नज़रिया - लघुकथा ---
अमर अपने सहपाठी के साथ घर से लगे लॉन में क्रिकेट खेल रहा था। उसके मित्र को प्यास लगी तो अमर अंदर पानी लेने चला गया। इसी बीच अमर की विधवा बुआजी तुलसी के पत्ते लेने बाहर आईं।
"ए लड़के कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे हो?"
"मैं अमर के साथ पढ़ता हूँ। उसने ही बुलाया था।"
"अमर के सभी दोस्तों को जानती हूँ।तुम्हें तो कभी नहीं देखा।"
"हाँ आँटी, मैं पहली बार आपके यहाँ आया हूँ।"
"क्या नाम हैं तुम्हारा?"
"असगर अली।"
"तुम मुसलमान हो?"
"जी।"
"जी के बच्चे, निकलो अभी यहाँ से।दोबारा इस घर के आसपास दिखे तो तुम्हारी टाँगें तोड़ दूंगी।"
वह छोटा सा बच्चा डर गया और तुरंत वहाँ से भाग निकला। इसी बीच अमर पानी लेकर आगया।
अब बुआजी अमर के ऊपर राशन पानी लेकर पिल पड़ीं,"खबरदार अमर, तुम ऐसे लड़कों से दोस्ती करते हो।"
"क्यों क्या हुआ बुआजी? असगर अली बहुत अच्छा लड़का है।हमेशा प्रथम आता है क्लास में।"
"अरे चुप करो। तुम कुछ नहीं जानते। वह मुसलमान है।"
"मैं कुछ समझा नहीं बुआजी।आप कहना क्या चाहती हैं?"
"मुसलमान काफ़िर और गद्दार होते हैं। बात बात पर खून खराबा करते हैं। देश के दुश्मन होते हैं।"
तभी अमर की माँ यह वार्तालाप सुनकर बाहर आ गयीं,"बुआजी आप यह क्या ज़हर घोल रही हो अमर के दिमाग में।"
"बहू रानी तुम तो सब कुछ जानती हो फिर भी अनजान बन रही हो।"
"मुझे सब पता है और अच्छी तरह याद भी है कि आप के वैधव्य का कारण एक मुसलमान ही था।लेकिन वह एक हादसा था।दुर्घटना थी।"
"जो भी था पर मेरा जीवन तो नष्ट हो गया।"
"बुआजी, एक घटना के कारण आप सारी कौम को गुनहगार नहीं मान सकती। उस घटना के जहरीले बीज इन मासूमों के मन में मत रोपिये।इन्हें दुनियाँ को अपने नज़रिये से समझने दीजिये|"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी। आदाब।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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