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"ओ बी ओ भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता" अंक-1

भोजपुरी साहित्य प्रेमी लोगन के सादर प्रणाम,

जइसन कि रउआ लोगन के खूब मालूम बा, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार अपना सुरुआते से साहित्य-समर्थन आ साहित्य-लेखन के प्रोत्साहित कर रहल बा ।

एही कड़ी में भोजपुरी साहित्य-लेखन विशेष क के काव्य-लेखन के प्रोत्साहित करे के उद्येश्य से रउआ सभ के सोझा एगो अनूठा आ अंतरजाल प भोजपुरी-साहित्य के क्षेत्र में अपना तरहा के एकलउता लाइव कार्यक्रम ले के आ रहल बा जवना के नाम बा "ओबीओ भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता"

तीन दिन चले वाली ई ऑनलाइन प्रतियोगिता तिमाही होखी, जवना खातिर एगो विषय भा शीर्षक दिहल जाई । एही आधार प भोजपुरी भाषा में पद्य-रचना करे के होखी । एह काव्य प्रतियोगिता में रउआ सभे अंतरजाल के माध्यम से ऑनलाइन भाग ले सकत बानी अउर आपन भोजपुरी पद्य-रचना के लाइव प्रस्तुत क सकत बानी । साथहीं, प्रतिभागियन के रचना पर आपन मंतव्य दे सकत बानीं भा निकहा सार्थक टिप्पणी क सकत बानी |

जे सदस्य प्रतियोगिता से अलग रह के आपन रचना प्रस्तुत कईल चाहत बाड़े, उनुकरो स्वागत बा, आपन रचना "प्रतियोगिता से अलगा" लिख के प्रस्तुत कर सकेलें |

पहली प्रतियोगिता के विषय :  "आपन देस"

अवधि : प्रतियोगिता दिनांक 24 जनवरी बियफे (गुरूवार) लागते सुरु होखी आ 26 जनवरी दिन शनिचर के रात 12 बजे ख़तम हो जाई ।

पुरस्कार :

त्रि-सदस्यीय निर्णायक मण्डल के निर्णय के आधार प विजेता रचनाकारन के नाँव के घोसना कइल जाई ।

प्रथम - रु 1001/- अउर प्रमाण पत्र
द्वितीय - रु 551/-अउर प्रमाण पत्र
तृतीय - रु 501/-अउर प्रमाण पत्र

पुरस्कार राशि (भारत में भुगतेय चेक / ड्राफ्ट द्वारा) अउर प्रमाण पत्र, खलिहा भारत के पता प भेजल जाई ।

पुरस्कार के प्रायोजक

(1) Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company

(2) गोल्डेन बैंड इंटरटेनमेंट (G-Band)
(A leading music company)
H.O.F-315, Mahipal Pur-Ext. New Delhi.

नियम 

1- रचना भोजपुरी भाषा में होखे के चाहीं |

2- रचना के कथ्य आ लिहाज अइसन होखे जे सपरिवार पढ़ल आ सुनल जा सके ।

3- रचना "मौलिक आ अप्रकाशित" होखे के चाहीं । माने रचना केहू दोसर के ना आपन लिखल होखे अउर रचना कवनो वेब साईट चाहे ब्लॉग पर पहिलहीं से प्रकाशित नत होखे ।

4- प्रतिभागी कवि आपन रचना काव्य के कवनो विधा में अधिका से अधिका कुल तीन हाली दे सकत बाड़न । ध्यान अतने राखे के बा जे रचना के स्तर बनल रहे । माने अधिका लिखे का फेरा में रचना के गुणवत्ता ख़राब नत होखे |

5- बेकार अउर नियम विरुद्ध रचना बिना कवनो कारण बतवले मंच संचालक / ओबीओ प्रबंधन दल द्वारा हटावल जा सकेला ।

6- अबही Reply बॉक्स बंद रही जवन ठीक कार्यक्रम प्रारंभ होत यानी तारीख 24 जनौरी लागते खोल दियाई अउर 26 जनौरी खतम भइला प बंद क दीहल जाई |

