाँझ।२।

*

सज्जन टाले युद्ध को, दुर्जन दे सत्कार

जो झेले वह जानता, कैसी इसकी मार।३।

*

लोग समझते शांति की, यह रचता बुनियाद

लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।४।

*

इससे बढ़ता नित्य ही, दुख का पारावार

जाने अन्तिम युद्ध कब, होगा इस संसार।५।

*

सदा प्रगति शान्ति का, युद्ध बना अवरोध

लेकिन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2022 at 2:36pm — No Comments

शिवमय दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

भीम, महेश्वर,  शम्भवे,  शंकर,  भोलेनाथ

गंगाधर, श्रीकण्ठ का, सबके सिर पर हाथ।१।

*

गिरिश, कपाली, शर्व ही, शिवाप्रिय, त्रिलोकेश

कृत्तिवासा, शितिकण्ठ का, हिममय है परिवेश।२।

*

वो सर्वज्ञ, परमात्मा, अनीश्वर, त्रयीमूर्ति

हवि,यज्ञमय, सोम हैं, करते इच्छा पूर्ति।३।

*

शूलपाणी , खटवांगी , विष्णुवल्लभ, शिपिविष्ट

भक्तवत्सल,  वृषांक  उग्र,  करते  हरण अनिष्ट।४।

*

तारक,  परमेश्वर,  अनघ,  हिरण्यरेता,  गणनाथ

शशि को धर शशिधर हुए,…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2022 at 12:26am — No Comments

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