आदरणीय सदस्यगण
78वें तरही मुशायरे का संकलन प्रस्तुत है| बेबहर शेर कटे हुए हैं और जिन मिसरों में कोई न कोई ऐब है वह इटैलिक हैं|
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Nilesh Shevgaonkar
तेरे दीवाने शाइर को लुटे ख़ज़ाने याद आये,
पैमाने होठों के, आँखों के मय-ख़ाने याद आये.
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रोने में लज़्ज़त थी कितनीं जब तक उन का साथ मिला,
फिर तो जैसे हर आँसू को उन के शाने याद आये.
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ज़ह’न जुलाहा जाने कब से बुनता था कुछ ख़्वाबों को,
हाय!! वस्ल के दिन ही सारे उन्हें बहाने याद आये.
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दिल का पूजा घर फिर महका ख़ुशबू फ़ैली संदल की,
यादों का लोबान जो सुलगा, रब्त पुराने याद आये.
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माज़ी से तल्खी को घटाकर जोड़ किया जब ख़ुशियों का,
“तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये.”
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एक बार गर जिस्म छोड़ कर रूह चली फिर कब लौटी?
शाख़ छोड़ती बुलबुल को फिर कब काशाने याद आये?
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सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
आज मुझे ख़्वाबो में बचपन के अफ़साने याद आये
माँ की लोरी और पिता के कुछ नज़राने याद आये।।
जंगल मंगल राजा रानी या परियों के किस्से हों
रोज कहानी कहती दादी के वो ख़ज़ाने याद आये।।
गिरना उठना और सँभलना हँसने की कोशिश करना
घर वालों से बोले झूठे सभी बहाने याद आये।।
कोई चिंता फ़िक्र न कल की, जीवन खेल सरीखा था
सारा दिन करते मस्ती हम वक़्त पुराने याद आये।।
चाँद सितारे बस्ता बचपन और किताबों की दुनियाँ
रेत घरौंदे कागज कश्ती के वो फ़साने याद आये।।
बाँग बगीचे में छिपकर बेर पपीता आम चुराना
ढेले से जो खूब लगाते तीर निशाने याद आये।।
कितनी गाथा गाये तेरी स्वप्न हुआ अब वो बचपन
*तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये।*
'नाथ' राह में कौन कहाँ पर, पीछे छूट गया तुमसे
खोज रहे जो बीत गये पल, ख़्वाब सुहाने याद आये।।
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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"
मस्तक की अल्मिरा खुली तो तेरे फ़साने याद आये
साथ तेरे जो भी बीते थे पल वो सुहाने याद आये
ज़ुल्फ़ घटाएं, होंठ कमल दल, नयन झील, कोकिल वाणी
प्रिये तुम्हारी रूप राशि के सकल खजाने याद आये
कभी नोटबुक कभी कलम तो कभी टॉफियाँ भी देना
तुमसे मिलने जुलने के फिर सभी बहाने याद आये
चन्द पुराने पृष्ठ खुले जब फूल गुलाबी महके तो
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये
फिर आकाश घिरा बादल से फिर गर्जन बरसात हुई
फिर इक टीस उठी है भीतर ज़ख्म पुराने याद आये
हिचकी ने सन्देश दिया है उनके घर जगराता है
जाने जश्न वहां कैसा उन्हें हम क्यों जाने याद आये
सारी दुनिया घूमा लेकिन अम्माँ बाबू हैं अनमोल
जब भी सुकूँ की चाहत की तो अस्ल खजाने याद आये
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
ग़म पी पी कर दिल ऊब गया तो मैखाने याद आये,
तेरी आँखों से मय के छलके पैमाने याद आये।
दबे हुए थे दिल में जो शोले मिली हवाएँ उनको,
तुम याद आये और तुम्हारे साथ जमाने याद आये।
उठी हिलौरें दिल में जब भी गाऊँ कुछ मदहोशी में,
