For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन की संवेदना ::: ©



बचपन की संवेदना ::: ©

मेरे मित्र अशोक जी ने अपनी वॉल पर संवेदना को साझा किया.......
जिसके अनुसार उन्होंने लिखा "**** आज सवेरे घर से बाहर निकला तो एक जगह देखा कि कुतिया के छोटे-छोटे पिल्लै,कडकडाती ठण्ड से बचने के लिए एक दुसरे में गुत्थमगुत्था हो रहे हैं....मुझे बचपन के दिन याद आगये....कैसे कुतिया की 'डिलेवरी' पर मोहल्ले वाले,बच्चों की अगुवाई में उसे गुड का हलवा बना कर खिलाते थे....उसके बच्चों के लिए टाट का घर बनाते थे.... उसके बच्चों और उसके लिए समय-समय पर खाने का प्रबंध करते थे....!!!! मुझे मालुम है मेरे कुछ'नयी पीढ़ी' के शहरी नौज़वान दोस्तों को मेरी ये बातें अटपटी,नितांत 'गवारुं' और आश्चर्यजनक लगेगी लेकिन क्या करूँ....उस समय का सत्य तो यही था....!! आज देखता हूँ ...इंसान को इंसानों के लिए ही फुर्सत कहाँ है ..!!! भीड़ में इंसान,गिरे हुए इंसान को कुचलते हुए निकल जाता है....,फुटपाथ पे पड़े किसी असहाय इंसान को नज़रंदाज़ कर जाता है.... किसी भूखे की लाचारी समझे बिना उसे 'उपदेश' झाड जाता है......!! कुत्तों की तो कौन कहे....!!! इंसान,इंसान के बारे में ही लगभग संवेदना -शुन्य सा जान पड़ता है....!! सोचता हूँ उस समय 'सहज मानवता' के साथ जी रहे इंसान ने आखिर क्या खोया..... ????? और आज आपा-धापी में लगे,इंसानियत को दोयम दर्जे का मानने वाले इंसान(???....) ने आखिर क्या पा लिया है...... ????***

उक्त वर्णित घटनाक्रम को एक सजग संवेदनशील इंसान होने के नाते लिख कर उन्होंने अपना दुःख साझा तो कर लिया ......और........ टिप्पणियों के रूप में उपस्थित देवियों-सज्ज़नों ने उस पर बड़े-बड़े व्याख्यान भी लिख मारे......... परन्तु क्या कोई मुझे बता सकेगा जब अशोक जी उस दृश्य को निहारते हुए द्रवित हो रहे थे और बचपन में अन्य लोगो द्वरा स्थापित इंसानियत को याद कर रहे थे तब अशोक जी के मन में यह बात नहीं क्यूँ नहीं आयी कि इन पिल्लों को आज भी टाट के घर की आवश्यकता है.....? क्यूँ नहीं सोचा उस कुतिया को घी-गुड-सौंठ-गौंड का हलवा अब भी चाहिए हो सकता है...........? माफ़ करना मैंने इसलिए यह सब लिखा क्यूंकि उन्होंने यह सब किया जाना वर्णित नहीं किया है........... हमारे अन्य प्रबुद्ध वर्ग के दोस्तों ने भी अपने-अपने हिस्से आयी एक-एक भारी-भरकम संवेदनशील टिपण्णी देकर अपने-अपने दायित्वों की इति समझ ली........? क्या हमारी संवेदना लिखने भर तक ही रह गयी है..........? या हम उन बड़ी अट्टालिकाओं वाले रईसों के ही प्रकार के हुए जा रहे हैं जिसमें रक्त का एक कतरा देख कर या किसी भूखे को भूखा देख आँसू टपका देना फैशन बन गया है.....?
:( :( :( :( :(
आशा है अशोक जी मेरे इस आर्टिकल को सकारात्मक रूप में लेंगे...... :)

_____जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (29-Nov-2010)

Facebook

Views: 1498

Reply to This

Replies to This Discussion

.

मित्रों आप लोगों से मरती संवेदना पर विचार आमंत्रित हैं.....
सबसे बड़ा सवाल यही है कि मात्र लिख देना काफी होता है......?

.
जोगेंदर सिंह ने अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तन की तरफ संकेत किया है. आज के दौर में संवेदना खतम हो चली है.
सच है आधुनिकता के तकाज़े के नाम पर , व्यस्तता के बीच हम बहुत कुछ खो रहे हैं शायद | किससे सीखें ? कहने को तो हम हैं मानव sarva-shreshtha !
आज के दोर में संवेदना कम होती जा रही है ओर समझ बढ़ती जा रही है....चलो कुछ कम हो रहा है तो कुछ बढ़ भी रहा है...अब ..अशोक जी ने व्याख्यान लिख दिए पर उन जीवों की कोई मदद नही की तभी तो आपके इस प्रश्न ने जन्म लिया.....चलो कुछ तो नया जन्म लिया...

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
8 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
23 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"1212    1122    1212    22 /  112 कि मर गए कहीं अहसास…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय अजय भाई , आपका बहुत शुक्रिया "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीया रिचा जी आपका बहुत आभार "
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service