For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-83 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-83 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँ

विषय - "उन्माद"

आयोजन की अवधि- 8 सितम्बर 2017, दिन शुक्रवार से 9 सितम्बर 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक

 

पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद किन्हीं की स्वीकृत रचना प्रस्तुत होने से रह गयी हो तो वे अवश्य सूचित करेंगे.

 

 

सादर

मिथिलेश वामनकर

मंच संचालक

(सदस्य कार्यकारिणी)

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

क्षणिकाएँ- मोहम्मद आरिफ़

==================

 

(1) उन्माद की

दीवानगी

जला देती है

कई आशियानों को ।

(2) जब उन्माद की

ज्वाला भड़कती है तो

जल जाते हैं

विरासत के

निशान भी ।

(3) इन दिनों

मेरा देश

उन्माद की

घनघोर बारिश

और हिंसा की

बाढ़ की चपेट में है ।

(4) कुछ

उन्मादी दरिदें

जलाकर इंसानियत को

सेंक रहे हैं

हथेलियों को ।

(5) अब तो

धरती की भी

उखड़ रही है साँसे

देखकर

उन्मादियों का तांडव ।

(6) उन्मादियों ने

चीर दिया है

पेट प्रजातंत्र का

अँतड़ियाँ फेंक दी है

संसद सड़क पर ।

------------------------------------------------------------------------------------------------

उन्माद शमन का निश्चय कर- ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र

===================================

घर से चुपचाप निकल

दबाकर अपने पदचाप निकल,

उन्माद शमन का निश्चय कर

मिटाने को संताप निकल।

गलियों को देख जहां

सोये है लोग सताए जाकर।

उनके लिए उम्मीदों के छत का

तू एक वितान खड़ा कर।

तू सूरज का एक कतरा

लाने को रवि ताप निकल।

उन्माद शमन का निश्चय कर

मिटाने को संताप निकल। 

   

कोई नारा नहीं जो बदल दे

सूरत आज और कल में।

मुठ्ठियों को भींच, छलकाओ,

अमृत कलश जल थल  में।

सिसकियों में सोते हैं, उनके

मिटाने को विलाप निकल।

उन्माद शमन का निश्चय कर

मिटाने को संताप निकल।

जो बीमार सा चाँद दिखे

तो तू लेकर उपचार चलो।

जंगल में जब दावानल हो,

तू लेकर जल संचार चलो।

लेते हैं जो छीन निवाले

बन्द करने उनके क्रिया कलाप चल।

उन्माद शमन का निश्चय कर,

मिटाने को संताप निकल।

भेद डालकर अपनो में

जो विग्रह करवाते  है,

यहां लड़ाते, वहां भिड़ाते,

खून का प्यासा  बनाते हैं।

वहां प्रेम का विरवा रोपें,

करवाने को मिलाप चल।

उन्माद शमन का निश्चय कर,

मिटाने को संताप निकल।

-------------------------------------------------------------------------------------------------

ग़ज़ल- तस्दीक अहमद खान

=====================

 

वफ़ा की राह में ठोकर खिला गया उन्माद |

किसी के कुचे में फिर ले के आ गया उन्माद |

किसी हसीन की चाहत में क्या बताएँ हम

ठिकाना क्या है ज़माना छुड़ा गया उन्माद |

जुनूने इश्क़ में पत्थर तो मैं ने खाए मगर

निगाहे यार में मुझ को उठा गया उन्माद |

ठिकाना जिसका न कोई न कोई मंज़िल है

ग़ज़ब है रस्ता हमें वो दिखा गया उन्माद |

मुझे तो यार का घर भी लगे है अपना घर

ये किस मुक़ाम पे मुझको बिठा गया उन्माद |

क़ुसूरवार थे इस में किसी के जलवे भी

मेरे ख़याल पे यूँ ही न छा गया उन्माद |

मिली हैं ठोकरें तस्दीक़ सिर्फ़ खाने को

सनम के कूचे का पत्थर बना गया उन्माद |

 

---------------------------------------------------------------------------------------------

ग़ज़ल-मनन कुमार सिंह

=============================

 

हर दिल में फरियाद बहुत है

मौसम में उन्माद बहुत है।1

 

बेबातों के तीर चलाते

वैसों की तादाद बहुत है।2

 

टुकड़े-टुकड़े बँटती धरती?