तेरा हाथ पकड़ जो गाये सभी तराने याद आये।
यादों की शहज़ादी को छूने की जब भी चाह करी,
इठला के ना करते तेरे हसीं बहाने याद आये।
संगी साथी जब भी मिलते टीस एक मन में उठती,
मस्ती में झूमे हिलमिल जो दो दीवाने याद आये।
पल जो संग गुजारे तेरे तरसाते अब रह रह के,
मीठे तानों की तकरारों के अफ़साने याद आये।
जीवन में उपहार मिले जो 'नमन' उन्हें जब भी सहजे,
होठों से जो तुने दिये थे वो नज़राने याद आये
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Kalipad Prasad Mandal
इस वक्त के गाने सुन कर वो काल पुराने याद आये
श्रुति प्रिय संगीत से सज्जित वो दिलकस तराने याद आये |
देश नहीं विदेश में भी गुंजा है नोटबंदी उपाय
शासन का यह पासा विपक्ष को तीन कोने* याद आये |
हालात-ए देश अभी पहले से कुछ ज्यादा अच्छा नहीं
लोगों को अब तो एमरजेंसी के जमाने याद आये |
हुई जो प्रबंध की गलती अफसर और कर्णधारों से
अपनी गलती सुधारने के कई बहाने याद आये |
कालाधन जिनके वे बैठे छुपके अन्दर तहखाने
ई डी दल का जब पड़ा छापा तब वो ठिकाने याद आये |
जिसने भी छोड़ा अपनी मातृभूमि सहकर बँटवारा
अक्सर दिल के पुराने ज़ख्मों के वो निशाने याद आये |
बात बहुत छोटी थी के वो मुझको यूँ भुला बैठा था
चोट लगी जब दिल पर उन्हें गुजरे अफ़साने याद आये |
बचपन में बिछुड़े फिर न मिले पछतावा था यह मन में
तुम याद आये और तुम्हारे साथ जमाने याद आये |
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sagar anand
तुमसे मिलने जुलने के वो, शोख़ बहाने याद आये
और तुम्हारी बाहों के वो, नर्म ठिकाने याद आये
यादों की बूंदें बरसीं तो, ऐसा हश्र हुआ ज़ालिम
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये
और मुहब्बत के लहजे में, अश्कों को होना ही था
और वफ़ा की बात चली तो, और दिवाने याद आये
और तुम्हीं मिसरा-ए-सानी, और तुम्हीं रूहे-ग़ज़ल हो
और तुम्हारी याद आयी तो, गीत फ़साने याद आये
और समन्दर के हिस्से में, पानी-पानी है 'सागर'
और नदी की बात चली तो, रेत के दाने याद आये
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गिरिराज भंडारी
जब धूल- धुवाँ हट गये शहर के गाँव पुराने याद आये
जब गाँव गये तो भूले बिसरे सभी फसाने याद आये
सँकरी गलियाँ, टूटे छप्पर, घर माटी के पर सोना दिल
काका –मामा, चाचा- ताउ वो सभी सयाने याद आये
खेल- खिलौने, नदी - रेत में बने घरौंदे , मित्र-सखा
फिर डांट- डपट के डर से घर में किये बहाने याद आये
वो जगराता के गीत सभी, वो फाग –ददरिया की तानें
बरगद की छावों में गाये जो सभी तराने याद आये
वो इतवारी हाट और वो सजी दुकाने तिरपाली
सौदा करते घूम घूम जाने पहचाने याद आये
जब आया स्कूल हमारा जहाँ पाँचवी पढ़े कभी
भला लगा जब सारे गुरुवर उसी ठिकाने याद आये
वो जाम-आम के वृक्ष और वो बेरों वाली झुरमुटिया
उन पर पत्थर मार, लगाये सभी निशाने याद आये
थका हुआ बूढ़ा तन मेरा नीम तले ये सोच रहा
और अगर घूमा तो क्या क्या और न जाने याद आये
भूली बिसरी यादें मन में यूँ उमड़-घुमड़ जब आयीं, तो
" तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये "
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Ashok Kumar Raktale
चित्र पुराने देख के हमको मित्र पुराने याद आये
हमको अपने गुजरे कल के दिन वो सुहाने याद आये
कितनी अपनी सी लगती है चेह्रों पर मुस्कान खिली
भूल चुके थे हम जिनको सब तेरे बहाने याद आये.
