For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शैवागमीय प्रत्यभिज्ञा-दर्शन की ईषत जानकारी -डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

  

 

        महाकवि जयशंकर ‘प्रसाद’ ने अपनी कालजयी कृति ‘कामायनी’ में शैवागम के प्रसिद्ध दर्शन ‘प्रत्यभिज्ञा’ के सिद्धांतो का  आलंबन लेकर कामायनी के कथानायक वैवस्वत मनु को  इच्छा ,क्रिया और ज्ञान के समरस होने पर परम आनंद की स्थिति में पहुंचाकर ‘आनंदवाद’ को मानव जीवन का परम लक्ष्य बताया है I कामायनी के अध्येता को कामायनी पर दृष्टि डालने से पूर्व प्रत्यभिज्ञा दर्शन के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है  I यही इस लेख का प्रमुख प्रतिपाद्य है I

        मान्यता है कि वैदिककाल मे शैव संप्रदाय के केवल दो मत थे –पाशुपात और आगमिक I महाभारत काल में इसके चार स्वरुप हो गए – शैव ,पाशुपात, कालदमन या कालमुख और कापालिक I कालांतर में वैदिक कालीन पाशुपात और आगमिक के निम्नांकित भेद हुए -

पाशुपात के भेद

1-      पाशुपात

2-      लघुलीश पाशुपात

3-      कापालिक

4-      नाथ संप्रदाय

5-      गोरक्षनाथ संप्रदाय

6-      रंगेश्वर

आगमिक शैवमत

1-     शैव सिद्धांत

2-     तमिल शैव

3-     काश्मीर शैव

4-     वीर शैव्

          उक्त में आगमिक के अंतर्गत आने वाला कश्मीर शैव मत का दर्शन ही प्रत्यभिज्ञा दर्शन है I इसके मूल प्रवर्तक आचार्य वसुगुप्त (काल लगभग 800 ई. शती) माने जाते है । इस सम्बन्ध में आचार्य क्षेमराज ने 'शिवसूत्र'  में एक दिलचस्प घटना का हवाला दिया है  I उन्होंने लिखा है कि भगवान् श्रीकंठ ने वसुगुप्त को स्वप्न में स्वयं प्रकट होकर आदेश दिया कि कश्मीर में महादेवगिरि के एक शिलाखंड पर शिवसूत्र उत्कीर्ण है, जाओ उसे समझो और उसका  प्रचार करो । यह स्वप्न सच साबित हुआ  I  जब वसुगुप्त  ने महादेव गिरि  का सर्वेक्षण किया तो  उन्हें एक शिला पर  सतहत्तर  शिवसूत्र उत्कीर्ण मिले I तब से इस शिला को  कश्मीर में लोग शिवपल (शिवशिला) कहते हैं । इन सूत्रो की व्याख्या वसुगुप्त ने अपनी पुस्तक ‘स्पंदकारिका’ में की है I वसुगुप्त के दो शिष्य हुए – कल्लट और सोमानंद I कल्लट ने ‘स्पन्दासर्वस्व’ की रचना की और सोमानन्द  ने ‘शिव दृष्टि ‘ एवं ‘परातर्ति’ लिखी I सोमानंद के पुत्र एवं शिष्य उत्पलाचार्य   'ईश्वरप्रत्यकि'  का प्रणयन किया I यही से इस दर्शन का नाम प्रत्यभिज्ञा दर्शन पड़ा I इस दर्शन को अधिकाधिक स्पष्ट करने के लिए अनेक पुस्तके लिखी गयी है I इसीलिये इसके कई नाम और स्वरुप हो गए है I इसे त्रिक दर्शन ,स्पंद दर्शन भी कहा जाता है I त्रिक दर्शन में  पशु (जीव), पाश (बंधन) और पति (ईश्वर) इन तीन तत्वों को स्थान दिया गया है I त्रिक का एक अर्थ तीन प्रकार के तंत्रों से भी लगाया जाता है I यह एक अद्वैतवादी दर्शन है I इसके मूल में शिव है I वही एक मात्र आदि शाश्वत तत्व है I वे ही बंधन और मोक्ष के प्रदाता है I  जबतक उनका समुचित प्रति-अभिज्ञान मनुष्य को नहीं होता तब तक वह मोक्ष पाने का अधिकारी नहीं हो पाता I प्रति-अभिज्ञान तब तक नहीं होता जब तक मनुष्य अहम् शिवोsस्मि की स्थिति में नहीं पहुँचता I इसी कारण इस दर्शन को प्रत्यभिज्ञा दर्शन कहा गया I वस्तुतः शिव ही सृष्टि का मूल तत्व है I यही पालक, निर्माणक और संहारक है I शिव से जो अभिन्न है वह शिव शक्ति है I प्रत्यभिज्ञा दर्शन में ये शक्तियां  पांच है I

