आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ बासठवाँ आयोजन है।.
छंद का नाम - छंद मनहरण घनाक्षरी
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
21 दिसंबर’ 24 दिन शनिवार से
22 दिसंबर’ 24 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
21 दिसंबर’ 24 दिन शनिवार से 22 दिसंबर’ 24 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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मनहरण घनाक्षरी छंद
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देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि,
अपनी भाषा में शिक्षा, पाना अधिकार है|
भविष्य को गढ़ने की, उम्र यही पढ़ने की,
दादा नाना समझाते, शिक्षा से उद्धार है||
बच्चे समझदार हैं, पढ़ने बेकरार हैं,
सीखने को ककहरा, बेटियाँ तैयार हैं |
जब भी अच्छी बात हो, घर से शुरुआत हो,
संयुक्त परिवार में, अच्छे संस्कार हैं ||
गरीबी अभिशाप है, उपेक्षा महापाप है,
मजदूरी करें बच्चे, अशिक्षा की मार है|
ज्ञानार्जन जरूरी है, अशिक्षा कमजोरी है,
केंद्र राज्य के जरिए, शिक्षा का प्रचार है||
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मौलिक अप्रकाशित
आदरणीय अखिलेश भाई जी, आयोजन में आपकी किसी रचना का एक अरसे बाद आना सुखकर है.
प्रदत्त चित्र के अनुरूप घनाक्षरी अच्छी बन पड़ी है. वैसे रचना के पद आपस में तार्किक रूप से बँधे भी होने चाहिए.
देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि,
अपनी भाषा में शिक्षा, पाना अधिकार है ... इस पद में पहले चरण, जिसमें आठ-आठ वर्णॊं पर यति बनी है, और दूसरे चरण के बीच अपेक्षित सम्बन्ध कैसे बन रहा है, इसे स्पष्ट होना चाहिए. अर्थात्, भारत में अपनी भाषा में शिक्षा का अधिकार होने के लिए भारत का देवों की कर्मभूमि और धर्मभूमि होना कैसे आवश्यक है ?
भविष्य को गढ़ने की, उम्र यही पढ़ने की,
दादा नाना समझाते, शिक्षा से उद्धार है ... अलबत्ता, यह पद वस्तुतः तार्किक बन पड़ा है. इसी पद की भावभूमि को परिभाषित करता हुआ पहला पद होना चाहिए था.
बच्चे समझदार हैं, पढ़ने बेकरार हैं, ........... बच्चे समझदार हैं, दादा को उपहार हैं
सीखने को ककहरा, बेटियाँ तैयार हैं
जब भी अच्छी बात हो, घर से शुरुआत हो,
संयुक्त परिवार में, अच्छे संस्कार हैं .. ....वाह वाह
आपके प्रयास पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
आदरणीय सौरभभाई जी,
प्रशंसा सार्थक टिप्पणी और सुझाव के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार |
संशोधित रचना
सर्व शिक्षा अभियान, दूर कर दे अज्ञान,
शिक्षा अपनी भाषा में, पाना अधिकार है|
भविष्य को गढ़ने की, उम्र यही पढ़ने की,
दादा नाना समझाते, शिक्षा से उद्धार है||
बच्चे समझदार हैं, दादा को उपहार हैं,
सीखने को ककहरा, बेटियाँ तैयार हैं |
जब भी अच्छी बात हो, घर से शुरुआत हो,
संयुक्त परिवार में, अच्छे संस्कार हैं ||
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र से भाव लेकर सुन्दर घनाक्षरी रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी यह छह चरण हैं. दो चरण और होते तो दो छंद पूर्ण होते. बाकी आदरणीय सौरभ जी ने कहा ही है. सादर
मनहरण घनाक्षरी
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दादा जी के संग तो उमंग और खुशियाँ हैं, किस्से हैं कहानियाँ हैं प्रीति और प्यार है।
बातें मीठी प्यारी-प्यारी, होतीं नित बारी-बारी, पुस्तकों पढ़ाई का न, यहाँ कोई भार है।
डाँट न डपट कहीं, छल न कपट कहीं, बच्चों का तो दादा पर, पूरा अधिकार है।
दादा का भी बच्चों में ही, रहता है मन सारा, बच्चों से ही दादाजी का, घर गुलज़ार है।।
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~ मौलिक/अप्रकाशित.
वाह वाह .. वाह वाह ...
आदरणीय अशोक भाईजी, आपके प्रयास और प्रस्तुति पर मन वस्तुतः झूम जाता है. जिस निर्विघ्न प्रवाह के साथ पदों में शब्द-संय़ोजन हुआ है, यही घनाक्षरी जैसे छंद की विशेषता है.
प्रस्तुति के पहले दोनों पद जहाँ प्रदत्त चित्र की भावभूमि को उकेर रहा है, वहीं बाद के दोनों पदों में चित्र की प्रक्रिया निरुपित हुई. और क्या ही निरुपण है ! वाह वाह ..
हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, आपकी प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है मेरा यह प्रयास ठीक रहा. मेरा प्रयास था गलती की पुनरावृत्ति से बचने का उसमें मैं सफल रहा. आपका हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय अशोक भाईजी,
छंद की हर पंक्ति चित्र के अनुरूप है, हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए |
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर
मनहरण घनाक्षरी
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निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न, बैठने दें पोतियाँ
माँगतीं वह रोज हैं, कहानियों की टोकरी,जान से प्यारी मगर, बाऊजी को पोतियाँ
कभी-कभी तो प्रश्न भी, बड़े अजीब पूछतीं, क्या सुनाऊँ अब इन्हें, बाऊजी हैं सोचते
बड़ों के पास हो गई, कमी बड़ी ही वक्त की, शुष्कता व्यवहार की, बाऊजी हैं भोगते
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मौलिक व अप्रकाशित
अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ
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निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न, बैठने दें पोतियाँ
माँगतीं वह रोज हैं, कहानियों की टोकरी,जान से प्यारी मगर, बाऊजी को पोतियाँ
कभी-कभी तो प्रश्न भी, बड़े अजीब पूछतीं, हैं बड़ी चतुर सुनो, बाऊजी की पोतियाँ
बड़ों के पास हो गई, कमी बड़ी ही वक्त की, शुष्कता व्यवहार की, देखती हैं पोतियाँ
आदरणीया प्रतिभाजी
इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई|
तुकांत की दृष्टि से सभी पदों में पोतियाँ के पूर्व वो शब्द होना चाहिए जिसमें आपस में तुकांतता हो|
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