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स्मृतियों के अनगढ़ कमरे से

अचानक बाहर फुदक आयी हैं कुछ नम रोशनियाँ... /आज फिर.. ..

एक बार फिर

मासूम सी कोशिश की है इनने..

कि, मनाँगन में

कशिशभरी आवारा धूप बन लहर-लहर नाचेंगी..

 

तुम मेरे साथ हो न हो.... ..

इन रोशनियों के साथ जरूर होना.. ..

...............कोशिश तो करना.. ..

मुझे पता है .. गया समय उल्टे पाँव नहीं चलता..

किन्तु इन भोली-निर्दोष रोशनियों को अब कौन समझाये..

और देखो.. ..

तुम भी मत समझाना.. ../अभी बचपना नहीं गया है न../

---चिर युवा होने का श्राप जो लगा है--

इनके अवगुंठित

दग्ध परिचय को

तुम अपने होने भर का अहसास भरा मरहम दे सको

तो, मैं खुशी-खुशी कुछ और खोल दूँ

अपने इस बेतरतीब कमरे के दरवाजे

 

रोशनियों को जाने क्यों... कबसे..  मेरा रूप मिल गया है.. 

और बार-बार.. मेरे रूप को ओढ़े

फुदक-फुदक आती हैं--

स्मृतियों के अनगढ़ कमरे से बाहर

उनकी अल्हड़ मासूमियत पर जाने क्यों

मेरी आँखों की समझदार कोर तक

नासमझ बनी   नम-नम हुई जाती हैं... ..

 

काश.. काश..

काश.... ..

.

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Comment

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Comment by Monika Jain on May 13, 2012 at 4:29pm

saurabh ji aapki rachna padi to sach me aisa laga jese mere apne man se kuchh yaaden pankh paila kar bahar mere kamre ki dehleez par phudakne lagi ho, bahut sundar rachna hai :}


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2011 at 12:14am

Thanks for coming to this page.

Comment by Aradhana on July 16, 2011 at 7:46pm
the poem talks...brilliant.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 30, 2011 at 4:13pm

रचनाएँ अनुभूति प्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम हैं. प्रस्तुत रचना को स्वीकारने के लिये हृदय से धन्यवाद वसुधा.

Comment by Vasudha Nigam on June 30, 2011 at 1:25pm
आपकी कविता से एक मार्गदर्शन मिलता हैं बहुत ही  mature writing है आपकी.... मार्गदर्शन करते रहिएगा..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2011 at 8:29pm

आपने प्रयुक्त बिम्बों को महसूसा, मेरा हार्दिक धन्यवाद. सहयोग बना रहे.

Comment by sangeeta swarup on June 26, 2011 at 4:03pm
एक बार फिर
मासूम सी कोशिश की है इनने..
कि, मनाँगन में
कशिशभरी आवारा धूप बन लहर-लहर नाचेंगी..

खूबसूरत बिम्ब से सजी रचना अच्छी लगी ...अंतिम पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं ..समझदार कोर नासमझ बनी हुई ..वाह

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2011 at 1:46pm

रचना की भावनाओं को अनुमोदित करने के लिये हार्दिक धन्यवाद, वन्दनाजी.

सहयोग बना रहे.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2011 at 1:56pm

वीरेन्द्रजी, आपने इस रचना को अपना बहुमूल्य समय दिया इसके लिये मैं हार्दिकरूप से आभारी हूँ.

.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2011 at 1:05pm

आपकी सराहना और आपके अनुमोदन ने मुझे सम्मानित किया है, भाई अरुणजी.

हार्दिक धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

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