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गया पुराना साल अभी तो
नए साल की आई बेला।
फसल पकी अब झूम रही है
लगता है बैसाखी मेला।।

करें याद गुरू गोविन्द को
याद पंज प्यारे भी आएँ
अरदासें होती हैं इस दिन
धर्म-रक्षा की ख़ुशी मनाएँ
भूल मनुष की पूजा को
ना रहे गुरू कोई चेला
फसल पकी अब झूम.........

हम को लेकर जाते बाबा
जब बैसाखी के मेले में
माँ भी साथ हमारे जाती
तब बैठ-बैठकर ठेले में
खेल-खिलौने सजी दुकानें
चाट-जलेबी का भी ठेला
फसल पकी अब झूम रही है......

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति , हार्दिक बधाई ।
अनुमोदन एवम् प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।

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