रगण यानि राजभा या ऽ।ऽ या गुरु लघु गुरु होता है. रगण की आठ आवृति गंगोदक सवैया का कारण होती है.
यानि, रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण .. अर्थात 24 वर्णों का वृत.
इसतरह, गंगोदक सवैया का सूत्र = रगण X 8
उदाहरणार्थ एक छंद प्रस्तुत है -
रे बसौ धाइ कै अंत कासी हि कै धाम निश्चिंत गंगोद के पान कै ।
कोटि बाधे कटैं पाप सारे हटैं शंभु शंभू रटैं नाथ जो मान कै ॥
जन्म बीता सबै चेत मीता अबै कीजिये का तबै काल ले आन कै ।
मुण्डमाला गरै सीस गंगा धरै आठ यामै हरै ध्याय ले गान कै ॥
प्रथम पद विन्यास
रे बसौ (गुरु लघु गुरु) / धाइ कै (गुरु लघु गुरु) / अंत का (गुरु लघु गुरु) / सी हि कै (गुरु लघु गुरु) /
<----------1---------> <------------2-----------> <---------3--------------> <--------------4------------>
धाम निश् (गुरु लघु गुरु) / चिंत गं (गुरु लघु गुरु) / गोद के (गुरु लघु गुरु) / पान कै (गुरु लघु गुरु)
<-----------5-------------> <------------6-----------> <----------7------------> <----------8--------------->
गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है.
ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.
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आदरणीय सौरभ जी दिल से शुक्रिया इस गंगोदक सवैया छंद का परिचय कराने हेतु पढ़कर बहुत अच्छा लगा
सादर, आदरणीया राजेश कुमारीजी.
दुर्लभ छंद विधा को सहजता से प्रस्तुत करने के लिये हृदय से आभार
हर्दिक धन्यवाद आदरणीय रमेश भाई,
आप इस लेखमाला की पहली इकाई से पढ़ना प्रारम्भ करें. उसका शीर्षक है सवैया
फिर आप आगे बढ़ते जायें.
शुभ-शुभ
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