For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 72 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !

दिनांक 22 अप्रैल 2017 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 72 की समस्त प्रविष्टियाँ 
संकलित कर ली गयी हैं.


इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे -

सार छन्द और कुण्डलिया छन्द.


वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के अनुसार अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

**********************************************

१. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
प्रथम प्रस्तुति
रोज सभी के घर जाता मैं, पत्थर लाठी खाता।
खूब खुशामद करता हूँ मैं, तब दो रोटी पाता॥
यह भी कोई जीवन है मैं, हर पल पूँछ हिलाऊँ।
कभी किसी पर गुर्राऊँ तो, मैं दुत्कारा जाऊँ॥

मेरी भी तो हालत भाई, कुछ वैसी लगती है।
चौकीदारी करता घर की, तब रोटी मिलती है॥
मांस हड्डियाँ तुम पाते ये, घर है शाकाहारी।
कभी मुझे दे जाओ मेरा, मन करता है भारी॥

काम हमी से लेते फिर भी, हम से नफरत करते।
आपस में जब लड़ते मानव, कुत्ता कुतिया कहते॥
उसी समय इन सब को काटूँ, इच्छा तो होती है।
लेकिन आत्मा समझाती है, मुझे रोक देती है॥

मौत हमारी कुत्ते जैसी, जीवन भी है वैसा।
बाहर हो या घर के अंदर, रहना कुत्ते जैसा॥
मानव अति कामी क्रोधी पशु ,पक्षी के हत्यारे.!
फिर भी प्रभु को सब जीवों में, मानव लगते प्यारे.!!
******************
२. आदरणीत सत्यनारायण सिंह जी

भावुकता से हैं जुडे, सबके मन के तार;
भावुक मन में प्रेम का, होता आविष्कार;
होता आविष्कार, मानता यही जमाना;
नाप तोल से दूर, रहा जिसका पैमाना;
सकल जीव मन प्रेम, पगे अति नाजुकता से;
जिसे करे इजहार, सदा वह भावुकता से!

दुनिया कातिल प्रेम की, दिखे बडी मुस्तैद;
कभी चुने दीवार में, कभी उसे कर कैद;
कभी उसे कर कैद, रखे उसपर निगरानी;
किन्तु जगत विख्यात, प्रेम की अमर कहानी ;
मध्य श्वान द्वय भीत, देख मन सोचे गुनिया;
प्रेम विरोधी कृत्य, करे आखिर क्यों दुनिया?
****************
३. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
कुण्डलिया छंद
1
यारा तूने क्यों किया ,मानव जैसा काज I
जा चिन जा दीवार में , आती तुझ पर लाज II
आती तुझ पर लाज , मान कुत्तों का तोड़ा I
कर अपनों पर घात ,वफ़ा को तूने छोड़ा II
वफ़ा हमारी शान , यही है धर्म हमारा I
घण्टे और अजान, मुबारक उनको यारा II

2
डर कर जनता से छिपा, हारा नेता एक I
मित्र खड़ा है देखता ,समझ दे रहा नेक II
समझ दे रहा नेक ,नहीं जनता अब भोली I
आओगे जब काम ,भरेगी तब ही झोली II
अब तो नेकी सीख ,पहुँच वंचित के दर पर I
वर्ना छिप कर बैठ ,सदा तू यूँ ही डर कर II

3
आयेगा दल रोमियो , तू भी छिप जा यार I
लग जाएगा हाथ गर ,खूब पड़ेगी मार II
खूब पड़ेगी मार ,गए दिन तेरे मेरे I
अब लैला के द्वार , लगेंगे कैसे फेरे II
दिल अपना यूँ तोड़ ,ज़माना क्या पायेगा I
बाकी अब भी आस ,प्रेम युग फिर आयेगा II

द्वितीय प्रस्तुति
सार छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया ,कुछ चर्चा है जारी I
काले धन को यहाँ छिपाने ,की होती तैयारीII

