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आदरणीय वंदना जी ,
बड़ी रूचि से आपकी सुंदर आलोचनात्मक रचना को एक ही सांस में पढ़ डाला .
अधिक दोष भारतीय वर्तमान शिक्षा प्रणाली का है न कि शिक्षकों का .
सरकारी स्कूलों में एक कक्षा में 70- 80 छात्र दाखिल किय जातें है , निर्धारित 50 सीटों के विरुद्ध .
शिक्षा का अधिकार -राईट टू एजुकेशन के अंतर्गत किसी बच्चे को शिक्षा देने से इनकार नहीं किया जा सकता .
चंडीगढ़ जैसे पढ़े लिखे लोगों के नगर में भी सरकारी स्कूलों में 60 % प्रतिशत से भी अधिक विद्यार्थी स्लम एरिया -कालोनी के होते हैं मिड डे मील के कारण ही आते हैं -घरों में भी खाना ले जाते हैं .
प्राइमरी कक्षा के छात्र भी नशा करते हैं ,चाकू रखते हैं ,मोबाइल पर अश्लील देखते हैं .
चोरी करते हैं .अध्यापक ,प्रिंसिपल या पुलिस भी उन्हें हाथ लगाना तू दूर की बात है दांत भी नहीं सकते .
सहेलियाँ बनी हैं .
सभी कुछ मुफ्त है. लडकियो को ,शायद लडकों को भी राशि मिलती है -शिक्षा से घर में वितीय सहायता मिलती है .
इससे अधिक दुःख की बात क्या होगी कि अधिकार मंत्री चोर हैं .इक दिन की रोटी का खर्चा एक रुपया बतलाते .
छात्रों को लैपटॉप ,टेबलेट्स दे कर वोट मांगते हैं . भारत को मधुमाखी का छत्ता बतलाते हैं .राज्यों में पचास पचास हजार लैपटॉप
पानी में भीग जाते हैं .
सरकारी स्कूलों में 1 1 वीं 1 2 वीं के छात्रों के लेक्चरार को कॉलेज के लेक्चरार से ,वही योग्यता ,60 % वेतन मिलता है .स्कूल में लेक्चरार को क्लेरिकल काम भी करना पड़ता है .
मिड डे मील चेक करने की ड्यूटी प्रात: 5 वजे भी लगती है .सर्वे,इलेक्शन ड्यूटी भी ,स्कूल के साथ साथ .
.मेरे लिखने का अभिप्राय किसी भी हालत में आपकी भावनाओं को आहत करने का नहीं है .मेरे विचार मेरे निजी हैं ,गलत भी हो सकते हैं .
ना ही मैं अध्यापक हूँ .
आपने मेरी कविता को पसंद किया .आभार .कृपया मेरे विचारों को बुरा मत मानना .
सादर .
आपने जो विषय उठाया है बड़ा ही समाचीन है , पर मुझे लगता है की मात्र शिक्षक ही जिम्मेदार नही है , पूरी प्रणाली ही सड़ी हुई है अब हर कोई अपने लिए जी रहा है , नोकरी का मतलब दोहन है अधिकतम दोहन अब किसी भी पद पर कोई हो अपना कर्तव्य किसे याद है ?
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