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आदरणीय वीर मेहता भाई जी, आपकी इस लघुकथा का कथानक मन मोह गया| शांति के लिए प्रयासरत ही सच्चे देशभक्त होते हैं| सादर बधाई आपको इस रचना के लिये|
सियासत में कौन से फैसले कैसे लिए जाते हैं, आम लोगों की समझ वाली बात नहीं है , सियासत तो बस सियासत होती है , यही इस लघुकथा में देखने को मिली - लघुकथा के लिए बधाई हो
~~ढ़ाई घर ~~
"काकी,ओ काकी कहाँ हो ?"
"अरे बिटिया आओ-आओ बईठो | बड़े सालों बाद दिखी | ये तेरी बिटिया है न कित्ती बड़ी हो गयी हैं | सुना ही होंगा तेरे काका और भाई ..| सुंदर मेहरिया जमाने में कैसे जियेगी बदसूरत को तो अकेले देख भेड़िये झपट ही पड़ते | मैं कब तक रहूंगी | आज गयी की कल |" कह सुबकने लगी काकी |
"काकी क्या कहूँ इस दुःख की घड़ी में | सुनी तो दौड़ी आई |"
"पहाड़ सी जिनगी कैसे काटेगी अकेली वह भी इस दुधमुहें के साथ |"
"मैं कुछ कहूँ काकी ?"
'हा बोल बिटिया !!"
"इसकी शादी मेरे बेटे से करवा दो | मेरा बेटा कुंवारा हैं और ये एक बच्चे की माँ ,पर किस्मत को शायद यही मंजूर हैं |"
" पर....!!"
"पर-वर छोड़ काकी कोई कुछ न कहता | कित्ता दूर का रिश्ता है अपना | कोई नजदीकी रिश्ता तो हैं न की समाज बोलेगा | और समाज का क्या हैं ,कुछ न कुछ बोलता ही हैं | और दूजी बात हम यहाँ कौन सा रहते ,रहते तो शहर में न | कुछ कहेंगा भी तो कौन सुनने आ रहा |"
"बहू से पूछ लूँ |"
घोड़ा अपनी ढ़ाई घर की चाल चल चूका था | रानी भी घिर चुकी थी |
थोड़ी देर में ही काकी लौट मोहर लगा दीं | माँ-बेटी चल दी वहां से |
"मम्मी, ये क्या कर रही हैं आप |एक तो ये वैसे ही दुखी है उप्पर से आप काँटों का ताज पहना रही हैं |"
"चुप कर मुई |कोई सुन लेगा | समाज में इज्जत बनी रहें इसके लिय बहुत कुछ करना होता | और फिर मैं तो उसे एक छाँव दे रही हूँ | मर्द के नाम की छाँव | इसकी भी इज्जत ढकी रहेगी और मेरी भी |"
"मम्मी ,मर्द न, पर भैया तो ..|"
पति को फोन पर बताते ही उधर से 'मानना पड़ेगा तुमको शतरंज की माहिर खिलाड़ी हो' आवाज सुन खिलखिला बोली, "सो तो हूँ | बेजान से ज्यादा जानदार मोहरे चलाने में दिमाग लगाना पड़ता मालूम|"
"मौलिक व अप्रकाशित"
यदि इस लघुकथा पर थोड़ी मेहनत और की जाती तो यह इस आयोजन की पाँच सर्वश्रेष्ठ रचनायों में से एक होती. लेकिन गर्म तवे पर कभी पानी की बूँद ठहरी है जो अब ठहरेगी ? इस अच्छी और विषयानुरूप लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें सविता मिश्रा जी I
आदरणीय योगराज जी भाई साहब इस आयोजन के अंत में यह भी बता दीजिएगा कि वे पाच लघुकथाएँ कौनसी है ? सादर.
हमें मेहनत कैसे करें या तो यह न समझ आ रहा या फिर हम तकनीक ही न पकड़ पा रहें ..पानी की बूंद गर्म तवे पर ठहरे या न ठहरे पर एक दाग जरुर छोड़ जाती |आदरणीय भैया जी आपने सारे उत्साह पर पानी फेर दिया | आपने ऐसी कहावत कह दी कि अब क्या कहें | खैर हमारा सादर अभिवादन स्वविकार कर आप यूँ ही मार्गदशन करते रहें | शायद एक दिन ठहर ही जाये |
पांच के दायरे में कहने भर से ही हमें ख़ुशी हुई | आभार आपका बड़े भैया
निम्नलिखित पंक्तियाँ देखें, और समझें कि मुझे निराशा क्यों हुई ?
//थोड़ी देर में ही काकी लौट मोहर लगा दीं// ये किस तरह की हिंदी है ?
//उप्पर से आप काँटों का ताज// ये "उप्पर" क्या होता है ?
//"मम्मी ,मर्द न, पर भैया तो ..|"// इस वाक्य का क्या अर्थ है?
//बेजान से ज्यादा जानदार मोहरे चलाने में दिमाग लगाना पड़ता मालूम|"// "दिमाग लगाना पड़ता मालूम" ये क्या है?
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