छन्न पकैया छन्न पकैया, कुत्तों की ये मर्जी I
घर अपना हो खिड़की वाला ,चलो लगा दें अर्जी II

छन्न पकैया छन्न पकैया, बेटा छोड़ सताना I
लुढ़क गया क्या इस बारी भी ,मुझको जरा बताना II

छन्न पकैया छन्न पकैया ,इश्क बड़ी बीमारी I
छिपकर दोनों मिलते देखो ,दुश्मन दुनिया सारी II
***********************
४. आदरणीय तस्दीक अहमद खान
(अ) कुण्डलियां
(1)प्यारा सा कुत्ता खड़ा ,देख रहा दीवार
ऊपर ही सूराख से ,झाँके उसका यार
झाँके उसका यार ,नज़र से करे इशारा
आजा मेरे पास ,न फिर तू मारा मारा
कहे यही तस्दीक़,जानवर बना सहारा
देख ज़रा इंसान ,नज़ारा कितना प्यारा

(२) उल्फ़त करता कौन है ,कौन सुने फरियाद
आवारा कुत्ते सदा ,फिरते हैं आज़ाद
फिरते हैं आज़ाद ,फिरे जैसे दीवाना
कभी इन्हें भर पेट ,नहीं मिलता है खाना
कहे यही तस्दीक़ ,न कर कुत्तों से नफ़रत
आते उसके काम ,करे जो इनसे उलफत

(ब ) सार चन्द
-------------
(१ )छन्न पकैया छन्न पकैया,करो न इनसे नफ़रत न
वफ़ादार होते हैं कुत्ते ,इनसे करो मुहब्बत
(२ )छन्न पकैया छन्न पकैया ,कितना प्यारा मंज़र
इक कुत्ता है घर के अंदर ,एक खड़ा है बाहर
(३ )छन्न पकैया छन्न पकैया ,कौन खिलाए खाना
आवारा कुत्तों का कोई ,होता कहाँ ठिकाना
(४ )छन्न पकैया छन्न पकैया ,मलिक को पहचाने
वफ़ा सदा करते हैं कुत्ते ,सारी दुनिया जाने
(५ छन्न पकैया छन्न पकैया ,कौन इसे झुटलाए
इंसानी फ़ितरत है धोका ,कुत्ता वफ़ा निभाए
(६ )छन्न पकैया छन्न पकैया ,जाने सिर्फ़ विधाता
भूका मरता कोई कुत्ता ,कोई बिस्कुट ख़ाता
(७ छन्न पकैया छन्न पकैया ,देखो इनकी खसलत
इंसानों को यह दो कुत्ते ,सीखा रहे हैं उलफत
***************************
५. आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी
छन्न पकैय्या -- सार छंद
छन्न पकैय्या छन्न पकैय्या, अपनों का दुख भारी
इन्कलाब लाने की कोई , लगती है तैय्यारी

छन्न पकैय्या छन्न पकैय्या, प्रश्न चित्र में दीखे
अपना पन कुत्तों से ही क्या, अब इंसा भी सीखे ?

छन्न पकैय्या छन्न पकैय्या, तन्हाई का साथी
चूहा भी मिल जाये तो वो , लगता जैसे हाथी

छन्न पकैय्या छन्न पकैय्या, सोया घर अब जागे
ऐसा ना हो कुत्ता घर का, कुत्ता ही ले भागे

छन्न पकैय्या छन्न पकैय्या, कुत्तों में अपना पन
उसी जहाँ में इंसानों में, जहाँ रही है अनबन

छन्न पकैय्या छन्न पकैय्या, क्या ‘कुत्ता’ है गाली ?
प्रश्न यही तो पूछ रही है, यह तस्वीर निराली
****************
६. अदरणीय बासुदेव अग्रवाल ’नमन’
सार छंद

