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व्रतोपासना का महत्तवपूर्ण स्वरूप है – ‘ एक भगवान ही समस्त विश्व – चराचर के रूप मे अभिव्यक्त हैं , यह समझ कर किसी का अपमान , अनिष्ट न करके , किसी को दुःख न पहुंचा कर, किसी का अहित न कर सदा अपनी सारी योग्यता , सारी शक्ति , सारी संपत्ति , सारी बुद्धि और सारा विवेक लगा कर , मन वाणी और शारीरिक भंगिमाओं से सबका सम्मान करना , सबका दुःख निवारण करना , सबको सुख पंहुचाना और सबका हित करना ।‘ श्रीमद्भगवत गीता मे भगवान कपिल देव कहते हैं – “ मै सबकी आत्मा , सब मे स्थित हूँ जो मेरी उपेक्षा करके केवल मेरा पूजन करता है  तो वह भस्म मे ही  हवन करता है । जो दूसरे जीवों से बैर बांधता है , वह तो उसके शरीर मे स्थित मुझसे ही बैर करता है । उसके मन को कभी शांति नहीं मिल सकती है । “ भूतेषु बद्धवैरस्य न मनः शांतिमृच्छाति ।“  

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