देख शरारत उनकी जब-जब भोलेपन की बात चली
“तुम याद आये और तुम्हारे साथ जमाने याद आये”
वो खिड़की पे साँझ सवेरे आना जाना मँडराना
गिन-गिन कर अब किस्से सारे और फ़साने याद आये
इतनी यादें हैं फिर भी है दिल में कितनी तन्हाई
सोच रहा हूँ आज नहीं तो कल वो सताने याद आये
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Amit Kumar "Amit"
भूल-भुलैया से यादों की कुछ अफ़साने याद आये l
तेरी यादों में उलझे सब ताने-बाने याद आए ll
ख्वावों में जब हम दोनों यूँ फिर से मुद्दत बाद मिले l
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये ll
गुमसुम-गुमसुम तन्हा-तन्हा जाने कैसे जीते थे l
मीलों तक सहमी रातों में दो दीवाने याद आये ll
गम पीते ही टूट गये वो अपनों से ही रूठ गये जो l
आँखों से बहती मदिरा के सब पैमाने याद आये ll
हमने जितने लिखे थे और तुमने जितने गाये थे l
उन गीतों मैं छिपे हुए सब राज पुराने याद आये ll
“अमित” तुम्हारी राहों में थे दिए जलाये हमने पर l
न आ पाने के यार तुम्हारे लाख बहाने याद आये ll
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शिज्जु "शकूर"
घर से बाहर जाने के नित नए बहाने याद आए
बेवक्त भटकना याद आया यार पुराने याद आए
काजू के दरख़्तों के नीचे वो तीली का सुलगाना
धुआँ कसैला सिगरट का कुछ अफ़साने याद आए
चंद बहारों के मौसम कुछ बेलौस लड़कपन के दिन
शोख हवाओं की मस्ती चिड़ियों के तराने याद आए
चलते-चलते धूल उड़ाना खुद पर मेरा चिल्लाना
सूनी राहें मीलों तक पसरे वीराने याद आए
मकड़ी के जाले याद आए वो ग़र्द ओ घुटन याद आईँ
रफ़्ता-रफ़्ता दिल को जलाना नम सिरहाने याद आए
आज मुझे कमी तुम्हारी शिद्दत से महसूस हुई थी
रह-रहकर दिल को आज तुम्हारे दो शाने याद आए
तनहाई के साए मेरी रातों से गुज़़रे जब-जब
“तुम याद आए और तुम्हारे साथ ज़माने याद आए”
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सतविन्द्र कुमार राणा
जिनको पूरा करना चाहा ख़्वाब पुराने याद आए
मिहनत सेे अपनी लिखता था सब अफ़साने याद आए
हर गम, हर सुख में मेरे ,साथ हमेशा रहते थे जो
मुझको आज सभी मेरे वे यार सयाने याद आये।
बचपन काटा मिलकर हमने,लड़कर मिलते रहते थे
आज हमें बचपन के अपने सब अफ़साने याद आए।
जब-जब बात चली चाहत की,मेरे आगे लोगों में
तुम याद आए और तुम्हारे साथ जमाने याद आये।
ईमान यहाँ तैयार रहा कुछ टुकड़ों में बिकने को
देकर दुनिया दीन खरीदे वे नज़राने याद आए।
राणा जिनको भूल गया था दुनियादारी में पड़कर
इक बच्चे के मुख से सुनकर आज तराने याद आए।
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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
मुझको मेरी बर्बादी के कुछ अफ़साने याद आये
सुनकर शहनाई जो रोये वो दीवाने याद आये
जब जग ने मुझको ठुकराया तुमने भी दामन छोड़ा
तब जिसने थी बाहें थामी वो वीराने याद आये
सिर रक्खे प्रिय के काँधे पर बेसुध जब उसको देखा
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये
झुटपुट संध्या में एकाकी नदिया पर डाले वंशी
मदिराये मांझी गीतों के वो पैमाने याद आये
मंदिर में ईश्वर के सम्मुख हर दीपक की ज्वाला में
आहुतियों सा स्वाहा होते वो परवाने याद आये
सुनकर गाथा बीते युग की आँखे भर आयीं मेरी
आजादी का दीवानापन वो मस्ताने याद आये
फांसी के फंदे को हंस कर जिन-जिन वीरों ने चूमा
वतनपरस्ती के स्मारक वो मर्दाने याद आये
जाने क्यों जीवन संध्या में फिर पीड़ा-पंकिल तेरी
सपनीली आँखों का जादू वो याराने याद आये
माँ की खुशबू, उसका आँचल, उसकी सांसो का जादू
वो टुटके कजरौटे वाले वो सिरहाने याद आये
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munish tanha
तुमसे हमको प्यार हुआ तो देख बहाने याद आए
जो दिल पे सीधे चोट करें वो तेरे निशाने याद आए