हाय सखा क्या हालत कर दी, आदम के बच्चों ने।
दीवारों में दिया क़ैद कर, तुझको उन लुच्चों ने।।

हम कुत्तों ने इंसानों से, दिल से सदा वफ़ा की।
पर उनने बदले में कर दी, सब हद पार जफा की।।

मतलब के अंधे इन्सां ने, छोड़े कब अपने ही।
ढोंग दिखावा कर दिखलाता, बस झूठे सपने ही।।

हम कुत्तों की फिर क्या गिनती, उसके आगे भाई।
जग में इस इन्सां से बढ़कर, आज नहीं हरजाई।।
********************
७. आदरणीया राजेश कुमारी जी
एक कुण्डलिया
यारी की देखी नहीं ,ऐसी कहीं मिसाल|
एक बंद है कैद में ,दूजा पूछे हाल||
दूजा पूछे हाल ,मदद कैसे कर पाऊँ|
तोड़ सकूँ दीवार ,तुझे बाहर ले आऊँ||
मनुज मित्रता द्वेष ,स्वार्थ ईर्ष्या से हारी|
उन सबसे है मुक्त ,श्वान की सच्ची यारी||
****************
८. आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी
(1)
इक दूजे को देख कर,भूले जग को आज
दोनों ऐसे रम गये,गई शर्म औ लाज
गई शर्म औ लाज,प्रेम में खो ये जाते
आँखें होती चार, मूक भाषा बतलाते
सतविन्द्र कविराय,बोल बाला है चहुँदिक
प्रेम वही है डोर,बँधा है जिससे हर इक।

(2)
आया प्रेमी पास में,लिए मिलन की आस
मिलना संभव है नहीं,हुई प्रेमिका ख़ास
हुई प्रेमिका ख़ास,चली झांकी में आती
सकल हृदय की बात,दिखे उसको बतलाती
सतविन्द्र कविराय,प्रेम पर डर का साया
फिर भी प्रेमी आज,यहाँ पर मिलने आया
*************************
९. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताळे जी

कहता है खामोश रह, पिल्ला दिल की बात |
अन्दर जैसे हैं नहीं , बाहर के हालात ||
बाहर के हालात , बताऊँ भाई कैसे,
बस कुत्तों की बीच, निभ रही जैसे तैसे,
भरने अपना पेट, यहाँ मैं सब कुछ सहता,
सच्ची-सच्ची बात, आज मैं तुझसे कहता ||

भीतर मेरा हाल भी, मित्र नहीं है ठीक |
नहीं देखता हो गया, मैं कितना बारीक ||
मैं कितना बारीक, हो गया इस घर आकर,
दिनभर सुनता प्रिंस, बैठ चल बाहर जाकर,
इस खिड़की पर मित्र, सदा रहता है डेरा,
सचमुच घुटता नित्य, मित्र दम भीतर मेरा ||

सार छंद

स्वामी भक्त रहा है कुत्ता, फिरभी है बेचारा |
दो रोटी की खातिर फिरता, हरदिन मारा-मारा ||
झबरू-गबरू हो तो लगता, कुत्ता सबको प्यारा |
वरना कहता गली मुहल्ला, कुत्ते को आवारा ||

मानव मित्र रहा है कुत्ता, बस्ती में ही रहता |
रात-दिवस रखवाली करता, फिरभी पीड़ा सहता ||
गर्मी से व्याकुल हो जाता, जब रातों का प्रहरी |
छाया खोजे खंडहरों में , जाकर गहरी-गहरी ||

बाल्य काल में बच्चों जैसी, करता यह शैतानी |
बचपन का तो काम रहा है, करना बस नादानी ||
नहीं अकेलापन भाये तो , साथी ढूँढ़े अपना |
कुत्तों का तो होता है बस, दो रोटी का सपना ||
************************
१०. आदरणीय सतीश मापतपुरी जी

