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जियादा हो महल ऊँचा तो तहखाना भी होता था
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था
कई जीवन जिये हमने निगाहों ही निगाहों में
तुम्हें खोना भी पड़ता था तुम्हें पाना भी होता था
न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था
मुझे मालूम तुम पति से कहोगी एक दिन हँसकर
फटे जूतों में मेरा एक दीवाना भी होता था
जहाँ फाँसी चढ़ी ममता जहाँ गोली लगी सच को
जहाँ पर न्याय था घायल वहीं थाना भी होता था
//जियादा हो महल ऊँचा तो तहखाना भी होता था
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था//
//कई जीवन जिये हमने निगाहों ही निगाहों में
तुम्हें खोना भी पड़ता था तुम्हें पाना भी होता था//
//न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था//
//मुझे मालूम तुम पति से कहोगी एक दिन हँसकर
फटे जूतों में मेरा एक दीवाना भी होता था//
//जहाँ फाँसी चढ़ी ममता जहाँ गोली लगी सच को
जहाँ पर न्याय था घायल वहीं थाना भी होता था//
वाह धर्मेन्द्र भैया
सबसे पहले तो मुशायरे का आगाज़ करने के लिए बहुत बहुत बधाई
जियादा हो महल ऊँचा तो तहखाना भी होता था
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था
यक़ीनन ...अक्सर बढ़िया दिखने वाली वस्तु बढ़िया नहीं होती है...ऊंचे महलों में अक्सर वीरान तहखाने भी पाए जाते हैं|
प्रतीकों में गहरी बात
कई जीवन जिये हमने निगाहों ही निगाहों में
तुम्हें खोना भी पड़ता था तुम्हें पाना भी होता था
वाह!!! ये हुआ असली शेर..शेर नहीं बब्बर शेर
न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था
आय हाय ...सारे उम्रदराज श्रोताओं की तरफ से एक करोड तालियाँ
मुझे मालूम तुम पति से कहोगी एक दिन हँसकर
फटे जूतों में मेरा एक दीवाना भी होता था
बहुत खूब...क्या दीवाने का जूता उसी के कारण फट गया था?
जहाँ फाँसी चढ़ी ममता जहाँ गोली लगी सच को
जहाँ पर न्याय था घायल वहीं थाना भी होता था
बेहतरीन शेर ..आज के थाने का एकदम सही विश्लेषण किया है आपने
बेहतरीन शेरो से सजी गज़ल के लिए ढेरों दाद और मुबारकबाद कबूलिये
वाह धर्मेन्द्र जी पहले ही मिसरे से जानदार ग़ज़ल कही है |
जियादा हो महल ऊँचा तो तहखाना भी होता था
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था
गहरी बात सधा अंदाज़ बधाई हो !!!!!
कई जीवन जिये हमने निगाहों ही निगाहों में
तुम्हें खोना भी पड़ता था तुम्हें पाना भी होता था
न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था
waah waah.. Dharmendra ji...bahut hi khoobsurat gazal kahi hai..bahut bahut badhai..
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