गुलगुल खरगोश, चुटपुटवन का जाना-माना व्यापारी था। वन की रौनक फुटफुटबाजार में उसकी मेवों की बड़ी सी दुकान थी। उसकी दुकान के मेवे अपनी गुणवत्ता और ताजगी के लिए पूरे चुटपुटवन में मशहूर थे। उसकी दुकान से काजू, किशमिश, अखरोट आदि जो एकबार खरीदकर खा लेता समझो वो बस उसी का होकर रह जाता। गुलगुल बेहद नेकदिल भी था। वो कभी किसी से झगड़ा नहीं करता। मेवे उचित दाम पर बेचता और कभी-कभी छोटे बच्चों को तो मुफ्त में भी दे दिया करता। उसके इन्हीं गुणों के कारण चुटपुटवन के सभी जानवर उसकी बहुत इज्जत करते थे। आसपास के वनों में भी फुटफुटबाजार कहो तो गुलगुल के कारण ही जाना जाता था। जानवर दूर-दूर से मेवे खरीदने गुलगुल के यहाँ आते थे।
एक दिन की बात है कि गुलगुल हमेशा की तरह अपनी दुकान में बैठा कामकाज देख रहा था। उस दिन बाजार में कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी। होती भी क्यों न, कुछ ही दिनों के बाद चुटपुटवन के राजा शेर मक्खनसिंह के बेटे की शादी जो होनेवाली थी। सभी जानवर शादी में भेंट करने के लिए अपने-अपने हिसाब से उपहार खरीद रहे थे। कोई सजावट की चीजें खरीद रहा था तो कोई कपड़े। कोई फूलों के गुलदस्ते ले रहा था तो कोई खानेपीने की चीजें। गुलगुल की दुकान पर भी बड़ी भीड़ थी। वो जल्दी-जल्दी सभी ग्राहकों को निपटा रहा था। तभी दो लोमड़ वहाँ आये। उन्होंने पहले तो भीड़ छँटने का थोड़ा इंतजार किया फिर भीड़ न छँटती देख गुलगुल से बोले - "अरे सेठजी, जरा इधर सुनिये....."। गुलगुल बोला - " अरे भैया, देखते नहीं, कितनी भीड़ है। बोलो क्या चाहिए?" लेकिन लोमड़ न माने। उन्होंने फिर कहा - "ही.....ही......ही.....सेठजी, काम तो आप ही के मतलब का है। हम सिर्फ पाँच मिनट का समय लेंगे"। गुलगुल बाहर आया - "बोलो, क्या काम है?" लोमड़ बोले - "सेठजी, हमलोग अरब से खास मुनक्के और खजूर लाए हैं। बिल्कुल ताजा और बढ़िया माल है। वैसे तो पूरे माल की कीमत लाखों में है पर आपको सिर्फ पचास हजार में दे देंगे"। गुलगुल को बड़ी हैरानी हुई। उसने पूछा कि क्यों भई, मेरे लिए ऐसी मेहरबानी क्यों? मैं तो तुमलोगों को जानता भी नहीं"। लोमड़ों ने पहले तो कुटिलता से एक-दूसरे की ओर देखा और फिर बोले - "ही.....ही.....ही....अरे सेठ जी , आप तो इस वन के सबसे बड़े व्यापारी है। आपके साथ बिजनेस करना हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। इसमें आपका और हमारा दोनों का फायदा है। आप हमें एक मौका तो दिजिए, आप रातोंरात अरबपति बन जाएंगे"।
गुलगुल लालची जरा भी नहीं था। उसका माथा ठनका। उसने ताड़ लिया कि जो भी हो ये लोमड़ ईमानदार तो नहीं हो सकते। पहले तो उसके मन में आया कि डाँटकर इन लोमड़ों को अपनी दुकान से भगा दे लेकिन फिर उसने सोचा कि ऐसा करने से इनके इरादों का पता नही चल पाएगा और ये कहीं और जाकर अपना खेल शुरु कर देंगे। यही सोचकर वो चुप रहा। उसने लोमड़ों से कहा - "अरे भाई, जब ऐसा है तो मुझे कोई ऐतराज नहीं। परंतु तुमलोग पहले अपना माल तो दिखाओ। बिना देखे-परखे मैं कुछ नहीं खरीदता"। लोमड़ झट से राजी हो गये। वो गुलगुल को अपने साथ बाजार के कोने में ले गये जहाँ उनकी जीप खड़ी थी। जीप के पिछले हिस्से में कई बोरियाँ पड़ी थीं। लोमड़ों ने उनमें से एक बोरी को बाहर निकाला और उसे