जाति वर्ण कुल एक तो क्या , भाग्य एक ना पाया ।
मैं यूँ मारा - मारा फिरता , पर तू महल समाया ।
सारे लोग भगाते हमको , बच्चे पत्थर मारे ।
तुमको सब इज्जत देते हैं , तेरे हैं रखवारे ।

ऐसी बात नहीं है यारा , तू है मस्त मलंगा ।
तू अपनी मरजी का मालिक , तू है बहती गंगा ।
साँझ - सबेरे जंजीरों में , बाँध मुझे टहलाते ।
मन करता है हम भी तुम सा , बाहर दौड़ लगाते ।

माना खाना अच्छा मिलता , साबुन से नहलाते ।
महल नहीं यह जेल सरीखा , बाहर नहीं पठाते ।
काश ! हमें आजादी मिलती , कुत्ता जैसा रहते ।
इस हाँड़ी से उस हाँड़ी तक , मुँह मारते फिरते ।
**************************
११. आदरणीय गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
सार छंद
सारमेय से बातें करता था गलियों का राजा
कहाँ छिपा बैठा नाली में तू भी बाहर आजा
हम बाहर की सैर करेंगे खूब जमेगी जोड़ी
चबा चबाकर हम हड्डी को लेंगे थोड़ी-थोड़ी

तब आँखों में आंसू भरकर सारमेय यह बोला
भाग्यवान है श्वान किन्तु तू है भोले का भोला
बाहर यदि आ पाता भाई नाली से क्यों तकता
तू क्या अब कोई भी मेरा भला नहीं कर सकता

कुण्डलिया
पाबंदी बस क्षिद्र से झाँक रहा था श्वान
कौतूहल में पड़ गया गलियों का दरबान
गलियों का दरबान उठाकर मुख यूँ बोला
बढ़ी तुम्हारी शान मुबारक हो यह चोला
तुमको रहना कैद डाल लो आदत गंदी
मैं मलंग मुस्तैद नहीं कोई पाबंदी
******************************
१२. आदरणीय सुरेश कुमार ’कल्याण’ जी
कुण्डलिया छन्द
बूढ़ा देखे झांककर,टूट गया अभिमान।
वक्त-वक्त की बात है,वक्त बड़ा बलवान।
वक्त बड़ा बलवान,अजब है इसकी माया।
हुआ मंद मैं आज,टूटती जर्जर काया।
करनी का फल मिले,सभी के होते लेखे।
वर्तमान बेखौफ,झांककर बूढ़ा देखे।।

खेलें सारे संग में,आओ तुम भी यार।
विचार विनिमय खास हो,पनपे सबमें प्यार।
पनपे सबमें प्यार,काश यह मानव माने।
पहल करें हम श्वान,जिसे जग कुत्ता जाने।
जिससे हो कल्याण,सभी वह पापड़ बेलें।
भुला बैर को आज,संग में सारे खेलें।।
*****************
१३. आदरणीया रक्षा दुबे जी
ढाई आखर मन बसे, किन्तु मध्य यह भीत
फिर भी राहें ढूंढ ले, यही प्रीत की रीत
यही प्रीत की रीत, एकटक देखें प्राणी
अन्तस् छलका जाए, बंद मुख जिह्वा वाणी
राग द्वेष से दूर, समझ कर पीर पराई
फिर कब होंगे साथ, पूछते आखर ढाई।
************************

Views: 1100

Replies to This Discussion

मुहतरम जनाब सौरभ साहिब,ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव अंक-72 के त्वरित संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें 

आदरणीय सौरभ भाईजी

राष्ट्रीय स्तर की मीटिंग आदि में व्यस्त रहने के बाद भी छंदोत्सव के सफल संचालन, सभी रचनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करंने और संकलन हेतु  हृदय से बधाई धन्यवाद और शुभकामनाएँ।

परम आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम,' चित्र से काव्य तक छंदोत्सव'अंक ७२ के सफ़ल संचालन और संकलन के लिये सादर बधाई .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service