फिर भी आज विवाद बहुत है।3

 

आईना क्या खाक बचेगा ?

पत्थरदिल आबाद बहुत है।4

 

राम भरोसे अंधी अबला,

मुजरिम तो आजाद बहुत है।5

 

पौधे सूख रहे सूखे से

झुरमुट पाता खाद बहुत है।6

 

सुर की महिमा मौन हुई अब

बढ़ता जाता नाद बहुत है।7

 

चाहे कुछ भी कर लो लेकिन

दुनिया में अपवाद बहुत है।8

 

हालातों से जूझ रहे हम

हालत तो नाशाद बहुत है।9

 

------------------------------------------------------------------------------------------

चौका-बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

============================

 

अंधा विश्वास

अंधी आस्था करती

विवेक शून्य

क्षणिक आवेश में

मानव पस्त

यही तो है उन्माद।

मनुष्य नाचे

कठपुतली बन

जिसकी डोर

बाज़ीगर के हाथ

जैसे वो चाहे

नचाता है सबको

मस्तिष्क शून्य

पुतलों से हों सब

नग्न नर्तन

करे मचा तांडव

लूट हिंसा का

कैसा घोर विषाद

यही तो है उन्माद।।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------

 

हाइकू- तस्दीक अहमद खान

================================

 

(1)कैसा उन्माद

बे क़ाबू मँहगाई

नेता ख़ामोश

 

(2)दुनिया छोड़ी

प्यार की ख़ातिर

दिल का उन्माद

 

(3)ख़ून बहाए

भाई भाई का

मज़हबी उन्माद

 

(4)हैरान जनता

देख के रहबर का

सियासी उन्माद

 

(5)अपनाओ प्यार

सब का ख़ून लाल

छोड़ो उन्माद

--------------------------------------------------------------------------

 

अतुकान्त - डॉ. टी.आर. शुक्ल

============================

 

चञ्चल पवन के थपेड़ों को सहता

अञ्चल में पाहन के रोड़ों को रखता

पल रहा हॅूं ,

चल रहा हॅूं दिन रात,

गन्तव्य के लिये।

उन्मत्तता साधे व्याकुलता जगाये

चिन्तनता लादे, लालसा भगाये

घुल रहा हॅूं,

मिल रहा हॅूं हर बार

अपनत्व के लिये।

संगीत से दूर ,चहल पहल मिटाकर

भूख प्यास भूल, दलदल में जाकर

लेटा हॅूं,

बैठा हॅूं टकटकी लगाये

अपना लक्ष्य लिये।

चलता अपनों में अपरिचित सा लगता

मिलता सपनों में अचानक बिगड़ता

भर रहा हॅूं सांस,

कर रहा हॅूं प्रयास...

कर्तव्य के लिये।

 

-----------------------------------------------------------------------------------------

 

आल्हा (वीर छन्द)- डॉ छोटेलाल सिंह

================================

 

मचा रहे उन्माद दरिन्दे, बढ़ता जाता अत्याचार

हरपल खून की बहती धारा, आज आदमी है लाचार

लिप्सा के कीचड़ में फँसकर, करता जाता है व्यभिचार

आफत की आँधी है आयी, सभी झेलते गम की मार ll

 

आम आदमी भी पिसता है, अधर्म का सहता है वार

शहर शहर हर गली गली में, उन्मादी करते तकरार

बनकर क्रूर लहू को पीता, बना आदमी दानव आज

चीर हरण करने में अब तो,नही किसी को लगती लाज ll

 

