पीड़ा का इक पल दर्पण
टूटा पल मे, पल मे बिखर गया |
इक मोती सा विश्वास मगर,
अन्तस मे कहीं ठहर गया |
उमडाया ये खालीपन,
गहराया ये सूनापन,
एकान्त अकेला कहीं गुजर गया |
मन ने वीणा के फ़िर तार कसे
उठो, कोई चुपके से ये कह गया |
विचलित होता अन्त:मन,
उभरा हर क्षण ये चिन्तन,
मन अनजाने ये किधर गया |
ह्र्द्य मे अपना सा एह्सास लिये
भींगी आंखो मे जो उभर गया |
करता पल पल ये क्रन्दन,
धडका बूंद बूंद ये जीवन,
छांव ममता…
Posted on September 25, 2010 at 9:00am — 4 Comments
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सदस्य टीम प्रबंधनRana Pratap Singh said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…