For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लखनऊ चैप्टर का आयोजन दिनांक २२.१२.२०१३: एक रिपोर्ट

मासिक काव्य गोष्ठी के क्रम में जहाँ एक ओर हमारा प्रयास रहा है कि लखनऊ और देश के प्रमुख हस्ताक्षरों का सानिध्य और मार्गदर्शन हमें प्राप्त हो सके वहीँ नेट की दुनिया से दूर और अनजाने रचनाकारों को ओबीओ लखनऊ चैप्टर से जोड़ने की कोशिश भी होती रही है. नए रचनाकारों को मंच प्रदान करना हमारी प्रमुखता रही. इस क्रम को इस बार भी जारी रखने का प्रयास किया गया.

इस माह के आयोजन से एक नया क्रम शुरू किया गया - चर्चा का. इस बार शुरुआत की गयी श्रीमती कुंती मुखर्जी की पुस्तक ‘बंजारन’ की समीक्षा चर्चा से.

कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ. मधुकर अस्थाना, डॉ. अनिल कुमार मिश्र, अशोक पाण्डेय ‘अशोक’ तथा डॉ कैलाश निगम द्वारा माँ शारदे की प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्ज्वलन द्वारा किया गया.

प्रथम सत्र - पुस्तक समीक्षा की शुरुआत डॉ शरदिंदु मुखर्जी द्वारा कवियत्री कुंती मुखर्जी के जीवन परिचय से हुई. इसके उपरांत श्रीमती कुंती मुखर्जी द्वारा पुस्तक के कुछ अंशों का पाठ किया गया. पुस्तक पर एक पाठक के रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राहुल देव ने कहा की ‘बंजारन’ नारी विमर्श की एक प्रमुख पुस्तक है. मधुकर अस्थाना ने पुस्तक पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि पुस्तक में कुंती मुखर्जी ने नारी विमर्श के जिन बिन्दुओं को छुआ है, उन तक अक्सर रचनाकारों की पहुँच नहीं हो पाती है.

डॉ. अनिल कुमार मिश्र ने पुस्तक पर अपनी तात्कालिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे अन्दर भाव उपस्थित होते हैं जबकि शब्द शरीर के बाह्य रूप में होते हैं, कविता के लिए दोनों का एकीकरण आवश्यक है. भाव की गहनता तथा सोच व एकाग्रता की उच्चतम अवस्था में पहुँचकर ही अभिव्यक्ति सहज और भावपूर्ण हो पाती है.

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में काव्य पाठ हुआ. काव्य पाठ की शरुआत प्रतापगढ़ से पधारे नव हस्ताक्षर सूरज सिंह के काव्य पाठ से हुई-

‘कुछ दिन बाद ऐसा होगा

हम बहुत दूर निकल जायेंगे  

तुम पीछे-पीछे आओगी

हम रास्ते में खो जायेंगे’

 

लखनऊ की उभरती हुई हस्ताक्षर नीतू सिंह ने अपने सुमधुर स्वर में अपनी ग़ज़ल प्रस्तुत की-

‘क़ुदरत के इस निज़ाम से खिलवाड़ मत करो

कहते हैं हादसात कि चलिए संभल–संभल’

 

क्षितिज श्रीवास्तव ‘निशान’ का कुछ यूँ कहना था-

‘सुर्ख़ियों में तो है, पर शहर में नहीं

वो हैं मुखिया जो, रहते हैं घर में नहीं’

 

लखनऊ के हास्य-व्यंग्य के प्रमुख हस्ताक्षर गोबर गणेश ने सामाजिक विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए कहा-

‘बेटियों को संसार में मत आने दीजिए  

लोग थूकेंगे तो थूकने दीजिये

क्योंकि थूकना तो हमारी संस्कृति है’

 

कानपुर से पधारी ओबीओ सदस्या अन्नपूर्णा बाजपेयी की प्रस्तुति कुछ इस प्रकार थी-

‘कुछ ऐसे पुकारा तुमने

रुक न सके कदम अपने’

 

कैसरगंज, बहराइच के राम नरेश मौर्य ने आज की व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा कि-

‘बापू तुम्हार भारत बहुतै महान होइगा

लागत है देश आपनु बनिया दुकान होइगा’

 

रमा शंकर सिंह ‘राही’ की रचना के बोल देखिये-

‘फूलों के शहर में है रहजन का बसेरा

तो कैसे कोई भी पाए आरामे ज़िन्दगी’

 

हास्य-व्यंग्य के कवि अनिल कुमार ‘अनाड़ी’ ने राजनैतिक व्यवस्था पर प्रहार करते हुए कहा-

‘तुम मुझे सत्ता दो, हम तुम्हें भत्ता देंगे

आगामी लोकसभा चुनाव में केंद्र तक पहुँचाया

तो हम तुम्हें कपड़ा लत्ता देंगे’

 

केवल प्रसाद ‘सत्यम’ द्वारा प्रस्तुत छंद का आनंद लीजिये-

‘वाणी वंदना मात की पद पंकज में शीश

पुष्प हार अर्पण करूँ पाऊँ वर आशीष’ 

 

शेखर की प्रस्तुति ने श्रोताओं का मन मोह लिया-

‘मातु है, जाया है, भगिनी भी अपितु यह

प्रेयसी के रूप बस ध्येवी नहीं है

हैं बहुत से रूप इस मानव कला के

कामिनी बस देह या देवी नहीं है’

 