खोलते हुए बोले - ये लिजिये सेठजी, आप खुद ही देखकर तसल्ली कर लिजिये"। गुलगुल ने देखा की बोरी में खजूर भरा था। उसने कुछ खजूरों को उठाया और देखा। खजूर बिल्कुल ही साधारण थे। उनमें खासियतवाली कोई बात न थी। गुलगुल ने गुस्से से लोमड़ों की ओर देखा और कहा - "तुमलोगों ने मुझे बेवकूफ समझ रखा है? मैं नहीं खरीदता ऐसा माल। तुमने तो कहा था कि ये अरब के खास खजूर है। क्या खासियत है इनमें?" लोमड़ों ने आसपास देखा और फिर धीरे से बोले - "सेठजी, खासियत इन खजूर-मुनक्कों में नहीं बल्कि इस पाउडर में है"। कहते हुए उन्होंने बोरी के अंदर छुपा एक सफेद पाउडर का पैकेट निकाला। फिर बोले - "वो अरबवाली बात तो हमने इसलिए कही थी क्योंकि उस समय आसपास बहुत से जानवर थे"। गुलगुल ने पाउडर का पैकेट अपने हाथों में लिया और उलट-पुलट कर देखा। उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने पूछा - "क्या है ये?"
लोमड़ों ने फिर आसपास देखा और बोले - "सेठजी, ये बड़ा खास पाउडर है। शहरों में मनुष्य इसका उपयोग नशे के लिए करते हैं। इस पाउडर का गुण ये है कि इसमें तेज नशा होता है और महल-परियाँ-बगीचे न जाने क्या-क्या दिखने लगता है। लेकिन जो भी इसका सेवन करता है वो इसका आदि हो जाता है। फिर उसे इसके बिना बहुत सारी परेशानियाँ शुरु हो जाती हैं। और तब वो इसे लेनेपर मजबूर हो जाता है। इतना मजबूर कि इसके लिए वो अपना घरबार तक बेच सकता है। इसके सेवन से शरीर अंदर से खोखला होकर कमजोर होने लगता है। यहाँतक कि इसके प्रभाव से मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए इसकी खुलेआम बिक्री पर रोक है। खैर इनसब बातों से हमें क्या लेना। हमारा उद्देश्य तो बस पैसे कमाना होना चाहिए। आपको बस इतना करना है कि यह पाउडर अपनी दुकान में बिकनेवाले मेवों पर छिड़ककर बेच देना है। जब जानवर उन मेवों को खाएंगे तो मेवों के साथ-साथ ये पाउडर भी उनके अंदर चला जाएगा। एकबार खाने के बाद वो खुद ही दुबारा मजबूर होकर वैसे ही मेवे ढूँढेंगे। वो फिर आपकी दुकान पर ही आएंगे, क्योंकि वैसे पाउडरवाले मेवे उन्हें और कहीं नहीं मिलनेवाले। आप फिर वही पाउडरवाले मेवे उन्हें बेचेंगे। आपका बिजनेस दुगना हो जाएगा और किसी को शक भी नहीं होगा। और तो और आप मनमानी कीमत भी ले सकते हैं। नशे में जकड़े जानवर आपको मुँहमाँगी कीमत देंगे। आप अरबों में खेलेगे अरबों में और आपको ये पाउडर बेच-बेचकर हम भी अमीर हो जाएंगे। कहिए, है न दोनो का फायदा"।
ये सब सुनने के बाद गुलगुल खरगोश का मन गुस्से से काँप उठा। उसके मन में आया कि ऐसे पापियों को यहीं मार डाले। लेकिन वो अकेला था और लोमड़ दो। इसके अलावा ऐसा करना कानून को अपने हाथ में लेना होता। और वैसे भी नशे के उन सौदागरों के पूरे गिरोह का पर्दाफाश ज्यादा जरूरी था। यहीसब सोचकर उसने कहा - "अरे मेरे प्यारे लोमड़ भाईयों, सचमुच ये तो हमदोनों के लिए बड़े फायदे का सौदा होगा। मैं तो तैयार हूँ। लेकिन अभी दुकान पर बड़ी भीड़ है। अगर अभी कुछ करुँगा तो किसी को शक हो जाएगा। तुमलोग ऐसा करो आज रात को मेरी दुकान पर आ जाओ। मै ये पाउडर खरीद भी लूँगा और तुमलोगों की सहायता से अपनी दुकान में रखे सारे मेवों पर छिड़क भी दूँगा। इसके बाद कल से तो हमारी चाँदी ही चाँदी है। कहो क्या ख्याल है?"
