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आदरणीय डॉ. विजय शंकरजी, आपकी इस रचना के भाव ने गौरवान्वित किया ही अपने देश में आमजन के प्रति व्याप गयी लापरवाही कुछ और चुभती सी लगी. गणतंत्र ही उस आमजन को समृद्ध नागरिक का दर्ज़ा देता है. इस गणतंत्र का अर्थ ही यही था कि आमजन का उत्थान हो. उसे भरपूर अवसर मिले. इस कर्तव्य के परिपालन के क्रम में अभी बहुत कुछ करना है.
सादर बधाइयाँ आपकी इस सुगठित तथा सचेत भावाभिव्यक्ति के लिए.
ऐसी हक़ीकत जिसे हर ऊपर वालों को जानना , महसूस करना चाहिये । बहुत सुन्दर रचना , आदरणीय विजय भाई , बधाई ।
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, बहुत गहरे तक प्रभाव छोडती बेहतरीन कविता... बहुत बहुत बधाई सर
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, सुन्दर रचना ......बत्तीस रूपये प्रतिदिन में जिंदगी गुजारने वाले.......बहुत खूब ... हार्दिक बधाई ! सादर
अनवरत सात दशकों से मात्र कल्पना सा प्रतीत होता.. न जाने कब पूर्ण होगा...? प्रभावशील रचना आदरणीय डा. विजय जी. बधाई व् गणतंत्र दिवस की ह्रदय से शुभकामनाये
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