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!!! सद्गुरू !!!


मैंने मन को नहीं संवारा, प्रारब्ध कर्म नहीं विचारा।
जन्म-जन्म से जनम बिगाड़ा, आज भी सोया है इंसान।
आज भी सोया है इंसान, मुक्ति कब होगी श्रीमान!1

अब तक लख चौरासी भोगा, फंसते रहें सदा हठ योगा।
जीना-मरना है धिक्कारा, केवल कामहि लिया पहिचान।
केवल कामहि लिया पहिचान, मुक्ति कब होगी श्रीमान!2

माया-मोह-लोभ-जड़ सारा, करें सदा मिथ्या व्यवहारा।
मेरा अहम-कपट-मक्कारा, करता नहीं सदगुरू का ध्यान।
करता नहीं सदगुरू का ध्यान, मुक्ति कब होगी श्रीमान!3

सृष्टी चौबिस तत्व बखाने, चतुष्टय अन्तःकरन न जाने।
वेद-दर्शन की झूठी शान, जड़-चेतना का योग महान।
जड़-चेतना का योग महान, मुक्ति कब होगी श्रीमान!4

मैंने ईश्वर कह भरमाया, हर पल सदगुरू को झुठलाया।
मेरा संशय-अधम-विकारा, करता नहीं सदगुरू का ध्यान।
करता नहीं सदगुरू का ध्यान, मुक्ति कब होगी श्रीमान!5

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

सुंदर

आदरणीय, आशीष कुमार त्रिवेदी जी, आपको रचना पसन्द आई।  आपका हार्दिक आभार।   सादर,

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