For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंदिर के भीतर भीड़ उमड़ रही थी। तिल धरने की जगह नहीं बची थी। सभी को अपनी धुन लगी थी। सभी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे और चाहते थे कि उनका जल मूर्ति पर चढ़ जाय जिससे उन्हें बाहर निकलने का मौका मिले। औरतों का रास्ता दूसरी तरफ से था। औरते उसी तरफ से आ कर मूर्ति का दर्शन पूजन कर रही थीं। मरछही भी उन्हीं महिलाओं में शामिल थी। आगे बढ़ रही थी पीछे से धक्का लग रहा था। वह जब मूर्ति के सामने आई और उसने अपना जल गिराया। उसके बाद सिर नवाकर आशीष मांगा। मरछही ने जब सिर उठाकर मूर्ति के अलावा पहली बार देखा तो उसकी निगाह पुरूषों की कतार पर पड़ी। उसने देखा कि उसमें संदीप भी खड़ा था। उसके पहले एक आदमी था जिसके बाद उसका नंबर आने वाला था। मरछही वहां से हटती तब तक संदीप मूर्ति के करीब आ गया था। उसकी भी निगाह मरछही पर पड़ी जो उसकी पत्नी थी। वह एक दम से हड़बड़ा गया । उसे इसकी कल्पना नहीं थी कि मरछही से उसकी भेंट इस प्रकार हो सकेगी। उसने मरछही से बाहर मिलने का इशारा किया। मरछही ने भी हामी भरी। उसके बाद वह बाहर निकल आई। दरवाजे से थोड़ा हटकर उसका इंतजार करने लगी। थोड़ी देर बाद संदीप मंदिर से बाहर निकलता दिखाई पड़ा। नजदीक आकर उसने उससे पास के खाली जगह पर चलने को कहा। वह धीमी गति से उसके साथ चलने लगी।
मरछही सोच रही थी कि यही संदीप था जिससे शादी के बाद उसक दिन कैसे अच्छी तरह गुजर रहे थे लेकिन कुछ समय से ऐसा हुआ कि इसकी मां ने मरछही को तरह - तरह से लांछित करना शुरू कर दिया था। जिससे घर में आये दिन कलह का माहौल बन गया था। बाद में तो उसको वहां से निष्कासित ही कर दिया गया था। वह अपने मां-बाप के यहां रहने को बाध्य हो गयी थी। यह तो उसका मैका अच्छा था कि भाई व भऊजाइयों ने उसे अपनी बहन व ननद के समान आदर दिया उसे यह महसूस ही नहीं होने दिया कि वह मैके में है। लेकिन अपना घर तो अपना ही होता है। रात में कभी-कभी वह अपने भाग्य पर रोती थी। वह अपने को गलत राह पर न पाते हुए भी दोषी बनाये जाने से दुखी थी। यह दुख उसके हृदय से निकल नहीं पा रहा था। यहां तक कि उसका मर्द भी उससे दूर चला गया था। उसने भी एक बार उसकी पूछ नहीं की और सच्चाई से वाकिफ होने की कोशिश नहीं की । मरछही को अकस्मात रूकना पड़ा । उसने देखा कि उसकी बाह पकड़ कर संदीप उसे रूकने को कह रहा है। वह रूक गयी।
संदीप ने उसे वही ठहरने को कह कर पास की मिठाई की दुकान पर चला गया। वहां से उसने दो दोनों में मिठाई खरीदी और वापस आया। एक मरछही को दिया और दूसरी से निकाल कर मिठाई खाने लगा। मरछही ने उसे भर निगाह देखा। संदीप ने उससे कहा कि मरछही कैसी हो। आज बहुत दिन के बाद देखा तो सोचा कुछ बात ही कर ले। मरछही ने उत्तर दिया -मैं ठीक हूं।
इसके बाद इधर उधर की बात के बाद संदीप ने घर की बात उठायी तो मरछही से रहा नहीं गया उसकी आंख से आंसुओं की धार निकलने लगी और हिचकी पर हिचकी आने लगी। सार्वजनिक जगह पर उसे रोते देखकर संदीप डर गया । उसने उसे मनाने की कोशिश की। मरछही कुछ देर बाद रूक गयी।
उसने कहा कि आप तो मुझे ही दोषी समझते हैं। सारा दोष मेरा ही है। जबकि मुझसे जलन के कारण आपकी मां मुझ पर वे आरोप लगा रही थीं। जो एक दम निराधार थे। आप नहीं मानते हैं तो स्वयं अब पता लगा सकते हैं कि उनमें से कौन सा कार्य मेरे द्वारा हुआ था। मैंने ऐसा कोई कार्य नहीं किया था। उन दिनों को याद करके वह पुनः सिसकने लगी।
संदीप ठगा सा रह गया। वह सोच रहा था कि कैसे बात को आगे बढाएं।
उसने कहा कि अब बात मेरे समझ में आ गई है। तुम ऐसा करो कि मैं जब तुम्हे बुलाने आऊँ तो तुम चली आना। मरछही ने कहा कि आप आने से पहले मेरे मां-बाप व भाई से बात करलें क्योंकि उन्हें ऐतराज होने पर वहां आना मुश्किल होगा। संदीप ने कहा कि ठीक है । मैं उन से बात करके ही आऊँगा।
इसके बाद दोनों वहां से अपने -अपने राह चले गये।
कुछ दिनों के बाद संदीप मरछही के गांव गया। उसके पिता व भाई से अपनी गलती की माफी मांगी। उनसे यह वादा किया कि मरछही को अच्छी तरह रखेगा। वह जब तक गलती नहीं करेगी तब तक उससे कुछ भी नहीं कहेगा।
मरछही अपने गांव आ गई। यह सब कुछ हो गया। लेकिन उसकी सास का स्वभाव नहीं बदला। वह हर समय उससे उल्टा सीधा बोलती रहती थी। मरछही ने एक दिन संदीप को छिपा कर उनकी सारी गतिविधि को दिखा दिया। संदीप ने दूसरे दिन अपनी मां को बुरी तरह फटकारा व कहा कि यदि वह अपनी आदत नहीं सुधारती है तो उसका नुकसान हो जायेगा। यदि वह अपमानित होना नहीं चाहती तो अपने में सुधार लाये।
मां जो अपने को तीस मार खां समझ रही थी। इस डपट के बाद डर गयी । वह मरछही से मिल कर रहने लगी।
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 363

