For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘करो परिष्कृत अंतर्मन को’- काव्य की आत्मा से एक संवाद

(कवयित्री माधवी मिश्रा  की पुस्तक  ‘करो परिष्कृत अंतर्मन को’  की संवाद शैली में आलोचना )                         

 

‘करो परिष्कृत अंतर्मन को‘ पढ़कर आत्मलीन हुआ ही था कि काव्य की आत्मा मुझमे प्रविष्ट हो गयी. उसने झकझोर कर कहा –‘क्या कर रहे हो ?’

मैंने कहा –‘आपकी भावनाओं को पढने की कोशिश कर रहा हूँ ‘

आत्मा धीरे से हंसी– ‘आत्मा से दिल्लगी---? भला कोई आत्मा की भावना पढ़ सकता है ?’

‘हाँ एक सहृदय या एक कवि पढ़ सकता है ‘

‘तो—--- मैं सहृदय से मुखातिब हूँ या फिर एक कवि से’ ?’

‘आपको इससे क्या, यह क्या कम है कि कोई किसी की भावना पढने की कोशिश कर रहा है, वरना किसे फुर्सत है इस गर्मी में’

‘अच्छा तो अब तक क्या पढ़ा ?’

‘यह तो मैं बाद में बताऊंगा पर पहले आप बताइए आपकी उत्कृष्ट भावना किस रूप में प्रकट हुई है ?’

‘मेरे लिए तो सभी उत्कृष्ट है ‘

’नहीं, मैं उन रचनाओं की बात कर रहा हूँ  जो काव्यात्मा को संतुष्टि देती हैं ‘

‘वह तो बहुत सी होंगी ’

‘जैसे ?’

‘नही मैं नाम नहीं लूंगी पर तुम बताओ क्या मेरी भावनाओं से तुम्हारा कोई कोना सचमुच भीगा ?’

‘अगर ईमानदारी से कहूं तो कई कोने भीगे हैं. पर मैंने बड़ी कविताओं पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं किया, उस पर तो कई सुधी समीक्षको की नजर है. मैं तो सिर्फ पाठक हूँ और आपकी छोटी रचनाओं से ही पोर-पोर भीगा हूँ . जैसे-

 

टूटकर सपनीली हर बात

गयी जब यादों की बारात

चीर कर अंतर्मन के पृष्ठ

लगा दी हर पन्नों में आग

तुम्ही बतलाओ चलते मीत

सहूँगी कैसे फिर यह प्रीत

व्यथा का मर्मान्तक प्रतिघात 

 

‘इसमें तुम्हे क्या अच्छा लगा ?’ –आत्मा ने पूछा

‘इसमें पीड़ा की जो व्याप्ति है वह अद्भुत है, यह पंक्तिया महादेवी की याद दिलाती है फिर इसमें वह अंतर्मन भी है जिसको परिष्कृत करने का संदेश आप देती हैं, पर इसमें एक बात खटकती है, कविता का शीर्षक आपके प्रकाशक ने गलत कर दिया . ‘तुम्ही बतलाओ चलते मीत’ को ‘तुम्ही बतलाओ चलते भी हैं’ कर दिया . यह तो कोमल भावना के साथ ज्यादती हुयी न ?’

‘अरे---- अब क्या बताऊँ –‘ –आत्मा ने खीझकर कहा –‘बस यह कहो किसी तरह मेरी लुटिया डूबने से बची. अच्छा चलो और क्या अच्छा लगा ?’

‘और अच्छा लगा आपका प्रभाव ?’

‘मेरा प्रभाव -----? वह क्या ---?.

‘आपकी बेबाकी और मनुष्य का चीर हरण ‘

‘य्यानी----?’

‘खुद  ही भूल गयी अपनी भावना----- तो लो सुनो –

 

मेरा सानिध्य मात्र

तुम से महापुरुष के

संचित उत्कर्ष को

धूमिल कर देता

मैं सिंचित होती हूँ

चिर प्रतीक्षित पावस मधु-कण से – किन्तु 

किन्तु खो जाता है तुम्हारा तुम्हारापन

मेरे प्रभाव से  

 

आत्मा ने सिर हिलाया- ‘सचमुच ऐसा लगता है कभी. यह सपनो की दुनिया के बाहर की बात है ‘’  

‘पर आप तो जागते हुये भी सपने देखती हैं, अपनी इस भावना को देखिये-

 

नींद को होती है दरकार

सपनों की

किन्तु सपनो को नींद की नहीं

सपनों को

नींद की दुनिया के बाहर

भी देखा जाता है

खुली आँखों से    

‘शब्दों में व्यक्त भावनाएं भी खुले और जाग्रत आँखों के स्वप्न ही तो हैं ‘- आत्मा ने स्वीकृति में सिर हिलाया –‘सच पूंछो तो मेरी भावनाएं  इन छोटी कविताओं में अधिक रमी हैं ‘

‘मैं जानता हूँ’ - मैंने कहा –‘और मेरे पास प्रमाण भी है ?’

