For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समीक्षा - मार्मिकता मानोशी का प्रिय बोध है। - यश मालवीय (इलाहाबाद)

मार्मिकता मानोशी का प्रिय बोध है।

उन्मेष कविता संग्रह मेरे सामने है और मैं इसे काव्य के उन्मेष के रूप में ही देख रहा हूँ। संवेदना से लबरेज़, भाव बोध, समय सन्दर्भ, बदलती हुई दुनिया के रीति-रिवा़ज, रस-रंग, जमाने की चाल, विसंगतियाँ, टूटते-बिखरते मूल्य, सब कुछ एक जीते-जागते परिदृश्य के रूप में उद्घटित हो रहा है, मानोशी के पास अद्भुत एवं अप्रतिम रचनाकार मन है, जिससे वह समय के साथ थिर ताल में लहरें उठाती हैं और कविता की सीपियाँ और मोती बटोर लाती हैं, इन सीपियों और मोतियों की चमक अनेक बार चमत्कृत करती हैं। मार्मिकता उनका सबसे प्रिय बोध है, जहाँ वह सीधे मर्म पर अनुभूति की छुअन किसी फूल की तरह रख देती है। यह रचना ख़ास तौर पर देखें -

‘‘आज फिर शाम हुई,
और तुम नहीं आये,
आसमां की लाल बिंदी,
छूने चलीं भवें क्षितिज की,
 और कुछ झोंके हवा के,
ढेरों भीगे पल ले आये,
 पर तुम नहीं आये ।’’

तुम्हारे नहीं आने का जो दर्द है, वह प्रकृति से एकरूप हो कर जैसे हर विरही मन का सच हो जाता है। यह भाव संवेदना शीर्ष कवयित्री महादेवी के मानस में सबसे अधिक साकार होती रही है, विशेषतः जब वो कहती हैं -

‘‘विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
 उमड़ी कल थी मिट आज चली
 मैं नीर भरी दुःख की बदली’’

मुझे व्यग्तिगत रूप से लगता है कि इस प्रकार के दुःख-दर्द और टीस की भी एक गरिमा होती है और इस गरिमा को कवयित्री ने रेशा-रेशा जिया है। बात अनकही शीर्षक कविता में वह कहती हैं -

‘‘हाथ थाम कर निकल पड़े हम
साथ अजाना कठिन डगर थी
कभी धूप को मुँह चिढ़ाया
कभी छाँव की पूँछ पकड़ ली
कच्चे-पक्के स्वाद निराले
आधा-आधा जिन्हें चखा था ’’

‘छाँव की पूँछ' ये अभिव्यंजना ही लगभग अभिभूत कर देने वाली है और बड़ी अपनी सी बात लगती है, जिसके लिए कभी एक शायर ने कहा था -

‘‘कहानी मेरी रुदादे जहाँ मालूम होती है
जो सुनता है उसी की दासतां मालूम होती है’’

मानोशी जी के पास कविता के विविध रंग हैं उनके पास गीत की संवेदना है, तो ग़ज़ल का व्याकरण भी है, कविता की समकालीनता है तो दोहों का रस परिपाक भी है और जापानी छंद हाइकु की सिद्धि भी है। इस प्रकार वह काव्य के सारे रंगों में सहज ही निष्णात हैं। कनाडा में रहते हुए उन्हें अपना भारत लगातार टेरता है, आवाज़ देता है। उनका काव्य मन छटपटाता है। शायद इसी छटपटाहट में ग़ज़ल का यह मतला संभव हुआ है -
‘‘कोई ़खुशबू कहीं से आती है
मेरे घर की ़जमीं बुलाती है’’
लेकिन आदमी तो आदमी ठहरा। समझौतों के साथ जी लेना कई बार उसकी नियति बनती है। जो संस्कार होते हैं वही आदतें होती हैं, जो आदतें होती हैं वही संस्कार भी हो जाते हैं। जिंदगी इनके बीच घड़ी के पेंडुलम सी डोलती है। जहाँ जिंदगी ही एक आदत हो जाए वहाँ क्या कहिएगा। अशआर आकार लेते हैं -

‘‘जिंदगी इक पुरानी आदत है
यूँ तो आदत भी छूट जाती है
आप होते हैं पर नहीं होते
रात यूँ ही गुज़रती जाती है
जाने क्या क्या सहा किया हमने
 पत्थरों पर शिकन कब आती है’’

मैं पूरी ईमानदारी से यह बात कह रहा हूँ कि मैंने इस संग्रह से गुज़र कर निश्चित ही एक समृद्धि हासिल की है। यह विश्वास है कि उन्मेष वक्त के माथे पर अपने हस्ताक्षर छोड़ जायेगा।

पुस्तक  विवरण -

उन्मेष (काव्य संग्रह - मानोशी)
पृष्ठ - ११२ 
संस्करण - प्रथम - २०१३ हार्ड बाउंड 
मूल्य - २०० रुपये 
प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन (इलाहाबाद)


समीक्षक -
यश मालवीय
इलाहाबाद

Views: 661

Replies to This Discussion

स्ंक्षेप में एक सार्थक विवेचना हुई है. आदरणीय यश मालवीय की भूमिका सार्थक तो है ही, आलोच्य पुस्तक के मुख्य विन्दुओं और कविकर्म के मुख्य गुणों को सामने स्पष्टता से लाती है.

इस आलोचना या भूमिका के माध्यम सेआलोच्य पुस्तक के प्रति  सकारात्मक उत्सुकता बनती है.

धन्यवाद, वीनस जी, उन्मेष पर आदरणीय यशजी की भूमिका को साझा करने के लिए.

बधाई

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी"
51 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय नीलेश भाई, आप हमेशा से इस मंच के चुनिंदा उत्तम रचनाकारों में रहें हैं। आप की प्रतिभा, समझ,…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. गिरिराज जी लम्बे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति मंच को नई उर्जा दे रही है.अमित जी के सुझाव…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. गिरिराज सर,आपको यहाँ देख कर अत्यंत हर्ष हो रहा है. शायद अब OBO के पुराने दिन लौट आएं..बहुत बहुत…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. मयंक जी "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"धन्यवाद आ. अमित जी मुहब्बत को मैं मुहब्बत हो लिखूँगा क्यूँ कि देवनागरी में ऐसे ही लिखा जाता…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. अजय जी,आप के और सभी के सुझावों का हमेशा स्वागत है. इसी मंच की आलोचना से मैं थोडा बहुत कहना सीख…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  मैंने पिछले सारे आयोजन पढ़ें हैं आप की ग़ज़लें भी पढ़ी हैं। आप बहुत पुराने सदस्य…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय , आपका अपने उस्ताद पर गर्व समझ  में  आता है , जो ठीक भी है आप रखता के मुहताज…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय Richa Yadav जी क्या ओहदेदार लोग आदमी/इंसान नहीं होते?? आदरणीय नीलेश भाई और अमीरुद्दीन भाई…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service