For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Anurag Singh "rishi"'s Blog – June 2013 Archive (6)

"गज़ल-ए-जिंदगी"

मुझसे मेरी हयात ऐसी दिल्लगी करे

मंजिल का मेरी फैसला आवारगी करे



तुझसे भी हैं ज़रूरी दुनिया में और काम

सब को भुला के कौन तेरी बंदगी करे



बेपीर बेमुरव्वत मुझसे न पूंछ कुछ भी

मेरा बयान-ए-हाल ये बेचारगी करे



मुद्दत से थोड़े ख्वाब सहेजे हैं आँख में

की इंतज़ार-ए-आब जैसे तिश्नगी करे



हर रोज सबसे छुप कर किसकी हैं ये दुआएं

शामों में आफताब सी ताबिन्दगी करे



रोऊँ तो ये हंसाए, हँसता हूँ तो रुलाए

मुझको यूँ परेशान मेरी जिंदगी… Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 29, 2013 at 12:13pm — 13 Comments

"वादा करो"

मै खड़ा हूँ यूँ बांहों को खोले हुए

मेरी बाँहों में आने का वादा करो

मै जहाँ ये भुला दूँगा सुन लो मगर

मुझको दिल में बसाने का वादा करो



मै जो अब तक अकेला हूँ जीता रहा

धुंधले ख्वाबों को आँखों से सीता रहा

ये जो कोरी पड़ी है मेरी जिंदगी

रंग अपना चढ़ाने का वादा करो



मै खड़ा हूँ यूँ बांहों को खोले हुए

मेरी बाँहों में आने का वादा करो



तुम जो रूठी तो तुमको मना लूँगा मै

तुमको पल भर में अपना बना लूँगा मै

मै भी रूठूँगा…

Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 24, 2013 at 6:30pm — 16 Comments

"शुक्रिया"

यूँ पाठ जिंदगी का पढ़ाने का शुक्रिया

की बेरुखी से मुझको भुलाने का शुक्रिया



गुज़रे हुए निशान कुछ रेती पे पैर के

यादें यूँ अपनी छोड़ के जाने का शुक्रिया



कोई तो चाहिए ही था इक हमसफ़र तुझे

दिल में किसी को और बसाने का शुक्रिया



रातों से हो गयी है मुहब्बत सी अब हमें

ख्वाबों में ही दीदार कराने का शुक्रिया



दिल मोम का है सोंच के रोता रहा सदा

पत्थर कि तरहा दिल को बनाने का शुक्रिया



मुझको लगा ये काफ़िला मेरे ही साथ है…

Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 10, 2013 at 1:15pm — 11 Comments

गज़ल - "परवाज़"

भले ही आज जीवन में, तेरे कायम अँधेरा है

इसी दुनिया में ही लेकिन, कहीं रौशन सवेरा है



मै इक ऐसा परिंदा हूँ, नही सीमाएं है जिसकी

मेरी परवाज़ की खातिर, ये दुनिया एक घेरा है



कभी हिंदू कभी मुस्लिम. रहे हैं हारते हरदम

सियासत खेल ऐसा है, न तेरा है न मेरा है



कुतरते ही रहे है देश को, हरदम जहाँ नेता

इसे संसद न कहियेगा, ये चूहों का बसेरा है



न जलती है न मरती है, महज़ कपड़े बदलती है

“ऋषी” इस रूह की खातिर, ये जीवन एक डेरा है …

Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 7:30am — 13 Comments

"वापस न जाइये"

दिल के करीब आइये कुछ तो बताइए
यूँ आग को सुलगा के भला क्यों बुझाइए ?

दुनिया के डर से आप को तनहा न छोडिये
बस आँख बंद कीजिए मुझमे समाइये

रोयी है बहुत आँख मुकम्मल ये जिंदगी
पलकों पे मेरी फिर नए सपने सजाइए

जीवन के ओर छोर का कुछ भी पता नही
यूँ जिंदगी में आइये वापस न जाइए

मुमकिन है थोड़ी गलतियाँ होती रही “ऋषी”
खुद को न ऐसे कोसिए न ही सताइए

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Added by Anurag Singh "rishi" on June 3, 2013 at 7:35pm — 7 Comments

"दिल में उठता पीर देखो"

दिल में उठता पीर देखो
द्रोपदी का चीर देखो

मोल जिसका खो गया है
आँख का वो नीर देखो

दिल में जो सीधे लगे बस
शब्द के वो तीर देखो

फिर हुआ बलवा कहीं पे
खो गया जो वीर देखो

थी कभी नदियाँ यहाँ पर
बह गया जो छीर देखो

सांवरे को भूल कर के
आज राँझा हीर देखो

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक व अप्रकाशित रचना

Added by Anurag Singh "rishi" on June 1, 2013 at 6:00pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
53 minutes ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
14 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service