For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १८ (Now Closed With 424 Replies)

परम आत्मीय स्वजन

 पिछले दिनों अदम गोंडवी हमारे मध्य नहीं रहे, वह अदम गोंडवी जिन्होंने अपनी कलम को हमेशा अंतिम पंक्ति के आदमी के लिए इस्तेमाल किया| सादगी की प्रतिमूर्ति अदम गोंडवी, दुष्यंत कुमार की परम्परा के प्रतिनिधि शायर थे| उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से सामाजिक विषमताओं, समाज में शरीर पर मैल की तरह जम चुके भ्रष्टाचार और निचले तबके के इंसान की भावनाओं को स्वर दिया| "जबकि ठन्डे चूल्हे पर खाली पतीली है| बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है" यह पंक्तियाँ लिखने के लिए एक साहस की आवश्यकता होती है और जिस इंसान के अंदर यह साहस आ जाये वही बड़ा शायर कहलाता है|

अदम गोंडवी का असली नाम रामनाथ सिंह था| ग्राम आटा, जनपद गोंडा, उत्तर प्रदेश में सन १९४२ ई० को उनका जन्म हुआ था| उनके लिखे गजल संग्रह 'धरती की सतह पर'मुक्ति प्रकाशन व 'समय से मुठभेड़' के नाम से वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुए।

इस बार का तरही मुशायरा भी हम अदम गोंडवी को श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित करते हैं| प्रस्तुत मिसरा भी उन्ही की एक गज़ल का हिस्सा है और हमें इसी मिसरे पर कलम आजमाइश करनी है|

"जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से"

तकतीई: जि/१/से/२/सा/२/हिल/२    कि/१/हस/२/रत/२/हो   उ/१/तर/२/जा/२/ये/२     स/१/फी/२/ने/२/से/२

बह्र: बह्र हज़ज़ मुसम्मन सालिम

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

रदीफ: से

काफिया: ईने (सफीने, महीने, करीने, जीने, सीने आदि)


विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें | 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ दिसंबर दिन बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० दिसंबर दिन शुक्रवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १८ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती   है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ दिसंबर दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |
                                                                                                            

        मंच संचालक
     राणा प्रताप सिंह 

     (सदस्य प्रबंधन)
ओपनबुक्स ऑनलाइन 

Views: 11695

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

वनीत भाई साहब, कृपया कर इस दरम्यान क्षमा आदि की बात न लायें. यह सब तो नेट पेज आदि की बातें हैं, जो सतत प्रयोग तथा लगातार आदत आदि से स्वयं सधती जातीं हैं.  भाईजी, मैं ही किसी अन्य पेज पर जाऊँ तो मुझ भी वहाँ संयत होने में कुछ समय तो अवश्य लगेगा.  मैंने तो आपको मात्र अगाह भर किया था यह भान होने पर कि आपने आदरणीय तिलकराज भाई की ग़ज़ल पर टिप्पणी की थी.

सधन्यवाद.

आदरणीय अदम साहब जिनकी ये पंक्तियाँ "ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में, मुसल्‍सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में" को ध्यान में रख कर मैंने ये पंक्तियाँ लिखी.. कुछ पता नहीं बह्र में हूँ या नहीं.. बस उन्हें ध्यान में रखा गाता गया और लिखता गया... आप सब के समक्ष मेरा यह प्रयास सादर समर्पित है..


नसों में खौलता है खूं है उठती धौंक सीने से
जिन्हें सौंपा है हमने देश अक्सर हैं कमीने से

 

बड़े ही नामुराद हैं लोकतंतर के ये रखवाले
फरेबों को लपेटे खादी में रखा करीने से

 

अमीरों में है जो फैशन गरीबों की वो मजबूरी
पहनते दोनों ही चिथड़े बड़े थोड़े से झीने से

 

मुझे तो रास्तों से प्यार है, है रास्तों में मौज
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफीने से

 

है उनकी शख्सियत सादी, है उनकी लेखनी उम्दा
अदम साहब पे हैं कुर्बान लफ्ज़ ये भाव भीने से

 

--दुष्यंत....  

अमीरों में है जो फैशन गरीबों की वो मजबूरी
पहनते दोनों ही चिथड़े बड़े थोड़े से झीने से

लाजवाब

dhanyavaad virk saahab.. ye ansh aapko pasand aaya ... hardik dhanyavaad

अभी आप उम्र में कच्‍चे हैं इसलिये एक सलाह दे रहा हूँ। अच्‍छे साहित्‍य में भाषा का संतुलन कायम रखना जरूरी होता है।

'जिन्हें सौंपा है हमने देश सारे हैं कमीने से' आपत्तिजनक है। सभी एक से नहीं होते भाई।

आप सही हैं तिलकराज जी, पर यही तो समय और वयस की उबाल कहलाती है !

अब  सारे   को  अक्सर  कर दें तो  बात और समस्या दोनों सुलझ गयी .. .   :-)))))

बोलो ज़िन्दाबाद !! .... .  जय ओबीओ !!!

 

आद. तिलक राज जी... आपकी गुरुत्तर सलाह को सर आँखों पर धारण करता हूँ.. दरअसल जिस अज़ीम शख्सियत की यहाँ बात हो रही है... उनकी भी लेखनी प्रायः भ्रष्ट व्यवस्था की सड़ांध को उघाड़ने वाली हुआ करती थी. उसे रौ में बहकर कुछ अधिक लिख गया.. 

आद. सौरभ पाण्डेय जी.. आपकी अचूक सलाहों और निवारणों पर तो मैं क्या कहूँ...  एडमिन से अनुरोध करूँगा कि सौरभ सर की सलाह के अनुसार सुधार कर दिया जाए.. आपने रचना पढ़ी उसके लिए हार्दिक धन्यवाद.. 
जय ओ बी ओ 

वांछित सुधार कर दिया गया है |

bahut dhanyavaad admin sahab

fir ek baat aur hai... vartamaan haalaton aur apne jis samay tippani di hogi us wakt sansad me chal rahi raas leela shayad mere in shabdon ke aas paas hi hai... khair.. vaanchhit sudhar karna mera farz hai.. 

ग़ालिब साहब का एक शेर याद आ रहा आदरनीय दुष्यंत भाई...

"कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को

ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता.

कहन अगर जिगर से पार होने की बजाय जिगर में चुभ कर रह जाए तो ज्यादा प्रभावी होती है... हम सभी विद्यार्थी  गुरुजनों की छाया में "तीर को थोड़ा कम खींच कर" छोड़ने का अभ्यास करें तो आनंद आ जाएगा...

सादर. जय ओ बी ओ

आद संजय जी, सीखने की ही तो उम्र है ... बस मुझे तो कोफ़्त हुई कि सामायिक हालत ऐसे ही देखे लगा कि .... ये तो शीयर कमीनापन ही है. राज्य सभा में जो कुछ चल रहा था वह देख कर तो ऐसे ही लगा.. बहुत धन्यवाद आपकी नजर ए सानी के लिए..  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service