1-    चिति प्राधान्ये शिव शक्ति

2-    आनंद प्राधान्ये शक्ति तत्त्वं

3-    इच्छा प्राधान्ये सदा शिव तत्वं

4-    ज्ञान शक्ति प्राधान्ये ईश्वर तत्वं

5-    क्रिया शक्ति प्राधान्ये विद्या तत्वं    

        उक्त सभी तत्वों की विशद व्याख्या प्रत्यभिज्ञा दर्शन में मिलती है I इस दर्शन के अध्येता को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि शिव और शक्ति में वस्तुतः कोई भेद नहीं है I शैव दर्शन में वैसे तो  छत्तीस तत्वों का उल्लेख हुआ है पर ये पांच ही शुद्ध मार्ग की ओर ले जाने वाले है I शेष तत्वों का सम्बन्ध माया से होने के कारण वे अनाविल (मुखर) नहीं होते I इस दर्शन में माया को जड़ एवं विमोहिनी शक्ति माना गया है I उक्त छतीस तत्वों में कुछ प्रमुख है – कला, विद्या,  राग, काल, नियति, प्रकृति, पुरुष, बुद्धि आदि I इन तत्वों का उल्लेख अन्य भारतीय दर्शनो में भी हुआ है पर उनमे समय नहीं है I

      प्रत्यभिज्ञा दर्शन में शिव ही ब्रह्म  है I वे ही सर्व-भक्षक (omniscient), सर्व-व्यापक (omnipresent) और सर्व-शक्तिमान (omnipotent) है I शिव के इसी रूप को ‘चिति’ कहते है जो सम्पूर्ण चराचर जगत में व्यक्त दिखाई पड़ती है I आचार्य  वसुगुप्त ने अपनी कारिका में इस ‘चिति’ या ‘महाचिति’  शब्द का बड़ा ही व्यापक और विशद वर्णन किया है I इसी के बारे में कहा गया हा कि यह स्वेच्छया या स्वमितौ विश्वमुन्मीलियत I अर्थात चिति स्वेच्छा या संकल्प से इस चराचर जगत को (सुमन सा ) खिलाती है I यह शक्ति ही आत्मा नाम से भी परिज्ञेय है I जिन छत्तीस तत्वों का परिगणन इस शैव दर्शन में किया गया है यह आत्मा उन सब में अभेदता के साथ स्फुरित होती है I

       प्रत्यभिज्ञा दर्शन में जीवात्म विचार अलग तरह का है I   इसमें जीव को पाश-बद्ध माना गया है I पाश का तात्पर्य तीन प्रकार के मल और कंचुको का आवरण है I मलो के नाम है- आणव, कार्म तथा मायीय I जब तक जीव इन बन्धनों और आवरणों से मुक्त नहीं होता तब तक उसे पशु कहा जाता है I जीव की मुक्ति के तीन उपाय बताये गए है – शाम्भव, शाक्त एवं आणव I  शाम्भव में जीव की स्थिति शिवोsहम हो जाती है I शाक्तोपाय में पूजा, अर्चा एवं ध्यान से अपने वास्तविक स्वरुप का साक्षात्कार करने लगता है I आणवोपाय में अणु-अणु में शिवानुभूति की शक्ति प्राप्त होती है I जीव के मोक्ष का यह स्वरूप गीता के ज्ञान, कर्म और भक्ति योग से मिलता जुलता है  I इस दर्शन के अनुसार जीव पांच अवस्थाओ में रहता है और  वे अवस्थाये है – जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय एवं तुरीयातीत I जीव की चार संज्ञाए भी है – सकल, प्रलयाकल, विज्ञानाकल और शुद्धा I जीव का शुद्धा रूप वही स्थिति है जब जीव शिवोsहम की स्थिति अर्थात सायुज्य अवस्था को प्राप्त कर लेता है I  इस अवस्था में वह इच्छा, क्रिया और ज्ञान से मुक्त हो जाता है I

