ग़ज़ल . |
क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है ! |
दुनिया में इन्सान बराबर होता है ! |
पाकीज़ा जज़्बात है जिसके सीने में ! |
उसका दिल भरपूर मुनौअर होता है ! |
ज़ाहिद का क्या काम भला मैख़ाने में ! |
मैख़ाना तो रिंदों का घर होता है ! |
जो तारीकी में भी रस्ता दिखलाए ! |
वो ही हमदम वो ही रहबर होता है! |
टूटा -फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही ! |
अपना घर तो अपना ही घर होता है! |
ताल में पंछी पनघट गागर चौपालें ! |
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है! |
कैद करो न इनको पिंजरों में कोई ! |
अम्न का पंछी "रज़ा'' कबूतर होता है! |
SALIM RAZA REWA
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
giriraj ji,,vijay mishraji,,aakash verma ji,,sandeep ji,,keval prasad ji ,,basant nema ji,, aur shyam narayan verma ji ,,-aap tamam logo ki ruhani duaae mili khushi hui--gazal pasand aai SHUKRIYA
टूटा -फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही !
अपना घर तो अपना ही घर होता है!
वाह सलीम भाई वाह !! लाख लुभाये महल पराये , अपना घर फिर अपना घर है ( मुकेश जी का एक गाना है )
Bahut Badiya Saleem ji...
apse dubara mulakat hi nai hui apse....
बहुत सुन्दर आदरणीय राजा जी
बहुत बहुत दाद क़ुबूल कीजिये
आ0 रजा भाई जी, बेहतरीन गजल। //टूटा -फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही !
अपना घर तो अपना ही घर होता है!
// वाह! क्या बात है। तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,
बहुत सुन्दर ..बधाई सलीम भाई जी
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
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