लोमड़ झट से तैयार हो गये और रात नौ बजे आने की बात कहकर चले गये। उनके जाते ही गुलगुल खरगोश सीधा राजमहल गया और महाराज मक्खनसिंह को सारी बात बताई। महाराज ने कोतवाल बग्गा बाघ को सिपाहियों को साथ लेकर गुलगुल खरगोश के साथ जाने और उन नशे के सौदागरों को गिरफ्तार कर घसीटते हुए दरबार में पेश करने की आज्ञा दी। बग्गा ने महाराज की आज्ञानुसार गुलगुल की दुकान को अपने सिपाहियों के साथ घेर लिया और छुपकर बैठ गया। तय समय पर दोनों लोमड़ एक बैग में नशीले पाउडर के ढेर सारे पैकेट लिए गुलगुल की दुकान पर पहुँचे। गुलगुल ने दोनों को अंदर बुलाया और माल निकालने के लिए कहा। लोमड़ों ने जैसे ही बैग से पैकेट निकाले गुलगुल ने ताली बजा दी। ताली बजते ही कोतवाल बग्गा अपने सिपाहियों के साथ दुकान के अंदर चला आया और दोनों लोमड़ों को नशीले पाउडर के पैकेटस के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। दोनो को महाराज के सामने पेश किया गया। महाराज के द्वारा सख्ती से पूछताछ करनेपर दोनों ने अपने बाकी साथियों का भी पता बता दिया। कोतवाल बग्गा ने रातोंरात छापा मारकर उनसब को भी गिरफ्तार कर लिया। नशे के सौदागरों का पूरा गिरोह अब सलाखों के पीछे था। सुबह होते-होते गुलगुल खरगोश की बुद्धिमानी और देशभक्ति की खबर पूरे चुटपुटवन में फैल गयी। सभी गुलगुल की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। महाराज मक्खनसिंह ने गुलगुल को भरे दरबार में खूब सारे हीरे-जवाहरात देकर सम्मानित किया और चुटपुटवन का नया वाणिज्यमंत्री बना दिया। सभी ने खूब तालियाँ बजाकर फैसले का स्वागत किया।
मेरी पिछली बाल कहानीः सेनापति वीरु हाथी और डाकू नाटा गीदड़ (बाल कहानी)
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बहुत अच्छी कहानी के साथ-साथ एक स्वस्थ सन्देश भी ........
आदरणीया उपासना जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........
अरे वाह प्रिय कुमार गौरव जी, यह कहानी भी बहुत रोचक है...
गुलगुल खरगोश की ईमानदारी और समझदारी से नशे के सौदागर लोमड और उनका गिरोह पकड़ा गया,
वास्तविकता में ये लोमड कितनी व्यापकता से अपनी जड़ें फैला रहे हैं, और मासूमों को नशे के दलदल में धकेल रहे हैं, यह बहुत चिंतनीय है. और इनका पकड़ा जाना भी आसान नहीं.
