आदरणीय साथियो !
"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-22 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है | प्रस्तुत चित्र अभी हाल में ही दिल्ली में हुए एक अत्यंत शर्मनाक कृत्य के विरूद्ध जनता द्वारा किये गए प्रदर्शन पर आधारित है | अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !
*चित्र गूगल से साभार
जहाँ दानवी भूख हो, संस्कार हों लुप्त.
वहीं भयानक 'वेदना', हुई 'दामिनी' मुक्त..
अपराधी बेख़ौफ़ हैं, सुप्त लगे सरकार.
पैशाचिक दुष्कर्म को, फाँसी ही दरकार..
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह छंदोत्सव सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगा, कृपया इस छंदोत्सव में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |
नोट :-
(1) १७ जनवरी तक तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० जनवरी तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद ही स्वीकार किये जायेगें |
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अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-२२ , दिनांक १८ जनवरी से २० जनवरी की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगा जिसके अंतर्गत इस आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी, नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक:
अम्बरीष श्रीवास्तव
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Replies are closed for this discussion.
दुनिया सीखे सीख , इस तरह सख्त सजा दें.
बिलकुल ठीक कहा आपने आदरणीय अलोक सीतापुरी जी. सख्त से सख्त सज़ा ही होनी चाहिए.
काँपें दुष्कर्मी सजा , ऐसी दियो सुझाय
अंग-भंग करके उन्हें ,सूली पर लटकाय
सूली पर लटकाय , चढ़ा दें फौरन फाँसी
लेवे दुनियाँ सीख, बात ये नहीं जरा-सी
सिद्ध हुआ अपराध,गला फौरन ही नापें
सजा सुझाई खूब ,जिसे सुन पापी काँपें ||
वाह आदरणीय अरुण निगम जी, वाह! क्या ही सटीक प्रतिक्रिया कुंडली रची है | साधुवाद मित्रवर |
सिद्ध हुआ अपराध,गला फौरन ही नापें
सजा सुझाई खूब ,जिसे सुन पापी काँपें ||sahi me
वाह! आदरणीय अरुण भईया... प्रतिक्रया में बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया रची... सादर बधाई स्वीकारें...
वाह गुरुदेव वाह उम्दा कुंडली सर हार्दिक बधाई.
सिद्ध हुआ अपराध, चढ़ा दें फ़ौरन फाँसी..100% sateek
वाह आदरणीय आलोक सीतापुरी जी सुन्दर सार्थक कुंडलिया है बधाई आपको
मेरी पहली प्रस्तुति ,,,कुण्डलियाँ ( छंद )में
फाँसी होनी चाहिये,मत करना तुम माफ़
जाते-जाते दामिनी , मांग रही इन्साफ
मांग रही इन्साफ , न होये मेरे जैसा
घुमे यदि अपराधी ,फिर इन्साफ ये कैसा
सख्त बने क़ानून ,सजा हो अच्छी खासी
मुक्ति तभी मिल पाय ,उसे हो जाये फाँसी...
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,,,,,
वाह वाह सम्मान्य भदौरिया जी
चित्र अनुसार बिलकुल सटीक और मारक रचना
सख्त बने क़ानून ,सजा हो अच्छी खासी
मुक्ति तभी मिल पाय ,उसे हो जाये फाँसी...
____जय हो !
samay ki mang sabhi logo ke shabdo ko sundar dhang se aap ne sajaya hai aap ko achchee rachana ko prastut karane hetu badhayee
कुंडलिया सुंदर रची, इसमें है इन्साफ़.
अब ऐसे दुष्कर्म को, कभी न करना माफ़.
कभी न करना माफ़, सजा इसकी है फाँसी
सख्त बने क़ानून, त्याग दें अभी उबासी.
अपराधी बेख़ौफ़, घुमते उपवन तलिया.
बेहतर यही उपाय, रची अच्छी कुंडलिया ..
आदरणीय धीरेन्द्र जी, सुंदर कुंडलिया के लिए बहुत बहुत बधाई |
कृपया 'घुमे यदि अपराधी ,फिर इन्साफ ये कैसा' पर एक दृष्टि डाल लें |
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