आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.
छंद का नाम - सार छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
16 अगस्त’ 25 दिन शनिवार से
17 अगस्त’ 25 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
सार छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
***************************
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 16 अगस्त’ 25 दिन शनिवार से 17 अगस्त’ 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष : यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Tags:
भारती का लाड़ला है वो
भारत रखवाला है !
उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,
उड़ता ध्वज तिरंगा
वीर जवानों के दिल बसता
चोटी फहराता है
भारत माँ की आन-बान है
सबको याद दिलाता
स्वतंत्रता की जननी है यह
वीरों का आभूषण
वीर सपूतों का है आग्रह
कि जिगरी दोस्त शासन
दिल में रहता सबके भारत
अरि को थर्राता है !
कारगिल से पाक दौड़ाया
ढाढस हमें बँधाता
बर्फीली चोटियों तिरंगा
वीरों का जोश बढ़ाता
हिम्मत तो उनकी थाती है
ध्वज याद लाता है
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है. शैल्पिक निकष पर भी आप इसे एक बार देख जायँ. और इस पटल पर भी साझा करें.
सादर
सार छंद
+++++++++
धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता। किन्तु बगल में छुरी दबाकर, वार पीठ पर करता॥
हर आतंकी पाकिस्तानी. बाज कभी ना आते। क्षेत्र कारगिल को हथियाने, पर्वत पर चढ़ जाते।
सजग हुई भारत की सेना, कुछ दिन चली लड़ाई। जिस शुभ तिथि को विजय मिली वो, थी छब्बीस जुलाई॥
नमन शहीदों को तन मन से, और सभी वीरों को। पर्वतीय क्षेत्रों में लड़ते, ऐसे रणधीरों को॥
शेर दिलों का साहस देखो, तुंग गिरि पे चढ़े हैं। पवन चीर लहराते झंडे, नभ के बीच खड़े हैं॥
जहाँ शान से लहराता है, ध्वजा तिरंगा प्यारा। याद करो उन वीरों को जिसने, चोटी पर फहराया॥
कारगिल से कन्याकुमारी, भारत एक रहेगा। बड़ी शक्तियों के आगे भी, देश कभी न झुकेगा॥
+++++++++++++
मौलिक अप्रकाशित
आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |