For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                                                                     पुस्तक-समीक्षा.

(पुस्तक -कहता है अविनाश.)........................सितम्बर 2012 के "सद्भावना दर्पण "..संपादक-श्री गिरीश पंकज ..में प्रकाशित।

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
                         " छंद बद्ध कविता के हक में एक बयान "...........इंदिरा किसलय ,नागपुर.
                          **************************************************************************************
                 कविता में कवि का वजूद, बाहरी और अंतर्मन की हजार परतों को चीर कर बाहर आता है. कविता उसके मौन को शब्दमाला से समर्थन देती , उसकी निजता का अभिनन्दन करती है.
             " कहता है अविनाश " में संगृहीत ८२ कुंडलियों में कवि के सृजन सीमान्त का पारंपरिक रंग बिखरा है.विषयों के लिये उन्हें मशक्कत नहीं करनी पड़ती.वे स्मृतियों की कन्दरा से निकल कर अपने पांव चलकर आते हैं.समाज की सारी विद्रूपताएं उनकी नज़र की जद में हैं.वे कोई घिसा-पिटा बासी  मुहावरा ओढ़कर लीक -लीक चलने की मानसिकता से मुक्त हैं. उनकी उड़ान हो या परिक्रमा , हमेशा ताजगी से भरी रहती है.
             कृति में समसामयिक और शिलालेखीय तेवरों का द्वंद्व कहीं दिखाई  नहीं पड़ता. वे सन्दर्भ न मिलने पर ' नदी' को 'स्त्रोतस्विनी' कहने का मोह नहीं पालते . किसी पूर्वाग्रह की जकडन से मुक्त हैं कुण्डलियाँ.
                 छंद बद्ध कविता के हक में यह कृति एक मुकम्मल बयान है. बेशक अनुभूति टकसाली नहीं होती जो निश्चित परिभाषाओं के खांचे में फिट बैठ जाये. दूसरा सच ये भी है कि छंदमुक्त चौंका सकती है, सारे वजूद को हिला सकती है पर लोकमानस में उसके संरक्षित रह पाने में संदेह है. गिरिधर कविराय और काका हाथरसी की कुण्डलियाँ आज भी यादों में हैं.
                भाषा शिल्प की सहज भंगिमा , कुंडलियों की लय को सधे हुये है. कवि ने दुरुहता से सुरक्षित अंतर बनाये रखा पर जब कभी वो नजदीक हुई सरल लगने  लगी! भाषा , यदा कदा  सपाटबयानी के निकट पहुंची है. ज्वलंत सच्चाई यह है कि सौ सौ  द्वंद्वों से घिरे हुये मनुष्य को सब कुछ इंस्टैंट चाहिए . अधिक माथापच्ची न हो.
                   अविनाश ने अपने गुरु डॉ. खादीवाला को ,कृति समर्पित कर , कृतज्ञता ज्ञापन का एक वरणीय पक्ष सामने रखा है. डॉ. खादीवाला ने अविनाश के सृजन को कुंडलीनुमा  कहा है. शास्त्रीयता की उंगली पकडकर बखेड़ा खड़ा करनेवालों को यह एक सौम्य उत्तर है.
                    कहने की जरुरत नहीं कि सार्थक प्रतीकों और प्रयोगों ने कुंडलियों कि सम्प्रेश्नियता बढ़ा दी है.कुछ मराठी और अन्य  भाषा प्रयोग जैसे 'ताबा', 'हाराकीरी ' आदि आकर्षक है. जल-समस्या , गांधीगीरी , क़साब   , भ्रष्टाचार ,राष्ट्र मंडल खेल , हिंदी ,सर्व धर्म सम भाव , धर्म ,अमन , आक्टोपस बाबा , अन्ना , मौसम आदि सरोकारों के अनुरूप ' भाषा ' विन्यास , कुंडलियों की ताकत हैं.
दो उदाहरण द्रष्टव्य है-
                     " सत्य अहिंसा की बातें , करता था वो दूत
                        चरखे पर काटा करता , जीवन का वो सूत.
                        जीवन का वो सूत , उसे हम भूला रहें हैं
                        अपने मन का ख़ाली, झूला झुला रहें है.
                        कहता है अविनाश कर रहें हाराकीरी  
                         कहाँ वो गांधीवाद , कहाँ ये गांधीगीरी. "
              **                 **                        **                    **
एक ललित कुंडली का सौन्दर्य मन मोह लेता है -
                         " पीली-पीली सरसों फूली, हवा हुई मदहोश.
                           मौसम के राही ने खोया, जैसे अपना होश.
                           जैसे अपना होश , झरे  पत्ते  बेचारे.
                           नए वसन पाने को , आतुर तरुवर सारे.
                           कहता है अविनाश , आ गई ऋत रंगीली. 
                           मौसम ने महुए की ज्यों ,दो घूँट है पीली."
किताब में कुंडलियों के नीचे कोष्ठक में सम्बंधित सन्दर्भ देकर कवि ने पाठकों के लिये तत्काल सम्प्रेषण की व्यवस्था की है.प्रक्षेप प्रकाशन की यह कृति कलेवर,कीमत और कुंडली संख्या हर दृष्टि से संक्षेप को प्रोत्साहन देती है.यही वक़्त की सही पहचान है.अपनी समाप्ति पर सूक्त की तरह आचरित होती कुण्डलियाँ लोकमानस में चिरकाल तक अपनी गूँज बनाये रखेंगी.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
           ....         इंदिरा किसलय ,नागपुर.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

