बड़भागी बड़ा है जटायू जिसे प्रभु की गोदी मिली ,
मरने के लिए , मरने के लिए ।
प्राण तन से चलें सामने हो प्रभु और क्या चाहिए ,
तरने के लिए , तरने के लिए ।
सीता माता को हर के जो रावण चला ।
चुप रह ना सका लख जटायू भला ।
प्राण का मोह तज दुष्ट से वो लड़ा ।
कट गए पंख तो भूमि पर गिर पड़ा ।
सांस जाती रही डर न आया कोई वीर होते नही ,
डरने के लिए , डरने के लिए ।
खोज में माँ की जब राम आये उधर ।
वो भुला बैठे सुध - बुध उसे देख कर ।
अपने हाथों में प्रभु ने उठाया उसे ।
रोके सीने से अपने लगाया उसे ।
भाव सच्चा हो तो क्यों न आयें प्रभू भक्त की पीर को ,
हरने के लिए , हरने के लिए ।
प्रभु की बाहों का प्यारा सहारा मिला ।
सारी दुनिया से उसको किनारा मिला ।
प्राण अपने गवाँ कर के उपकार में ।
हो गया वो अमर सारे संसार में ।
भलाई में सबकी ये जीवन रहे काम है नेक ये ,
करने के लिए , करने के लिए ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
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