हास्य से सराबोर गुदगुदाते पल
काश गर्मी के महीनों में भी जाड़ा होता
तो शबेवस्ल का मेरी यों न कबाड़ा होता
कैस ने फाड़ लिये जोशेजुनूं में कपड़े
पैरहन हमने तो लैला का ही फाड़ा होता
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Albums: दि. 12/ मार्च/ 2013 की काव्य-संध्या
Location: नैनी, इलाहाबाद
Comment
कल के विशिष्ट ग़ज़लकार, फ़रमूद भाई.. .
आपकी हास्य ग़ज़लें इलाहाबाद की उस परंपरा का निर्वहन करती हैं जिसकी नींव अकबर इलाहाबादी डाल गये हैं. कल फ़रमूद भाई पनी रौ में थे.. !!!
:-))))) ..
रटता आया रट्टू तोता आता जाता कुछ नहीं
बना है अकबर का पोता आता जाता कुछ नहीं.. हा हा हा हा.. .
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