‘कैसा प्रमाण ?’- आत्मा को आश्चर्य हुआ और कौतूहल भी.

‘तो देखिये –

 

मुझसे नहीं  स्वयम से भाग रहे हो

मैंने तो तुमको कब का छमा किया

करो परिष्कृत अन्तर्मन को

फिर से मुझमे झांको 

निर्मल उज्जवल स्वच्छ धवल सी

प्रीत मेरी भी आंको

 

‘तुमने सही पहचाना‘– आत्मा ने कहा –‘मेरी छोटी भावनाएं शायद अधिक धारदार हैं’

‘ हाँ, और शीर्षक भी तो इसी बात की गवाही देता है ‘ –मैंने उत्साहित होकर कहा- ‘एक बात और बड़े मजे की है, आप आत्मा हैं, नारी है, आपकी भावना भी नारी है ‘

‘हाँ, पर इससे क्या ?’

‘इससे एक निष्कर्ष निकला है, आप ही ने निकाला है कि –

 

नैतिकता का बोझ

तुम्हारे सर पर रखने वाला समाज 

कुलीन और श्रेष्ठ है

क्यूँ कि वह

तुम्हारी नैतिकता का भागीदार है

तुम कलंकिनी, पापिनी, व्यभिचारिणी हो

क्यूँ कि तुम उनके अनैतिक दायित्वों के अधीन हो

 

‘क्या आप इससे सहमत नहीं हैं ?’- आत्मा ने पूंछा

‘क्या बात करती है ?. इस प्रश्न का उत्तर तो आपकी कविता में ही है ., मैं ही तो वह नैतिकता हूँ ‘

‘हाँ ----‘ आत्मा ने उदास होकर कहा.- मेरा तो हर स्पंदन ही कटघरे में होता है ?’

‘क्या आत्मा को भी स्पंदन होता है ?’- मैंने कौतूहल से पूंछा .आत्मा इस प्रश्न से  चिढ गयी .

‘आपकी आत्मा नहीं है क्या ?’ उसने क्षुब्ध होकर कहा – ‘ यदि सचमुच मर न गयी हो तो उससे पूंछो कि उसमे स्पंदन होता है या नहीं ?’

‘शायद नर की आत्मा स्पंदन शून्य होती हो, पर मैंने आपका स्पंदन देखा भी है और महसूस भी किया है ?

‘क्या सचमुच ?’ –आत्मा को आश्चर्य हुआ

‘हाँ, मुलाहिजा फरमाइए –

 

बहुत नाजुक हैं मेरे ह्रदय के तंतु

इसमें छोटा सा स्पंदन

सागर का विवर पैदा करता है

तभी लघु कंक्रीट बलत्कृत कर देता है

मेरा अन्तःस्थल

मैं हजार टुकड़ों में बिखर जाती हूँ, थककर

 

‘हां नारी की तो यही नियति है’

‘आप सचमुच बहुत बलवती है. महान आत्मा हैं, आपकी भाव संपदा में पर्व, फूस के घरौंदे, पारखी, गाँव की तलाश में, युग पाहुन, कैसी प्रतीक्षा और मृत ज्वाला जैसे अनमोल रत्न है. पर आप अपने प्रकाशक  को प्रूफ के बारे में सचेत अवश्य करें .

‘जरूर जरूर , अब उसका ही बैंड बजेगा’ - आवेशित आत्मा ने प्रकाशक के शरीर में प्रवेश करते हुए कहा, मैं हठात उसके आवेश से मुक्त हो गया .      

         

                                                                                                  ई एस -1, सीतापुर रोड योजना कालोनी     

                                                                                                       अलीगंज सेक्टर-ए , लखनऊ

                                                                                                       9795518586

Views: 449

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
7 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service