एक सार्थक कथ्य को कहानी की विशव वास्तु बना कर आपने रोचकता से पेश किया इस हेतु बधाई,
पर ये भी सोच रही हूँ, की क्या जिस उम्र के बाल समूह(८-११ वर्ष)के लिए यह कहानी आपने लिखी है , उन बच्चों को कोकीन आदि जैसी चीजों के बारे में इस नन्ही उम्र में बताया जाना चाहिए.... ?
आदरणीया प्राची दीदी, कहानी को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार.......नशा कब मनुष्य को अपना गुलाम बना लेता है, मनुष्य को खुद भी पता नहीं चलता। उसे तो तब आभास होता है जब नशा उसे बर्बाद कर चुका होता है।
//जिस उम्र के बाल समूह(८-११ वर्ष)के लिए यह कहानी आपने लिखी है , उन बच्चों को कोकीन आदि जैसी चीजों के बारे में इस नन्ही उम्र में बताया जाना चाहिए.... ?//
दीदी, आपका सोचना सही है। इस बात पर कहानी लिखते समय मैने भी विचार किया था। लेकिन मैंने फिर यह सोच कर अपनी कहानी का वर्तमान रूप रहने दिया कि बच्चों के पास आजकल ऐसे कई साधन हो गये हैं जिनसे वे "काफी पहले काफी ज्यादा" सीख रहे हैं। ऐसे में अगर किसी गलत बात को सही मान के वो जानें, अच्छा होगा कि उनके सामने गलत को गलत रूप में ही पहले पेश कर दिया जाए। और वैसे भी कम उम्र के बच्चे ही इन नशे के सौदागरों के सॉफ्ट टारगेट होते हैं।
कहानी को सराहने के लिए एकबार पुनः आपका धन्यवाद......
प्राची जी , मेरे विचार से बताना चाहिए क्यूंकि बचपन में जो बात समझा दी जाती है वह जरुर बाल मन में घर कर जाती है ...उनको यह कहा जा सकता कि एकदम से किसी पर विश्वास ना करें . कोई चीज़ दें तो ना खाए क्यूंकि उनमे कोई गलत या नुकसान देह दवा मिला कर खिला दी जा सकती है ...और जिस प्रकार का आज -कल का माहोल है बच्चों को बहुत सारी बातों कि जानकारी होती है ...
आपसे सहमत हूँ आदरणीया......
उपासनाजी, आपका सुझाव ’मोरल ऑफ़ द स्टोरी’ की तरह है. बहुत-बहुत धन्यवाद.
प्रिय कुमार गौरव जी, उपासना जी,
जितना बाल मनोविज्ञान को मैंने जाना, मुझे लगता है कि इस उम्र के बच्चे, हर चीज़ को एक्सपेरिमेंट करना पसंद करते हैं...
कोकीन जैसी चीज़ का नाम उनके मन में जिज्ञासा को पैदा कर सकता है, कि ये चीज़ होती कैसी है, इसी से बस आशंकित हूँ...
बहराल कहानी बहुत अच्छी लिखी गयी है, इस हेतु पुनः बधाई
आदरणीया प्राची दीदी, आपके परामर्श को ध्यान में रखते हुए मैंने कहानी को संशोधित कर दिया है।
एकदम सही. उत्सुकतावश बच्चे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. या करते हैं. यह आशंका निमूल नहीं है.
अजीतेन्दु भाई, बहुत अच्छा लगा कि आप बाल-कथाओं पर इतनी गंभीरता से सोचते हैं और तदनुरूप प्रयास करते हैं.आपकी किस्सागोई आश्वस्त करती है. आपसे आगे बहुत कुछ सुनना है.
आपकी यह कहानी मुझे पसंद आयी है और कहना नहीं होगा कि घर के बच्चों को यह कथा जरूर सुनाऊँगा.
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.
आदरणीय गुरुदेव, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपका स्नेह पाकर मेहनत सफल हो गई। आपकी अपेक्षाएँ मेरे लिए हीरे-मोतियों के समान हैं। हार्दिक आभार।
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