लानत है ऐसी जनता को, कभी नही करती प्रतिकार

ठोकर पर ठोकर सहते हैं, बनते जाते आज शिकार

मुट्ठी भर लोंगों की ताकत,सबकी करती बन्द जुबान

किसकी सह पर आज दरिंदा,बनकर बैठा है हैवान ll

 

चन्द आदमी बने लुटेरे, सारी हद को करके पार

बीच सड़क पर तांडव करते, हर कोई दिखता लाचार

खुलेआम उन्मादी जग में, खूब मचाते हाहाकार

मानवता को कुचल रहे हैं, उन्मादी जुल्मी बदकार ll

 

जो कोई उन्माद करे तो,सजा मिले उसको तत्काल

हवालात की हवा खिलाएं,नित करता जो बहुत बवाल

मनमानी करने वाले को,सबक सिखाएं अबकी बार

आम आदमी रहे अमन से,हो चाहे कोई सरकार ll

 

-----------------------------------------------------------------------------------------

गीत (सरसी छंद)- सीमा मिश्रा

================================

 

पीड़ाओं से सदा घिरे जो, उनका अंतर्नाद

तुम कैसे कह दोगे इसको, क्षण भर का उन्माद

 

भीतर भीतर सुलग रही थी, धीमी धीमी आग|

अपमानों के शोलों में कुछ, लपट पड़ी थी जाग||

रह-रह के फिर टीस जगाते, घावों के वो दाग|

एक उदासी का मौसम बस, क्या सावन क्या फाग||

संवादों के कारागृह में, कैसा वाद-विवाद... 

 

सदियों से ही रहा तृषित मन, आएगी कब बार|

छोड़ चला धीरज भी नाता, क्लेश धरा आकार ||

रहा सदैव उपेक्षित जीवन, सह कलुषित व्यवहार|

पाया नहीं उजास कहीं भी, कैसे हो तम पार||

किस दुख ने कब कब पिघलाया, हर पल की है याद...

 

--------------------------------------------------------------------------------------------

 

गजल-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

===================================

 

न कोई बीज पत्ता या सजर उन्माद में डूबा

भला फिर क्यों तेरा सारा नगर उन्माद में डूबा ।1।

 

ये मजहब जो अनेकों हैं बिवादों की वजह इतनी

रही हर नीव तो सहमत शिखर उन्माद में डूबा ।2।

 

सदा चुनती है जनता पथ जिसे रहबर दिखाता है

रहे भेड़ो सी हालत ही वो गर उन्माद में डूबा ।3।

 

पलट इतिहास देखो कुछ समझ ये बात आएगी

सलामत कब थे वाशिंदे जो घर उन्माद में डूबा ।4।

 

किया उद्धार पुरखों का भगीरथ ने विनय अपना

जिन्हें अभिषाप था कारण सगर उन्माद में डूबा ।5।

 

बहुत विद्वान हूँ कहता मनुज कुछ चाँद तारे छू

तबाही द्वार पर बैठी मगर उन्माद में डूबा।6।

 

बदल जाएगा सदियों का सफर इतना समझले तू

'मुसाफिर' अब जो जीवन का पहर उन्माद में डूबा ।7।

 

------------------------------------------------------------------------------

 

बोलने वाला कीड़ा- सतविन्द्र कुमार

==============================

 

यह बोलने वाला कीड़ा

जब कंठ में उतर आता है

बोलना शुरु करके,बोलता ही जाता है

सामने वाला बोले तो इसे,

कतई न भाता है

यह अपनी हर बात पर उसकी

दाद चाहता है

कोई अकेला मिले या समूह में

यह सबको पकाता है

 