दिल ने तुमको टूट के चाहा इसकी तो ये गलती है
अपना दुखड़ा किस से रोते बस अफसाने याद आए
सबसे छुप के जो मिलते थे कॉफी की दुकानों पर
इक इक घूंट में अपनापन वो मॉल सुहाने याद आए
लाख गरीबी में पलते थे पर फिर भी खुद्दारी थी
कदमों ने जब पाई मंजिल साथ सयाने याद आए
दर्द छुपा के हम हंसते हैं राज़ भला ये क्या जानो
जैसे ही ये शाम हुई तो दो पैमाने याद आए
कितनी यादें ताज़ा हो गयी जब भी तुमको याद किया
तुम याद आए और तुम्हारे साथ जमाने याद आए
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मिथिलेश वामनकर
हम गैरों को देते थे जो जमकर ताने याद आये
अपनों ने जब दिल से लूटा तब बेगाने याद आये
फिर से दसवीं फेल हुए तो, फिर दिल कोई तोड़ गया
बिखरी-बिखरी जुल्फों वाले, कितने शाने याद आये
सावन के अंधे रहकर ही सारी उम्र गुजारी है
आज चमन से धोखा खाया तब वीराने याद आये
दर्द के आगे जीत बताकर देते खूब तसल्ली हम
ख़ुद के पाँव जो फटी बिवाई, दर्द के माने याद आये
उनकी नज़रों के मरहम में यारो ऐसा जादू था
भूल चुके जो इक अरसे से, ज़ख्म पुराने याद आये
बरसो बाद उन्हें देखा तो कब छेड़ा था, याद आया
फिर तबियत से धोने वाले दो अनजाने याद आये
जब जब हमने वोट दिए तब, आखिर क्यों ये बात हुई
ख़ुद जा-जाकर शम्मा पर जलते परवाने याद आये
बरसों बाद दिखे जो छत पर, बैठे तोता-मैना तो
“तुम याद आये और तुम्हारे साथ जमाने याद आये”
घर की मुर्गी दाल बराबर, कहने को बस जुमला है
बीवी ने जब आँख दिखाई, लाख बहाने याद आये
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Tasdiq Ahmed Khan
पूरे उल्फ़त के न हुए जो वह अफ़साने याद आऐ ।
उन से मुद्दत बाद मिले तो ज़ख़्म पुराने याद आऐ ।
शब ग़म की होते ही साग़र और पैमाने याद आए ।
जिन आँखों से पी थी हम ने वह मयख़ाने याद आए ।
करते थे हम शब भर बातें प्यार मुहब्बत की जिस जा
होते ही ना गाह मिलन वह सारे ठिकाने याद आऐ ।
हम ने मुद्दत बाद किसी महफ़िल में जब उनको देखा
याद आए कुछ तीर अदा कुछ उनके निशाने याद आऐ ।
अपनों से जब खाए धोके उसने राहे मुहब्बत में
तब हम जैसे रब की क़सम उसको दीवाने याद आऐ ।
दो चिड़ियों को शाख़ के ऊपर हम ने जब मिलते देखा
तुम याद आए और तुम्हारे साथ ज़माने याद आऐ ।
अपनों को पाने की खातिर दूर रहे थे हम जिन से
मिलते ही धोके उल्फत में वह बेगाने याद आऐ ।
उनके कूचे में दो बारह जाने की जब हिम्मत की
तब मुझको जो उसने मारे थे वह ताने याद आऐ ।
जिन जिन को मज्ज़ूब समझ कर हम ने छुड़ाया था दामन
मंज़िल से पहले भटके तो वह मस्ताने याद आऐ ।
जब आया वक़्ते ख़ामोशी शमा का यारो महफ़िल में
उस पर जान लुटाने वाले तब परवाने याद आऐ ।
जब हम को तस्दीक़ मिली तन्हाई उनकी महफ़िल में
घर जाने के उनको भी यकलख़्त बहाने याद आऐ ।
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अजीत शर्मा 'आकाश'
फिर वो गुलशन, फिर वो बहारें, फिर वो तराने याद आये ।
आज न जाने क्यों फिर से मौसम वो सुहाने याद आये ।
भूले-बिसरे जाने कितने ही अफ़साने याद आये ।
बैठे-बैठे ख़ुशियों के अनमोल ख़ज़ाने याद आये ।
मस्त बहारों ने आकर जब कलियों का घूँघट खोला
शरमाते, सकुचाते, सिमटे दो दीवाने याद आये ।
अब मैंने जाना मैं भी इक दिन दौलत का मालिक था
दिल मशकूर है जिनका वो रंगीन ज़माने याद आये ।
चैन मिला था पल दो पल को, दिल से ये देखा न गया
जिनको भूले बैठा था, वो ज़ख़्म पुराने याद आये ।
बिन कुछ सोचे, बिन कुछ समझे, चलते जाते थे हम तुम
आज वो अन्धे मोड़, वही रस्ते अनजाने याद आये ।
मर-मिटने, जल जाने को इक होड़ सी रहती थी शब भर
जाने क्यों वो महफ़िल, वो पागल परवाने याद आये ।
इक मुद्दत के बाद उन्होंने मुझ पर ये एहसान किया
चैन से मैं बैठा था, मेरे दिल को दुखाने याद आये ।
घिर आयीं घनघोर घटाएँ, सावन झूम के बरसा तो
