आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ सोलहवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
19दिसंबर 2020 दिन शनिवार से 20 दिसंबर 2020 दिन रविवार तक
इस बार के छंद हैं -
गीतिका छंद
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
गीतिका छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 19 दिसंबर 2020 दिन शनिवार से 20 दिसंबर 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
चित्र अंतर्जाल से
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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समयानुसार उपस्थित हों..
गीतिका छंद आधारित गीत ~
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रम्य है यह दृश्य मनहर , सृष्टि के आगोश में ,
पर्वतों की गोद में शुभ , ज़िंदगी की बानगी ।
भोर हर उड़ते गगन में , हो मुदित खग वृन्द हैं ।
खोल पर उल्लास रचते , जोश के नव छंद हैं।।
रश्मियों की सीढ़ियों पर , धूप रखती पाँव है ।
कुनमुना कर जाग जाता , घाटियों में गाँव है ।।
ओढ़नी रवि रश्मियों की,ओढ़ झिलमिल नग लगी ।
पर्वतों की गोद में शुभ ज़िंदगी की बानगी ।।
पत्र ऋतुओं के सुवासित बाँचता पवमान है ।
खेत जैसे क्यारियाँ हों, क्यारियों में धान है ।।
शब्द का तूणीर लघु है ,गिरि अकथ दृश्यावली ।
दृष्टि जाती है जिधर तक,उच्च नग नभ आवली ।
राह जाती घाटियों को , दौड़ बल खा पन्नगी ।
पर्वतों की गोद में , शुभ ज़िंदगी की बानगी ।।
मेहनती हैं जन यहाँ के , हृद परस्पर नेह है ।
द्वेष से हैं रिक्त मन , विश्वास का अवलेह है ।।
नित्य खाते व कमाते , अनगिनत हैं मुश्किलें ।
किंतु भूले से नहीं मुख , रेख अवसादी मिलें ।
हैं सरलता के उपासक, लोग मूरत सादगी ।
पर्वतों की गोद में , शुभ ज़िंदगी की बानगी।।
~ मौलिक व स्वरचित
आ. अनामिका जी, चित्रानुरूप उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन की सराहना हेतु अतिशय आभार आपका ।
चित्रानुरूप सुंदर शब्द चयन के साथ बहुत ही आकर्षक पंक्तियाँ सृजित की आपने दिल से बधाई
प्रस्तुति की सराहना हेतु सादर आभार आपका आदरणीय।
आदरणीया अनामिका सिंह जी सादर, प्रदत्त चित्र पर गीतिका छंद आधारित सुन्दर गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
वाह बहुत सुन्दर गीत, उत्कृष्ट शब्द चयन। हार्दिक बधाई आदरणीया अनामिका सिंह अना जी
आदरणीया अनामिका सिंह अना जी, सुरम्य वादियों की गोद में बसे गाँव और हरियाली को आपने मनोयोग से शब्दबद्ध किया है.
रचना-सामर्थ्य प्रभावी होने से आपकी प्रस्तुति पठनीय बन पड़ी है.
हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ..
वैसे, आवली शब्द को देख लेना उचित होगा.
शुभ-शुभ
गीतिका छंद
घाटियों में दृश्य अनुपम छा गया
स्वर्ग मानों इस धरा पर आ गया
हर तरफ़ लावण्यता है शिर्ष पर
इंद्रधनुषी रंग मन को भा गया
रश्मियाँ नर्तन करें भू लोक पर
मंजु मधुवन प्यार का सरसा गया
हर तरफ़ छवि-जाल ज्योतित हो रही
भूप दिनकर धूप से नहला गया
ईश अपनी सौम्यता ये जादुई
दिग्दिगंतों में यहाँ दिखला गया
तरु तृणों पर पीत आभा शोभती
लग रहा कुंदन गगन बरसा गया
मन मुदित मोहित करे रमणीयता
मृदुल करतल से मदन सहला गया
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय डॉ. छोटेलाल सिंह जी सादर, प्रदत्त चित्र पर आपने गीतिका तो सुंदर रची है किन्तु यह रचना गीतिका छंद के नियमों का पालन नहीं कर रही है. देख लें. सादर.
आदरणीय अशोक रक्ताले साहब सादर अभिवादन उत्साहवर्धन और ध्यानाकर्षण के लिए आपका हृदय से आभार,इसे पुनः सुधारने की कोशिश करता हूँ
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