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on March 30, 2018 at 11:37am

अब आपकी रचना के बारे में |

निसंदेह घरेलू सम्बन्धों उसमें भी सास-बहू सम्बन्धों  को विषय बना कर आपने रचना लिखी है |पर रचना में कथानक के अलावा बाकि तत्वों यानि घटनाओं और कथा-वस्तु का विकास नहीं हुआ | सारी कहानी में केवल मरछ्ही एवं संदीप का चित्रण किया है जबकि अन्य प्रमुख पात्र जिसे विलेन  बनाया गया यानि की संदीप की माँ ,उनकी किसी घटना का वर्णन न करना रचना को बहुत हल्का बना देता है |

ऐसे में कहानी व्यक्तिगत अनुभवों की नीरस विवरणिका मालूम होती है |

हो सके तो पात्रों के सम्वादों द्वारा उनका चरित्रविकसित करें |

संदीप की माता राह पर कैसे आईं इस घटना का भी पर्याप्त विकास होना चाहिए \

अंतिम चीज़ शीर्षक पर दोबारा  विचार करें |

उम्मीद है की इस मंच पर आपकी सक्रिय उपस्थिति देखने को मिलेगी |

Comment by somesh kumar on March 30, 2018 at 11:10am
kshma prarthi hun ki laptop pr aapki rchna nhi khul rhi hai isli ynha mobile se aapki rchna pr aana pda.
sbse phle to yh mhsus kr aandit hua ki mnch pr lmbi rchnavo ko likhne pdhne vaale mitr aa rhe hain aur lmbi khaniya jinka ish mnch pr gorh aabhav hai shayd ynha apni phchan sthapit kr sken

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service