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नमस्कार अहबाब, मेरा सुझाव ये है तरही मुशायरे में ग़ज़लों की संख्या १ (या २) की जानी चाहिए. मैं समझता हूँ कि ग़ज़लों की संख्या बढाने के लिए ये नियम रखा गया होगा. लेकिन मेरी नज़र में ये नियम नए लिखने वालों की आदत बिगाड़ रहा है. वो २-३ दिन में ३ ग़ज़लें कह रहे हैं. ये उनके तख़य्युल के लिए ख़तरनाक है.क्योंकि वो ग़ज़ल पूरी करने के चक्कर में ऐसा वैसा कुछ भी मौज़ू ग़ज़ल में ढाल देते हैं. आखिर ग़ज़ल कहने का मामला है, तंदूर पर रोटियाँ सेंकने का नहीं. मेरे ख़याल में ग़ज़लें १ या २ ही अधिकतम होनी चाहिए....... 

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Replies to This Discussion

ji shukriya bhai. maine faqat isliye poochha tha kyoNki yahaN is tarah ke comment ka koii samanya uddeshya mujhe nahiN dikhaaii paDa. aur Yograj ji ne meri baat ka jawab bhi nahiN diya to mujhe laga shjayad maiN hi baais-e-naarazagi huN. khair, spasht karne ke liye shukriya. khuda is manch ki raanaiyaN banaaye rakkhe....

मैं  अधिकतम तीन का नियम से तो सहमति रखता हूँ क्योकि नए लोगों के  अभ्यास और सिखने के लिए ये एक जरूरी कदम है ! लेकिन तरही गज़ल में असआर की  भी अधिकतम संख्या निर्धारित कर देनी चाहिए ! ताकि भरती के शे'रों की तादाद कम हो सके और ज्यादा अच्छी गज़लें मिल सकें मंच को ! सादर !

मैं अरुण जी के सुझाव का समर्थन करता हूँ

अधिकतम  तीन ग़ज़ल तथा ग़ज़ल में अधिकतम ७ शेर की पाबंदी होनी चाहिए

धन्यवाद वीनस सर जी अनुमोदन हेतु ! मेरे मन में भी यही संख्या थी अधिकतम शे'र के सम्बन्ध में !

अरुण भाई, आपकी सकारात्मक सोच से मैं भी बहुत प्रभावित हूँ.  यों, इस तरह का कोई निर्णय प्रबन्ध समिति की सलाह पर प्रधान सम्पादक ही लेंगे जिसमें इस आयोजन के संचालक की भूमिका महती होगी. किन्तु, मेरा एक निवेदन अवश्य है.

एक नया लिखने वाला अक्सर ग़ज़ल के स्तर की बात नहीं सोचता. वह अपनी भावनाओं को दिये गये फॉर्मेट में फिट करने की कोशिश में रहता है.  इस क्रम में वह हर तरह के भावों को शब्दबद्ध करता जाता है --गलत-सही-आरोपित-अमान्य-अनगढ़ हर ढंग से.  यह सारा कुछ उसे अपने अभ्यास की प्रक्रिया का हिस्सा भर लगता है.  इसी कारण पाठकों को ग़ज़ल में भरती के ढेरम्ढेर शेर झेलने पड़ते हैं.

एक नये शायर केलिये जितना आवश्यक लिखने की कोशिश है उतना ही आवश्यक अपनी धुन और लालच पर (शेरों की संख्या के लिहाज से) अंकुश लगाना भी है.  इसके लिये भी उपाय है, और वह है, अपनी तथाकथित ग़ज़ल को पोस्ट करने के पूर्व इस्लाह लेलें. लेकिन यह उपाय व्यक्तिगत विचार को साध कर ही अपनाया जा सकता है. 

मग़र एक रोचक तथ्य यह भी है कि, अधिकांश सदस्य/ प्रतिभागी इस आयोजन को ’ग़ज़ल पर के एक वर्कशॉप’ की तरह लेते हैं.  यह भी एक बहुत बड़ा कारण है ग़ज़ल के अश’आर की संख्या बढ़ते जाने का.

हम सभी देखते हैं कि इस मंच पर अक्सर समृद्ध गज़लकार अपने शेरों की संख्या ग्यारह के आस-पास ही रखते हैं,  पाँच या सात या ग्यारह,  या इसी के कुछ ऊपर-नीचे.  शेरों की ज्यादा संख्या उनकी ग़ज़लों में होती है जो एकदम से सीखना चाहते हैं. जैसे-जैसे उनकी समझ बढ़ती जाती है, उनके शेरों की संख्या अपने आप कम होने लगती है.

मेरी समझ ग़ज़ल के लिहाज से बढ़ी है कि नहीं यह सवालिया है, लेकिन मैं भी मंच के आयोजन में शामिल ग़ज़लों के कुल शेरों की संख्या ग्यारह से अधिक रखना नहीं चाहता.

कोई चाहे तो आयोजन के अलावे अपनी ग़ज़ल में शेरों की संख्या चाहे जितनी रखे.  लोग-बाग पढेंगे ही और तदनुरूप कोमेण्ट्स भी आयेंगे. यह कोमेण्ट्स ही उस ग़ज़लकार की समझ के बढ़ने के सकारात्मक कारण होंगे.

वैसे, एक रोचक तथ्य यह भी है कि एक ग़ज़ल में कम से कम पाँच अश’आर का नियम अवश्य है लेकिन अधिकतम अश’आर की संख्या का कोई नियम नहीं है. ऐसा ही मैं जानता हूँ.  क्योंकि यह भी देखा गया है कि कितनी ही ग़ज़लों में कई ग़ज़लकारों ने शेरों की संख्या सैकड़ों में रखी हैं.

धन्यवाद सौरभ सर , आपके सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद उम्मीद करता हूँ कि इस सम्बन्ध में कोई न कोई संख्या निर्धारित जरूर की जाएगी ! सादर !

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