       प्रत्यभिज्ञा दर्शन में प्रकृति अथवा सृष्टि का वही रूप है जो शिव के ‘महाचिति’ स्वरुप में दर्शाई गयी है I चित का आभास होने से जगत सत्य प्रतिभासित होता है I  जगत की सम्पूर्ण रचना माया द्वारा की गयी है I यहाँ माया उसी प्रकार है जैसा वेदांत में वर्णित है I वह ब्रह्म और जीव के बीच अज्ञान का आवरण है I यह शिव की चिति शक्ति से ही अनुप्राणित होती है I चिति शक्ति को काम की पुत्री या कामकला भी कहा गया है I

       यह दर्शन अपने आप में एक अथाह सागर है I किन्तु कामायनी के परिप्रेक्ष्य में  इसके जो अन्य सिद्धांत  विचारणीय है उनमे  नियतिवाद, समरसता और आनंदवाद प्रमुख रूप से विचारणीय है I नियतिवाद तो भारत के अनेक दर्शनों में छाया हुआ है पर प्रत्यभिज्ञा में इसका रूप कुछ अलग है I यहाँ नियति की अपनी एक पृथक सत्ता है, वह तत्वों में से एक है I नियति शैवागम में प्रशासिका है I  वह सम्पूर्ण विश्व का नियमन करने वाली व्यापक शक्ति है I इसका नियंत्रण बड़ा ही कठोर है I मनुष्य अपने कर्तव्य-कर्म का निर्धारण नियति की इन्गिति से करता है I

        शैव दर्शन में शिव और शक्ति का जो अभेद है वह अद्भुत है I  कभी इनमे पार्थक्य दिखता है I कभी उनमे सामरस्य परिलक्षित होता है I यह सामरस्य भी अजूबी चीज है I दूध में पानी मिलाओ  तो यहाँ सामरस्य नहीं होगा, यहाँ तादात्म्य होगा I  परंतु  दूध में दूध मिलाओ तब सामरस्य होगा I यही तो अभेद है I सुख-दुःखमय संसार में शिव एक मात्र रस है और जब शिव का प्रति-अभिज्ञान होता है तब जीव में समरसता आती है I सामरस्य आने पर जीव और शिव का भासित द्वैत समाप्त हो जाता है और वह आनंद –निस्पंद हो जाता है I यही प्रत्यभिज्ञा दर्शन का आनंदवाद है I

                                                  जाते  समरसानंदे   द्वैत्मप्यमुतोपमम I

                                                 मित्रयोरिव दम्पत्यो: जीवात्मपरमात्म्नो: II

        अर्थात सामरस्य से आनंद प्राप्त होते ही द्वैत की भावना समाप्त हो जाती है I पति-पत्नी मित्रवत लगते है और जीवात्मा परमत्मा हो जाता है I  यह आनंद शैव मत के अन्य संप्रदाय जैसे नाथ पंथी योगी और अवधूत आदि के कुण्डलिनी जागरण संबंधी यौगिक क्रियाओ की सिद्धि पर प्राप्त अनहद नाद से मिलने वाले आनंद की तरह प्रतीत होता है , जिसके सम्बन्ध में कबीर कहते है –

                                                ‘कबीरा मोती नीपजै शून्य शिखर  गढ़ मांहि I’

 

                                                                    

 

                                                                                                              ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना

                                                                                                               सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I

                                                                                                               मो0  9795518586

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

Views: 2214

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service