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा की रचनाओं में उच्च स्तर की संवेदना देखने को मिलती है-

‘बाला दौड़े रेत पर नन्हें पाँव उठाय

कहीं जले नहीं पाँव, ये गिरे न ठोकर खाय

कोमल भावों से भरा बाला का संसार

आगे उसका भाग्य है पुष्प मिले या खार’ 

 

बहराइच से पधारे उमा प्रसाद लोधी की प्रस्तुति ने श्रोताओं का मन मोह लिया-

‘आसान नहीं है इस अँधेरे के राज में

दिल का दिया बनाकर इंसान बनाना’

 

मनमोहन बाराकोटी का साहित्य के प्रति समर्पण सराहनीय है-

‘देश के शत्रुओं का दमन कीजिये

बिगड़ा माहौल है अब अमन कीजिये’

 

लखनऊ के धीरज मिश्र की कलम श्रृंगार पर खूब तेजी से दौड़ती है-

‘मन का मयूर फिर नाच उठा

देख तेरा मुखड़ा प्रियतम’ 

 

राहुल देव अतुकांत में अपने विशिष्ट कहन के कारण छाप छोड़ने में सफल होते हैं-

‘लोकतंत्र की चाट बिक गयी

सारे दोने साफ़ पड़े हैं’

 

मैंने भी अपने एक नवगीत प्रस्तुत किया-

‘ढूँढती है एक चिड़िया

इस शहर में नीड़ अपना’

 

डॉ. शरदिंदु मुखर्जी की कलम की धार बहुत तेज है-

‘मैं जानता हूँ

तुम्हें उस दीवार से डर लगने लगा है

दीवार

जो तुम्हारे और तुम्हारे ओंओं के बीच

समय के साथ खड़ी कर दी गयी है’

 

डॉ. आशुतोष बाजपेयी की प्रस्तुतियाँ श्रोताओं को बांधे रखने में सफल होती हैं-

‘वह पूजित हैं भुवनों भुवनों

बलवान सुरीति खड़ी कर दी

प्रभु भी तब ही अति व्यग्र दिखे

हमने जब दृष्टि कड़ी कर दी’

 

संध्या सिंह की प्रस्तुति का एक अंश देखिये-

‘जितने मन में हैं चौराहे

उतने दिशा भरम’

 

डॉ रमेश चन्द्र वर्मा ‘रमेश’ ने राजनैतिक स्थितियों पर टिप्पणी करते हुए कहा-

‘रोग से बच निकलना है तो पानी छान कर पीना

नेता परख कर चुनना अगर दुनिया में है जीना’

 

डॉ. अशोक शर्मा की रचना की एक बानगी देखिये-

‘कभी-कभी मुझको लगता है

ईश्वर भी कविता लिखता है’

 

डॉ. कैलाश निगम अपने गीतों के लिए जाने जाते हैं-

‘कुछ ऐसा हो कि रहे नाक ऊँची गाँव की

खुशियों में दिन बिताए नयी पीढ़ी गाँव की

ज्वाला दहेज की न ऐसे पाँव पसारे

कि ससुराल में जला दी जाए बेटी गाँव की

  अपनत्व भरा मुझको वही ठाँव दीजिये’ 

 

महमूदाबाद, सीतापुर से पधारे श्रीप्रकाश मुक्तक और कविता के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं-

‘सुप्त मेरी वेदना की गीतिका को मत जगाओ

नींद भर अवचेतना संग आज उसको खेलने दो

खोज लेने दो अलौकिक रूप का सागर कहीं पर

स्वप्न में सुख का नया संसार उसको खोजने दो’

 

अशोक कुमार पाण्डेय ‘अशोक’ छंदबद्ध रचनाओं के एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं-

‘एक दिन बोले देवराज इंद्र मारुत से

मेरी अभिलाषा पूर्ण कर दिखला दो तुम

तिलक करूँगा निज भाल पे जरा सी मित्र

मेरे लिए भारत धरा की धूल ला दो तुम’

 

अनिल ‘ज्योति’ अपने कहन के वैशिष्ट्य के लिए जाने जाते हैं-

‘मैं देख रहा हूँ वर्तमान यह कालखंड

मेरी आँखों के आगे शोर मचाता है

पैरों के नीचे सिसक रहा अपना अतीत

सिर पर भविष्य दावानल सी सुलगाता है’

 

मधुकर अस्थाना गीत/नवगीत के क्षेत्र में एक स्थापित नाम हैं-

‘घरवाली जब नहीं रही तो

घर भी लगने लगा पराया

कोई मौसम रस न आया’

 

रचनाकर्म पर डॉ. अनिल मिश्र के उद्बोधन से हम सबको बहुत कुछ सीखने को मिला-

‘चाहता हूँ मैं सहज अनुभूति को कुछ शब्द देना

मैं और तू के बंधनों से जिन पलों में पार होता

भाव में जब जीव मेरा ब्रह्म का आकार लेता’

सबसे अंत में राहुल देव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस बार का आयोजन समाप्त हुआ. 

   - बृजेश नीरज         

Views: 1072

Reply to This

Replies to This Discussion

महान हस्तियों के बीच  मै भी आ जाता हूँ 

कभी उनका कभी अपना गीत गा जाता हूँ 

सादर बधाई प्रस्तुति हेतु 

आदरणीय, आप आ जाते हैं, यह हम लोगों का अहोभाग्य है! आपका हार्दिक आभार!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service