यह बोलने वाला कीड़ा

जब यह मंच पर आता है

आत्म मुग्ध होकर,कई बार

बस बोले ही जाता है,और

अपनी बारी के इंतज़ार में

बेचैन ख़ीजे रहते हैं,

कुछ ऐसे ही कीड़े, कईं कण्ठों के

नीचे रहते हैं

नहीं समझता उनकी पीड़ा

यह बोलने वाला कीड़ा

 

बस बोलता है यह,

बोल के

माप-तोल पे

इसका कोई ध्यान नहीं होता

विशिष्ट सन्देश वाहक बन

कई कानों को, जोड़ता है यह

और प्रशिक्षित करता है

खुद जैसे कईं कीड़े,

जो दिलों में दूरियाँ

बीजतें हैं

 

यह बोलने वाला कीड़ा

समूहों का नेतृत्व भी करता है

उनका मसीह बनने का दम भरता है

उनको लगता है यह मीठा बोलता है

पर,यह तो नफ़रत का जहर घोलता है

स्वघोषित ईश्वर यह,खुद के अपराध को

अपराध नहीं मानता

और अनेक खामोश कीड़े इसे चाहते हैं

इसके लिए सड़कों पर आते हैं,

तो सड़क औ शहर के

हालात बदल जाते हैं

 

यह बोलने वाला कीड़ा

बस उन्माद होता है

और उन्माद ही बोता है।

 

कई बार दबे-कुचले अनेक कीड़ों

की कोई परवाह करता है

खामोश रहता हुआ कोई कीड़ा

एक दम बोल पड़ता है

हक़ के लिए यह उनकी

आवाज़ बनता है

और तब भाने लगता है

यह बोलने वाला कीड़ा।

---------------------------------------------------------------------------------------

 

ग़ज़ल- बलराम धाकड़

=======================

आवाज़ वक़्त की है ये उन्माद तो नहीं

तसदीक़ आख़िरी है ये उन्माद तो नहीं

 

भौंरे के साथ फूल का रिश्ता नया नया

परवाज़-ए-आशिक़ी है ये उन्माद तो नहीं

 

बेज़ान से बुतों में कोई जान आ गई

सचमुच ही बन्दगी है ये उन्माद तो नहीं

 

लाखों प्रयास हो रहे बेटी के नाम पर

मुद्दा ये वाक़ई है ये उन्माद तो नहीं

 

देखें नया नया ये चलन सोचिये ज़रा

कैसी ये ज़िन्दगी है ये उन्माद तो नहीं

 

जैसे हुए हैं रोज़ कई हादसे यहाँ

ये अक़्ल सोचती है ये उन्माद तो नहीं

 

आये अभी अभी ये ख़यालात जह्न में

ग़ज़लों में उम्दगी है ये उन्माद तो नहीं

-----------------------------------------------------------------------------------

 

दोहा छंद- अशोक कुमार रक्ताले

============================

सत्तामद पाकर बना, देशभक्त ले मान |

देशभक्ति उन्माद में, होता फर्क सुजान ||

 

खेल नहीं उन्माद है , जो लाता है काल |

दूर रहें ‘ब्लू व्हेल’ से, सबके शिशु गोपाल ||

 

प्रीति नहीं जिस प्रेम में, केवल तन की चाह |

वह तो है उन्माद बस , और वासना राह ||

 

सौ बच्चों की मौत पर, करे भीड़ उत्पात |

उन्मादी इसको कहें, क्या है अच्छी बात ??

 

प्रेम भक्ति निष्ठा लगन, देते शुभ परिणाम |

बुरा मगर उन्माद का , होता है अंजाम ||

 

------------------------------------------------------------------------------------------------

Facebook

Views: 894

Reply to This

Replies to This Discussion

संकलन प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं बधाई आदरणीय मिथिलेश भाई साहब!

हार्दिक आभार आपका 

मुहतरम जनाब मिथिलेश साहिब, ओ बी ओ लाइव महा उत्सव अंक -83 के संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

हार्दिक आभार आपका 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
10 hours ago
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. रवि जी,ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service