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लघुकथाओं में विन्यास और कथ्य-विस्तार के क्रम नाटकीयता तनिक गलत नहीं है आदरणीय ओमप्रकाशजी. बल्कि नाटकीयता यानि चकित करने की कला का सदा से स्वागत रहा है. मेरा कहना मात्र इतना ही है कि इस प्रस्तुति में यह आरोपित अर्थात जबरदस्ती ’घुसायी’ हुई लगी है.
अन्यथा आपकी लघुकथा ने अपनी सीमाओं के बावज़ूद मुझे प्रभावित किया है.
सादर
सही बात, आदरणीय ओमप्रकाशजी.
आजकल की राजनीति कौन सा न्याय सिद्धांत | अंदर झगड़ते और बाहर आकर हाथ मिलाते देखे जाते है | इसे बताने में सफल रही है लघु कथा
व्यंग्यात्मक शैली में लघुकथा लिखने का बढ़िया प्रयास हुआ है, बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी.
लघुकथा मुजाहिद
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"नावेद ! आपके खिलाफ काफी शिकायतें आ रही हैं । हाईकमान आपसे बेहद नाराज है I इसलिए आपको संगठन के लिये वफादारी साबित करने का आखिरी मौका दिया जा रहा है। यह लीजिये लिफाफा और अपना फ़र्ज़ पूरा कीजिये।"
"जी जनाब I" कहते हुए उसने अपने हाथ में लिफाफा पकड़ा ।
लिफ़ाफ़े को जैसे ही उसने उसने खोला तो उसके पैरों तले जमीन ही सरक चुकी थी I
"याद रहे, यह आखिरी मौका है आपके लिये I" बड़े कमांडर ने धमकी भरे स्वर में कहा I
नावेद अपनी जैकेट पहन और कमर में पिस्तौल खोंसते हुए तेजी से कमरे के बाहर निकल कर घर की तरफ चल पड़ा।
घर खाली था, उसने कागज़ पर कुछ लिखा और पास पड़ी किताब के अंदर दबा कर कब्रिस्तान की निकल ही रहा था कि सामने उस एरिया के कमांडर को देख कर एकदम ठिठका !
" यह क्या किया तुमने नावेद ? अपनी ही जमात के खिलाफ मुखबिरी कर दी ?" एरिया कमांडर से बहुत सख्त स्वर में पूछा I
"गद्दारी नहीं भाईजान, खुद को और तुम सबको गुनाहों के मकड़जाल से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूँ I"
"चुप रहो ! अपने मज़हब और जमात से गद्दारी करना कुफ़्र है !"
"कुफ्र ? और जो मासूम बच्चों से भरे स्कूल को बम से उड़ाने का हुक्म दिया गया है, वो क्या है ?"
"तो क्या तुम बम ब्लास्ट नहीं करोगे ?"
"करूँगा, ज़रूर करूँगा I" उसने एरिया कमांडर को खींचकर बाँहों में भर लिया I नावेद के चेहरे पर अजीब सी चमक आ गई थी I
"अल्लाह हू अकबर !" का ज़ोरदार नारा लगाये हुए नावेद ने अपनी जैकेट के अंदर एक बटन दबा दिया ।
(मौलिक और अप्रकाशित)
आदरणीय पंकज जी बढ़िया लघुकथा हुई है. लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. रचना पर पुनः उपस्थित होता हूँ. सादर
धन्यवाद आ. मिथिलेश जी
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