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अरुण कान्त शुक्ला's Blog – April 2012 Archive (3)

हमें आजादी चाहिये --

हमें आजादी चाहिये --

 

चाहिये ,चाहिये , चाहिये ,

हमें आजादी चाहिये ,

तुम्हारे गम से , तुम्हारी खुशी से ,…

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Added by अरुण कान्त शुक्ला on April 15, 2012 at 12:30am — 7 Comments

कोई बाबा निर्मल नहीं -

कोई बाबा निर्मल नहीं

सब मन के बड़े मैले हैं ,

दौलत के ढेर पर बैठे

ये ठग बड़े लुटेरे हैं ,

व्यापार इनका धर्म है

धर्म का करते…

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Added by अरुण कान्त शुक्ला on April 14, 2012 at 12:30am — 11 Comments

ठठकरम

           

 

 माँ की बात सुनते ही पिताजी के दोनों बड़े भाईयों का चेहरा ऐसा हो गया था मानो दोनों गाल पर किसी ने एक साथ तमाचा मारा हो | एक क्षण के लिए तो ऐसा लगा था कि  वे उत्तेजित होकर न जाने क्या कर बैठें या फिर नवांगतुक को साथ लेकर घर छोड़कर ही न चले जाएँ | पर , ऐसा कुछ नहीं हुआ | नवांगतुक जो पिताजी के सबसे बड़े भाई याने मेरे दादाजी के साले थे , असहज हो गए थे और सहज होने के प्रयास में फर्श पर रखे अपने पांवों को जोर जोर से हिला रहे थे | काफी देर तक निस्तब्धता छाई रही | हमेशा हाथ…

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Added by अरुण कान्त शुक्ला on April 1, 2012 at 11:31pm — 3 Comments

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