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पियवा गइलें परदेश

राह ताकत बाडी सूनी अँखियाँ,
बन गइले विधवा के भेष,
पियवा गइलें परदेश।

कह के त गइलें सैया
कुछ दिन के काम बा,
थोडे दिन के बिरहा बाटे
जिनगी भ आराम बा,
पहिले त आवत रहे सैंया जी के चिट्ठीया
अब ना मीलेला संदेश।
पियवा गइलें परदेश..

केह से बतांइ आपन
सुख-दु:ख के बतीया,
केह से जतांइ आपन
उमडत पीरीतीया,
युग युग के साथी काहे भइले बेदरदी,
नफरत बनल सनेह,
पियवा गइलें परदेश..


मौलिक और अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति , बधाई आप को | सादर 

स्त्री की विरह वेदना को आपने बखुबी दर्शाया है
बेहतरीन रचना
हार्दिक बधाई

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गिरिराज भंडारी commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
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सदस्य कार्यकारिणी
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"आ. नीलेश भाई , बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ,सभी शेर एक से बढ कर एक हैं , हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
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