7- अगर रउआ कवनो कारने आपन रचना समय से पोस्ट करे में असमर्थ बानीं त आपन रचना ई-मेल के जरिये admin@openbooksonline.com पर भेज दिहीं | राउर रचना एडमिन OBO का ओर से राउर नाँवें पोस्ट क दीहल जाई । ओइसे कोशिश ईहे करीं जे राउर रचना रउए पोस्ट करीं । ई सुविधा खलसा ओबीओ सदस्य लोगन खातिर बा ।

8- जौन रउआ अबहीं ले ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नईखी जुड़ल त www.openbooksonline.com पर जाके sign up कइ OBO के मुफ्त सदस्यता ले लिहीं आ भोजपुरी साहित्य समूह के ज्वाइन करीं |

9- अधिका जानकारी खातिर रउआ मुख्य-प्रबंधक के ई-मेल admin@openbooksonline.com पर मेल करीं । चाहे मोबाइल नंबर 09431288405 पर संपर्क क सकत बानीं |

             मंच संचालक
           सतीश मापतपुरी
(प्रबंधक भोजपुरी साहित्य समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय बाग़ी जी 

भागीरथ प्रयास लायीं बधाई स्वीकार कियल जायी 

सस्वर गायन रचना निमं लागी 

एह्रेऊ खातिर बधाई.

धन्यवाद आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह, इ टिप्पणी स्वतंत्र थ्रेड में हो गइल बा, रचना वाली थ्रेड में रहित त निमन रहित |

धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहवाँ जनमे लें किसुन अउर राम बेटवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहवाँ लोग पढ़े शिवा, परताप के गथवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहवाँ मंदिर अउर मस्जिद में झुके मथवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहवाँ लोग-लइका पढ़े सत, अहिंसा के कथवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

धनि धनि धनि ए हमार देशवा।।

 

जहवाँ बहेली जमुना, गंगा मतवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहवाँ पीयर सरसों से भरल खेतवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहवाँ माई की ममता में पले बचवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहाँ हिनु, मुसलमान होखे मितवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

धनि धनि धनि ए हमार देशवा।।

- प्रभाकर पाण्डेय

एगो अकवि के कविता। दाद चाहीं अउर जरूरी भइले पर सलाह भी चाहीं।।

आहा !!! आदरणीय प्रभाकर भईया, सबसे पाहिले त अकवि के सुकवि पढ़ल जाव, भारत भूमि के बहुते सुन्नर शब्द चित्र रउआ खीचले बानी, रचना बढ़िया लागल, खाली एगो सुझाव ..............धनि धनि धनि ए हमार देशवा.....के परयोग हरेक बंद के अंत में एक बार कईल जाव, बहुत बहुत बधाई सवीकार करि, एह रचना पर |

सादर आभार भाईजी।।

बहुत सुन्दर गीत आ. प्रभाकर पाण्डेय जी,

भारत देश का बहुत सुन्दर वर्णन, सभी खूबसूरत विशिष्टताओं को समाहित किया है आपने, इस भारत भूमि के लिए गर्व से भरे गीत के लिए हार्दिक बधाई.

सादर आभार मैडम।।

आदरणीय पांडे जी 

सादर 

रचना के माध्यम से देसवा के गुण जे गईल है, ओह्केरे लायीं तोहका बधाई.

प्रभाकर भाईजी,  राउर रचना में भारत देस से जुरल कई एक बिन्दु के चर्चा भइल बा. एगो नीमन प्रयास खातिर रउरा के हम दिल से बधाई कहि रहल बानीं.

सादर आभार।।

जहवाँ माई की ममता में पले बचवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।

जहाँ हिनु, मुसलमान होखे मितवा, धनि धनि धनि ए हमार देशवा।.................

अकवि - सुकवि के फेरा में के पड़ी जी , जब प्रभाकर जी के रसगर गीत पढ़े के मिली . देस क गंगा - जमुनी मिजाज के बड़ी नीमन बखान कइले बानी पाण्डेय साहेब ..... दाद कबूल करीं .

सादर आभार।।

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