[[तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये]]
अनबुझ प्यास ने दस्तक दी जब मेरे अधरों पर ‘आकाश’
तेरी नज़रों के छल-छल करते पैमाने याद आये ।
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आशीष यादव
मां की थपकी लोरी बापू के नजराने याद आये|
जब मै उनसे दूर हुआ अनमोल खजाने याद आये||
तुमको देखा, सुर्ख लबों को, इन आंखों को देखा तो|
साकी याद आया, सारे प्याले मयखाने याद आये||
बाहों में बाहें डाले जब उन जोड़ो को देखा तो|
तुम याद आये और तुम्हारे साथ जमाने याद आये||
हँसना इठलाना रुक जाना मुस्काना फिर चल देना|
इसको देखा तो उसके अन्दाज पुराने याद आये||
बातों पर लड़ना मिट जाना बात जबाँ की रख लेना|
उस बूढे बरगद को देखा लोग पुराने याद आये||
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Mahendra Kumar
नीली नीली ऊन में लिपटे दो दस्ताने याद आये
और उन्हीं के साथ कहीं से दर्द पुराने याद आये
आँखों से बहते मयख़ाने और लबों की शोख़ हँसी
तन्हाई की सर्द हवा में गर्म ख़ज़ाने याद आये
दिन तो अपना जैसे तैसे आते जाते बीत गया
शाम हुई है मत पूछो अब कौन ठिकाने याद आये
बात चली जब सूरज को मुट्ठी में भर कर लाने की
वो सदियाँ हों या ये सदियाँ बस दीवाने याद आये
बिन मय के ही सारे मयकश पैमाने में डूब गए
नागिन सी ज़ुल्फ़ों पर जब इतराते शाने याद आये
चलते चलते राहों में फिर आज वफ़ा की बात छिड़ी
"तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये"
पुर्ज़े पुर्ज़े दिल पर मेरे आड़ी तिरछी रेखाएँ
और उन्हीं में दूर तलक़ फैले वीराने याद आये
साथ नदी के देखा फिर से आज किनारों को हँसते
बरसों पहले टूटी क़श्ती के अफ़साने याद आये
यार मुहब्बत नाम नहीं ग़र इसका तो फिर किसका है
लम्हे भर को साथ रहे हम और ज़माने याद आये
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कवि - राज बुन्दॆली
गुल्ली डण्डा और कबड्डी खेल पुराने याद आये ।।
लुक्का छुप्पी चोर सिपाही मुंशी थाने याद आये ।।(1)
बेर चना गुड़ बहुरी होरा सरसों का साग सलोना,
तुलशी चौरा पंचामृत के ताल मखाने याद आये ।।(2)
जून महीने का आलम तुम मत पूछो मेरे भाई,
गुड्डे गुड़ियों की शादी में बैण्ड बजाने याद आये ।।(3)
टूटी खटिया हिलती छप्पर भूखे चूल्हे बर्तन भी,
गैया बछिया भैंस पड़ेरू बैल चराने याद आये ।।(4)
आज तुम्हारे साथ बिताया लम्हा लम्हा याद आया,
"तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये" ।।(5)
किस्मत नें करवट बदली कागज़ कलम थमा दी,
मीर तक़ी औ मिर्ज़ा ग़ालिब जाने माने याद आये ।।(6)
लैला-मजनूँ सीरी-फ़रहा और न जाने कितने ही,
डूब गए इस दरिया में जो सब दीवाने याद आये ।।(7)
आज़ादी की ख़ातिर जिननें सूली का गलहार चुना,
लाल किले को जब जब देखा वह परवाने याद आये ।।(8)
रंग हवेली का निखरा है मज़दूरों की आहें सुन,
चाबुक चिमनी गैस धुआँ काले तहख़ाने याद आये ।।(9)
जीवन भर पापड़ बेले हैं तब जाकर इतना पाया,
तुमनें हम पर जितनें साधे तीर निशाने याद आये ।।(10)
अपनी बढ़िया बीत रही है जबसे कागज़ कलम मिली,
जिन महलों की नींव हिली वो 'राज़' घराने याद आये ।।(11)
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जिन गजलों में मतला या गिरह का शेर नहीं है उन्हें संकलन में जगह नहीं दी गई है इसके अतिरिक्त यदि किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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जनाब राना प्रताप सिंह साहिब, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 78 के संकलन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,'ओबीओ लाइव तरही मुशायरा'अंक-78 के संकलन के लिये बधाई स्वीकार करें ।
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