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ग़ज़ल - ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड

वज़्न -1222 1222 1222 1222

ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
मुक़ाबिल तुमको पाकर हो गई कितनी गुलाबी ठंड

तुम्हारी याद की इक गुनगुनी सी धूप के दम पर
सुखाए कितने ग़म हमने बिताई कितनी भारी ठंड

अलावों की न थी कोई कमी उसको मगर फिर भी
ज़मीं ने देखकर सूरज को ही अपनी गुज़ारी ठंड

तुम्हारे प्यार के धागों की मैंने शॉल जब ओढ़ी
लगी है तब मुझे सारे हसीं मौसम से प्यारी ठंड

मैं अक्सर सोचती हूंँ काश फिर वो दिन पलट आएँ
तुम्हारा साथ दो कप चाय और वो हल्की हल्की ठंड

सुनो ! क्या तुम अभी भी पहले जैसे ही बिताते हो
मेरी ऊनी महब्बत से बुनी स्वेटर में सारी ठंड

तुम अपने गर्म एहसासों को लेकर लौट आओगे
कटी इस 'आरज़ू' में हर बरस मेरी ठिठुरती ठंड

-© अंजुमन 'आरज़ू'
स्वरचित व मौलिक

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Comment by Aazi Tamaam on December 11, 2022 at 9:58pm

वाह आ बहुत ख़ूब कही

बधाई हो खूबसूरत ग़ज़ल के लिए

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