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छम छम छम छम बरखा बरसे,  

टर्र टर्र मेंडक बोले मोर नाचते हर्षे
पशु पक्षियों में खुशिया छा जाए 
मीठी मीठी कोयल भी बतलाये ।   
कल कल करती नदिया बहती 
बागो में हरियाली छा जाती । 
छम छम करती बरखा आये 
हम सबकी फिर प्यास बुझाए । 
कड़क कड़क कर बिजली गरजे 
बच्चे देख देख खुश होकर  नाचे । 
पेड़ पर बन्दर काँपे थर थर थर थर 
मिले न उसको छुपने को कोई घर । 
(मौलिक व् अप्रकाशित)
-नेहांश लडीवाला कक्षा IV
द्वारा लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Replies to This Discussion

बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी,मेरे पोते को  कक्षा में सुनानी थी, वह मेरी रचनाओं को देखता/पढता

रहता है उसकी ही लिखी रचना को थोडा बहुत आकर दिया है | आप से बच्चे का होंसला बढेगा | आभार स्वीकारे 

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 

बाल साहित्य समूह में रचना प्रेषित करने के लिए हार्दिक आभार..

जिस तरह हिन्दी छंदों को आप साध रहे हैं, उसी तरह छंद मुक्त को भी एक ही मात्रा के आधार पर साधने का प्रयत्न करें..सादर.

डॉ प्राची जी, आपकी सुझावात्मक टिप्पणी हमेशा मार्ग दर्शन का काम करती है | इसके लिए हार्दिक आभार |

दरअसल पोता कभी कभी ओ बी ओ पर मेरी रचनाएं पढता रहता है, कम्प्युटर का ज्ञान उसे मुझसे ज्यादा है |

कक्षा में सुनाने के लिए उसकी ही लिखी रचना को मैंने ज्यादा कान्त-छांट कर अपने शब्दों में लिखना उचित 

नहीं समझा और थोडा बहुत लयात्मकता का आकार देकर छोड़ दिया | कक्षा में रचना अच्छी लगी बताते है |

उसका प्रणाम स्वीकारे |

अति सुन्दर.... आपको और आपके पोते, दोनो को बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

आपका हार्दिक आभार श्री विजय निकोरे जी, बहुत दिनों बाद आप की टिपण्णी पढ़कर ख़ुशी हुई |

पोते नेहांश का प्रणाम स्वीकारे 

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"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
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