For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-११(Now Close)

सम्मानित ओ बी ओ सदस्यों,

सादर प्रणाम !
इन दिनों कुछ व्यस्तताएं ऐसी हैं कि आप सबकी रचनाओं पर प्रतिक्रया भी नहीं दे पा रहा हूँ और पिछले दोनों आयोजनों में भी ठीक से हाजिरी नहीं लगा सका | आशा है आप सब क्षमा करेंगे | यह एक सुखद अनुभूति है कि "चित्र से काव्य तक" अंक-२  आयोजन में एक बार पुनः चार अंकों में टिप्पणियाँ पहुँची | यह सब आपके सहयोग और आयोजकों के सतत परिश्रम का ही फल रहा है | तरही के आयोजन में वैसे ही काफी विलम्ब हो चुका है और भगवान भुवन भास्कर भी अपनी पूर्ण तीव्रता पर जा पहुंचे हैं इसलिए इस बार ज्यादा पसीना ना बहवाते हुए एक आसान सा मिसरा दिया जा रहा है | पिछली तरही तो आप सबको याद ही होगी, इस बार भी मुनव्वर साहब की ही गज़ल से मिसरा लिया गया है और बह्र भी वही है | तो फिर आइये घोषणा करते है "OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११ की |
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है 

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन 
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
रदीफ : कराया है 
काफिया : आ की मात्रा (रुसवा, फाका, ज़िंदा, तनहा, मंदा .....आदि आदि) 
इस बह्र का नाम बहरे हज़ज़ है इसका स्थाई रुक्न मुफाईलुन(१२२२) होता है | ये इस मिसरे में चार बार और पूरे शेर में आठ बार आ रहा है इसलिए इसके आगे हम मुसम्मन लगाते हैं और चूँकि पूरा मिसरा मुफाईलुन से ही बना है इसलिए आगे हम सालिम लगाते हैं | इसलिए बह्र का नाम हुआ बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम | बह्र की अधिक जानकारी और अन्य उदाहरणों के लिए यहाँ पर क्लिक कीजिये|

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी कि कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें |


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ मई दिन शनिवार के लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० मई दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश 
OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११ के दौरान अपनी ग़ज़ल पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी ग़ज़ल एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर २८ मई से पहले भी भेज सकते है, योग्य ग़ज़ल को आपके नाम से ही "OBO लाइव तरही मुशायरा" प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
Facebook

Views: 6155

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

ये दिल आपका शुक्रगुज़ार है धर्मेन्द्र जी।

/ज़रा सी ज़िद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है,
लहू के रिश्तों  के चौपाल को गूंगा कराया है।/ बेहतरीन मतला, भाई अहंकार और दौलत के आगे लहू के रिश्तों का मूल्य घटने लगा है |

/वो ख़ुद तो बेवफ़ाई के मज़ारों में भटकती है, 
मगर मुझसे वफ़ा के महलों का वादा कराया है/ तुम करो तो ठीक और हम करे तो बेवफाई , बहुत खूब भाई साहब , उम्द्दा ख्याल है ,

/किनारों ने सितम तो ढाये,अहसां भी किया लेकिन, 
समन्दर की शराफ़त से मेरा रिश्ता कराया है/  क्या बात है जनाब , खुबसूरत शे'र |

/उन्हें मैं भूलना तो चाहता पर,वस्ल को आतुर
इरादों ने कफ़न की याद को ताज़ा कराया है/ आह , दर्द में दुबे गहरे शे'र , बहुत बढ़िया |

/सुनों इस मुल्क से मेरी सियासत हिल नहीं सकती,
यहां हर साल मैंने इक न इक दंगा काराया है/  उम्द्दा ख्याल, सियासत के लिए दंगा minimum qualification है भाई ,

/वफ़ा के सख़्त ईटों से बना घर भी ढहेगा कल, 
सितमगर बेवफ़ा ने नींव में गढ्ढा कराया है/ बिलकुल सही बात , अच्छा शे'र

मुहब्बत भी इबादत की ज़मीं से कम नहीं ये कह
हमेशा उसने अपने पैरों का सजदा कराया है। आय हाय , क्या बात कही है आपने , बहुत खूब , दिल में उतरते चला गया यह शे'र |

चराग़ों की ज़मानत  दानी ने ली ,ऐसा कह तुमने,
हवाओं की अदालत से मेरा झगड़ा कराया है। खुबसूरत मकता ,

खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद कुबूल कीजिये संजय भईया |

आदरणीय बागीजी आपने हर शे,र पर सकरात्मक टिप्पणी कर मुझे  सर

झुकाने के लिये मजबूर कर दिया है।

बागी जी, हमारा भी ठेंगा आपकी बला से .... हा हा हा

 

वीनस मैं तो संजय भईया से लिफ्ट मांग रहा हूँ | आप भी आ जाओं, साथ हो लेंगे |
शानदार प्रस्तुति है ये संजय साहब की....बहुत ही बढ़िया लिखा है उन्होंने....धन्यबाद इसे यहाँ पोस्ट करने के लिए एडमिन साहब...
प्रीतम जी आपका आभार।

हर बार की तरह से दानी साहब ने फिर से एक पुरअसर गज़ल भेजी है उन्हें ढेरों मुबारकबाद

सुनों इस मुल्क से मेरी सियासत हिल नहीं सकती,
यहां हर साल मैंने इक न इक दंगा काराया है।

वफ़ा के सख़्त ईटों से बना घर भी ढहेगा कल,  
सितमगर बेवफ़ा ने नींव में गढ्ढा कराया है।

ये शेर खास पसंद आये|

बहुत बहुत शुक्रिया राना प्रताप जी।

मुक्तिका:
*
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है.
समझदारों की बेकदरी ने
सिर नीचा कराया है..

ज़माने ने न जाने किससे कब-कब क्या कराया है.
दिया लालच, सिखा धोखा,  दगा-दंगा कराया है..

उसूलों की लगा बोली, करा नीलाम ईमां भी.
न सच खुल जाये सबके सामने, परदा कराया है..

तिलकधारी था, योगीराज बागी दानी भी राणा. 
हरा दुश्मन को, नीचा शत्रु का झंडा कराया है..  

सधा मतलब तो अपना बन गले से था लिया लिपटा.
नहीं मतलब तो बिन मतलब झगड़ पंगा कराया है..
 
वो पछताते है लेकिन भूल कैसे मिट सके बोलो-
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है..

न सपने और नपने कभी अपने होते सच मानो.
डुबा सूरज को चंदा ने ही अँधियारा कराया है..

सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी 'सलिल' होता-
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है..

बही बारिश में निज मर्याद लज्जा शर्म तज नदिया.
'सलिल' पर्वत पिता ने तजा, जल मैला कराया है..

***

बहुत ही सुंदर रचना है आचार्य जी। आपकी कलम को नमन और बहुत बहुत बधाई

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
2 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service