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धर्मकोट गाँव अब यहाँ के पारम्परिक व्यंजनों का स्थान पिज्जा और पास्ता ने ले लिया है

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2012 at 10:46pm

आपके हार्दिक दुःख को समझ सकता हूँ, आदरणीय गणेशभाईजी.

हम अस्सी के दशक में पिताजी के साथ सपरिवार काठमाड़ौ (काठमाण्डू शहर का नेपाली भाषा में उच्चारण) गये थे.  अपने निवास के निकट ही कमलादी क्षेत्र में एक परिवार था. परिचय हो गया. पिताजी ने उनसे स्पष्ट रूप से पूछा था कि क्या हम उनके घर में खाना खा सकते हैं. हम जबतक काठमाड़ौ में रहे वे लोग खाना खाने के समय हमें आदर से अपने घर लिवा ले जाते थे. हम उनकी रसोई में पालथी बैठ कर सपरिवार खाना खाते थे. हमारा वह प्रवास हफ़्ते भर से ज्यादा रहा था.  मुझे नहीं लगता कि आज काठमाड़ौ का वह कमलादी क्षेत्र ऐसा रह गया होगा.  वाकई अब सब कुछ ’मार्केटिंग’ की नज़्र हो गया है. और यह ’मार्केटिंग’ हमसे बहुत कुछ छीमती जा रही है.

 

ज्ञातव्य :  कमलादी शहर के ठीक बीचोबीच का मुहल्ला है.

Comment by ganesh lohani on July 23, 2012 at 2:44pm

आदरनीय भाई जी बहुत दुखद: है अब  इस गाँव में घर आंगन के आस पास साग सब्जी की क्यारियां नजर नहीं आती  सिर्फ कंक्रीट का जंगल नजर आता है | यहाँ के कास्तकारों की जमीन पर बंगलों में यहाँ के लोग नौकरी करते है |देसी खाना छोड़ पिज्जा और पास्ता उड़ा रहे हैं| एन लोगों ने अपना पारम्परिक व्यसाय भेड़ पालन तो छोड़ ही दिया साथ ही अपनी संसकिर्ती भी भूल गये है | घर का हर कमरा गेस्ट हाउस में तब्दील हो गया है |इस गाँव में अधिकतर इरानी पर्यटक टहरते हैं | कई दिन होटल के खाने से उबकर सादा खाना का मन हुआ | बड़ी मुस्किल से एक घर में अजीत पठानिया जी तयार हुए | लेकिन शर्त रखी की तुम्हे साथ में हाथ बत्ताना होगा | दाल चावल पालक की भाजी खीरे रायता बनाया |बड़ा आनंद आया | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 3:44pm

भाईजी, इस महाविनाशी सार्वभौमिकता को ’मार्केटिंग’ कहते हैं .. .

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