For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

It's अनुपिन्द्र सिंह's birthday today!

अनुपिन्द्र सिंह
Share on Facebook MySpace
  • Feature Blog Posts
  • Discussions (1)
  • Events
  • Groups
  • Photos
  • Photo Albums
  • Videos
 

अनुपिन्द्र सिंह's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
पानीपत
Native Place
करनाल
Profession
JEA at iocl Panipat
About me
ग़ज़लकार हिंदी पंजाबी

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 11:23pm on July 28, 2018, अनुपिन्द्र सिंह said…
तरही ग़ज़ल 97
जब लुटेरे ही चमन के बागबाँ हो जाएंगे
देखना बर्बाद सारे गुलिस्तां हो जाएंगे

झूठ से पर्दा उठेगा किस तरह फिर दोस्तो
देखकर सबकुछ अगर हम बेजुबां हो जाएंगे

आँख में जब तक हैं आंसू हैं बहुत ही काम के
आंख से टपकेंगे तो ये रायगां हो जाएंगे

पंछियों ने आज जो तिनके उठाये चोंच में
देखना इक रोज़ ये भी आशियाँ हो जाएंगे

हौसला ही दूर तेरे दिल से जिस दिन हो गया
दूर तुझसे ये ज़मीनो आसमाँ हो जाएंगे

बैठ जाएंगी हमारे सर पे चढ़के मुश्किलें
जब भी इनके आगे हमतुम नातवां हो जाएंगे

मौलिक और अप्रकाशित
At 7:18am on June 28, 2015, अनुपिन्द्र सिंह said…
शुक्रिया मिथिलेश जी
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"सूट-बूट ठाट-बाट,ख्वाबों की चली बरात,ख्वाब ऊँचे आलीशान,देेखने ही चाहिये .रोज- रोज आसपास,दिखते जो लोग…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह  आदरणीय अशोक भाईजी, आपने एक ही छंद में प्रदत्त चित्र को उकेर कर रख दिया है. इस…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आयोजन में प्रस्तुत हुई रचना पर आपने समय दिया है. किंतु, काश आपने इस छंद…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति आयोजन की प्रथम रचना बन कर प्रस्तुत हुई है. इस हेतु विशेष…"
20 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   आज धन मान आस, हो न पास किन्तु कल, मैं भी देखना बढूँगा, आन बान शान से। कोई…"
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छन्द सपने खुले नैन के, होते नहीं हैं रैन के, कर्म हो उत्साह भी तो, ये सही प्रयास…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"तैल चित्र सम्मुख बालक के दे रहा प्रेरणा बनना है उसको पढ़कर पिता समान बाबू । स्कूल जाते बस्ता…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 177 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |इस बार का…See More
Thursday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . होली

दोहा पंचक. . . . . होलीअलहड़ यौवन रंग में, ऐसा डूबा आज ।मनचलों की टोलियाँ, खूब करें आवाज ।।हमजोली के…See More
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहे -रिश्ता

सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।*वह रिश्ते ही सच  कहूँ,…See More
Thursday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"आदरणीय अखिलेश से सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Mar 16
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Mar 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service