Views: 433

Replies to This Discussion


सदस्य कार्यकारिणी
Permalink Reply by धर्मेन्द्र शर्मा 10 hours agoDelete

आदरणीय अविनाश जी, समीक्षा बहुत ही सबल और सशक्त है....समीक्षक को भी बधाई प्रेषित कीजिये हमारी और से ...ये कुंडलिया तो जानलेवा है...बहुत पसंद आया

//सत्य अहिंसा की बातें , करता था वो दूत
चरखे पर काटा करता , जीवन का वो सूत.
जीवन का वो सूत , उसे हम भूला रहें हैं
अपने मन का ख़ाली, झूला झुला रहें है.
कहता है अविनाश कर रहें हाराकीरी
कहाँ वो गांधीवाद , कहाँ ये गांधीगीरी.//

पुस्तक के लिए ढेरों शुभकामनाएं....

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. अजय जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें..मतले में सच को हिमायती न मिला कहना अपरिपक्व है.. सच…"
6 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. ऋचा जी अच्छी ग़ज़ल हुई है जिसके लिए बधाई स्वीकार करें.क़ाफ़िया कई जगह तंग लगा और दुहराव का…"
21 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय जी आदाब। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।   न कोई अपना…"
21 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. लक्ष्मण जी,ग़ज़ल पर अमित जी टिप्पणी कर ही चुके हैं.आपका भावपक्ष हमेशा से प्रबल रहा है, कला पक्ष पर…"
27 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है. शेर-दर-शेर बधाई स्वीकार करें "
30 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब । ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। 1212 1122 1212…"
1 hour ago
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
1 hour ago
Mayank Kumar Dwivedi replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"अभी तलक तो मुझे ज़ीस्त में कोई न मिला जो ये कहे कि कोई ठीक आदमी न मिला //1// विचार अच्छे दिमागों…"
1 hour ago
Mayank Kumar Dwivedi replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"सादर नमन आदरणीय जी अद्वितीय, अनुपम सृजन हुआ है sir जी 🙏"
2 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"अप्रतिम सृजन हुआ है आदरणीय जी 🙏🙏"
2 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"अद्वितीय सृजन है आदरणीया जी 🙏अनुपम अशआर हुए हैं 🙏"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"अच्छी ग़ज़ल हुई है ऋचा जी।  // तीसरा शेर अच्छा लगा // शेर 5 में अगर राज़ किसी को भी न मिला तो ये…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service