कच्ची फसल - लघुकथा –
"माँ, मुझे अभी और पढ़ना है। आप बापू को समझाओ ना। वे इतनी जल्दी क्यों मेरा विवाह करना चाहते हैं"?
"ठीक है बेटी। मैं आज एक बार और कोशिश करके देखती हूँ"।
श्यामा के स्कूल जाते ही, राधा खेत पर मोहन के लिये खाना लेकर पहुँच गयी।
"मैं सोच रही थी कि आज इस गेंहू की फसल को काट लेते हैं। जल्दी से फ़ारिग हो जायेंगे"।
"पगला गयी हो क्या राधा, । फसल पकने में वक्त है अभी।
"क्या फ़र्क पड़ता है, दो चार दिन पहले काट लेंगे तो। मुझे श्यामा को लेकर पीहर जाना है"।
"आज ये कैसी मूर्खों जैसी बातें कर रही हो? तुम तो सदैव एक सुघड़ गृहिणी की तरह फसलों के बारे में मुझे सलाह देती रही हो| अधपकी फसल काटने से बरबाद हो जायेगी। किसी काम की नहीं रहेगी"?
"तुम भी तो कितने बीघे खेत के बड़े किसान होकर एक मामूली सी बात नहीं समझ रहे हो"।
"कौन सी बात"?
"श्यामा भी तो अभी कच्ची फ़सल है"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, अत्यंत प्रभावशाली ढंग से एक सार्थक संदेश का सम्प्रेषण करती रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी।
हार्दिक आभार आदरणीय अशुतोष मिश्रा जी।
हार्दिक आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी।
वाह वाह आदरणीय सही और सार्थक बात कह दी है आपने लघु कथा के माध्यम से..
आदरणीय तेजवीर जी ..आपकी लघु कथा बेहद पसंद आई..कम शब्दों में सार्थक सन्देश देते रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
अच्छी लघुकथा |
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी।आदाब।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।
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